यूपी लोक सेवा आयोग की भर्तियों की सीबीआई जांच के मामले में मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई होनी है। लोक सेवा आयोग ने भर्तियों की सीबीआई जांच की अधिसूचना को चुनौती दी है। राज्य सरकार के अनुरोध पर केंद्र सरकार ने अधिसूचना जारी की है। अप्रैल 2012 से मार्च 2017 तक के आयोग के क्रियाकलापों की जांच होनी है. कोर्ट के आदेश पर मंगलवार को राज्य सरकार को अपना पक्ष रखना है। मामले में कोर्ट ने पूछा है किन तथ्यों पर सीबीआई जांच का फैसला लिया गया. मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस डीबी भोसले की अध्यक्षता वाली खण्डपीठ कर रही है।
पूर्व सरकार में हुई भर्तियों के लिए सीएम योगी ने सिफारिश की थी।
दरअसल योगी सरकार ने अखिलेश सरकार के दौरान पांच साल में यूपीपीएससी में हुई भर्तियों की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश की थी. पिछले दिनों इसी सिलसिले में सीएम योगी आदित्यनाथ ने यूपीपीएससी के चेयरमैन अनिरुद्ध सिंह यादव को लखनऊ तलब किया था. मुलाकात के बाद चेयरमैन ने बताया कि आयोग ने हाईकोर्ट में इस मामले में चुनौती इसलिए दी है क्योंकि उसका मानना है कि जांच की सिफारिश करने में प्रक्रियात्मक गलतियां हुई हैं. बता दें कि आयोग के चेयरमैन अनिल यादव को हाईकोर्ट के आदेश के बाद हटा दिया गया था. इनकी नियुक्तियों पर सवाल उठे थे. इसके बाद कार्यवाहक चेयरमैन सुनील जैन के खिलाफ भी सवाल उठे. दोनों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मुकदमे थे.
अप्रैल 2012 से 31 मार्च 2017 के बीच हुई भर्तियों पर होगी सुनवाई
यूपीपीएससी में भर्तियों की सीबीआई जांच एक अप्रैल 2012 से 31 मार्च 2017 बीच के समय की हो रही है. सीबीआई जांच के दायरे में पिछले पांच साल की नियुक्तियां हैं. इसके तार आयोग में पदस्थ सदस्यों से भी जुड़े हैं. आरोप है कि मुख्य परीक्षाओं से ध्यान हटाकर आयोग का फोकस विशेष तौर पर सीधी भर्ती की परीक्षाओं पर रहा. 20 हजार से अधिक सीधी भर्ती की नियुक्तियों का अनुमान है. इससे जुड़े कई मामले हाईकोर्ट में भी लंबित हैं. अकेले इलाहाबाद हाईकोर्ट में ही सैकड़ों वाद लंबित थे. जिनमें पांच जनहित याचिकाएं हैं. डॉ.अनिल यादव का आयोग में अध्यक्षीय कार्यकाल ही सबसे अधिक विवादित रहा है. माना जा जा रहा है कि सीबीआई जांच के केंद्र में इस दौरान घोषित परिणाम विशेष रूप से होंगे।