अब खेती में बैलों का उपयोग नहीं होता बूचड़खाने बंद होने के बाद उन्हें ख़रीदने वाला भी कोई नहीं। वहीं अब बड़ी संख्या में आवारा जानवर खेतों को तबाह कर रहे हैं। खुले बछड़ों को बूचड़ खानों में न भेजे जाने के सरकारी फैसले का स्वागत भले ही शुरुआत में हर किसी ने किया हो,लेकिन अब इसका असर शहर की सड़कों से ले कर ग्रामीण इलाकों में हर तरफ दिख रहा है ।
जाम और दुर्घटना का कारण बन रहे आवारा जानवर
सड़क पर जहां इन छुट्टा जानवरों के जमावड़े से जाम लगने के साथ लोग इनको बचाने के चक्कर मे घायल हो रहे हैं वही दूसरी ओर सरकार के इस फैसले के बाद ग्रामीण इलाकों में छह महीनों में छुट्टे जानवरों की संख्या दुगनी हो गई है। जिसकी वजह से किसानों की फसलें ये जानवर अपना पेट भरने के चक्कर मे बर्बाद कर रहे हैं।
औपचारिकता भर के लिए ही रह गए हैं त्योहार
दीपावली के माफिक आगामी होली के मौके पर भी जनपद के किसान विषम परिस्थितियों में जीने को मजबूर होते दिख रहे हैं। फसलों के बर्बाद हो जाने के बाद लोगों के चेहरों से मुस्कुराहट गायब है,यहाँ तक कि अमेठी के किसान फसलों के खराब हो जाने के बाद पर्व को महज औपचारिकता भर ही मनाने को मजबूर हैं।
बड़ी उम्मीद से हर बार लगाई जाती है फसल
मुसाफिरखाना के किसान शारदा प्रसाद बताते हैं कि हर बार वह इस उम्मीद से सब्जी व अन्य फसलों को लगाते हैं । ये जानवर उन पर तरस खाकर अपना रूख बदल दें और वह बच्चों तथा परिवार के अन्य सदस्यों के साथ होली अपने घरों में ख़ुशी से मनाए, लेकिन फसल तैयार होने से पहले ही आवारा और जंगली जानवर अपने रौद्र रूप में आकर फसलों को बर्बाद कर देते हैं।
कोई नहीं करता किसानों की मदद
दादरा गाँव के किसानों का कहना है कि रंगों का त्यौहार होली,का पर्व हर्षोल्लास से मनाया जाना हर परिवार का सपना होता है, ऐसे में फसल खराब हो जाने के कारण त्योहारों पर भी मन मारकर रहना उनकी नियति का हिस्सा बन गया है ,.और बड़ी बात ये कि इस कष्ट में कोई भी जनप्रतिनिधि या प्रशासन उनकी सहायता को नहीं आता।