आज अमलतास संस्था के द्वारा कैफी आजमी एकेडमी, निशातगंज, लखनऊ में घरेलू कामगारों के मुद्दे पर परिचर्चा आयोजित की गई। जिसमें मांग कि गई कि घरेलू कामगारों के लिए कानून बनाकर बोर्ड का गठन किया जाये और उनका पंजीयन करते हुए समाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराई जाये। (domestic workers)
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घरों में बन्द दरवाजों के पीछे काम करती हैं महिलाएं
- भारतीय महिला फेडरेशन की अध्यक्ष आशा मिश्रा ने कहा कि प्राचीन समय से घरेेलू कामगार महिलाओं को कमतर आंका जाता जा रहा है।
- ये महिलाएं असंगठित क्षेत्र से होती हैं और उनकी सुरक्षा के लिए कानून में कोई प्रावधान नहीं है।
- जिसकी वजह से ये महिलाएं हमेशा शोषित होती रही हैं।
- आमतौर पर यह महिलाएं घरों में बन्द दरवाजों के पीछे काम करती हैं।
- जिससे वह समाज से कट सी जाती है और उनके शोषित होने की सम्भावनायें बढ़ जाती हैं।
- घरेलू कामगारों में अधिकांशतः महिलाएं तथा लड़कियाँ आती हैं।
- ऐसे में हमारी मांग है कि सरकार जल्द से जल्द घरेलू कामगारों के लिए कानून लाये।
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सामूहिक रूप से तैयार किया गया ड्राफ्ट
- आल इण्डिया प्रोग्रेसिव वीमेन ऐसोसिएसन की ताहिरा हसन ने कहा कि हम सबका प्रयास है कि सरकार घरेलू कामगारों के सवाल को संजीदगी से ले।
- इसके लिए विभिन्न सामाजिक संगठनों के द्वारा मिलकर सामूहिक रूप से एक ड्राफ्ट भी तैयार किया गया है।
- यदि सरकार ये ड्राफ्ट कानून के तौर पर स्वीकार करती है तो न सिर्फ ये घरेलू कामगारों के पक्ष में हितकर रहेगा।
- बल्कि नियोक्ताओं के लिए भी बेहतर होगा ताकि उन्हें भी ऐसी कामगार मिलें।
- जिनका डाटाबेस सरकार के पास हो, जो पंजीकृत हों और साथ में कानून के तहत मिलने वाली सुविधाओं के साथ प्रोफेशनली काम करें व कुशल श्रमिक कहलाएं।
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श्रमिकों को दिए जाएं सारे अधिकार
- आल इण्डिया वकर्स काउसिंल के संयोजक ओ.पी. सिन्हा ने कहा कि घरेलू कामगार भी शहरी जिन्दगी का अहम हिस्सा हैं।
- सफाई, धुलाई, खाना पकाना, देखभाल जैसे काम करके ही वे तमाम घरों में जीवन को असान बनाते हैं।
- लेकिन इसके बावजूद भी उन्हें उचित अथवा तय मजदूरी, बोनस, पेंशन, मंहगाई भत्ता, बीमा व छुट्टियाँ नहीं मिलती हैं।
- जिससे इनकी अपनी खुद की जिन्दगी बहुत कठिन हो गई है।
- न इनके पास पर्याप्त तनख्वाहें हैं, न ही कोई सम्पत्ति है और न ही कोई बचत है।
- इसका असर इनके परिवार और बच्चों की जिन्दगी पर पड़ता है और ऐसे में उनके लिए तरक्की के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं।
- वे भले ही इन घरों के स्थायी मजदूर न हों, लेकिन वो शहरी जिन्दगी का स्थायी और जरूरी हिस्सा हैं और उन्हें यह हक है कि उन्हें पूरा मान-सम्मान और श्रमिकों के सारे अधिकार मिले। (domestic workers)
- फरीदा जलीस (सेवा, लखनऊ) ने कहा भारत में घरेलू कामगारों के लिए राष्ट्रीय नीति का ड्राफ्ट भी बना है।
- जिसमें घरेलू कामगारों को कामगार का दर्जा देकर प्रत्येक राज्य में न्यूनतम मजदूरी घोषित करने का प्रावधान है।
- साथ ही उन्हें सामाजिक सुरक्षा भी मुहैया कराने की बात की गई है, किन्तु उत्तर प्रदेश में ऐसा नहीं हो रहा है। (domestic workers)
- हलांकि उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले 6 अप्रैल 2016 को औपचारिक रूप से घरेलू कामगारों को न्यूनतम मजदूरी कानून के अंतर्गत शामिल कर लिया गया है।
- हमारी मांग है कि घरेलू कामगारों के लिए कानून बनाकर बोर्ड का गठन किया जाये और उनका पंजीयन करते हुए समाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराई जाये।
- प्रो. जाफरी (वी.वी. गिरि इन्सटीट्यूट) ने बताया कि एन.एस.एस.ओ. के 2005 के सर्वेक्षण के मुताबिक 4.75 करोड़ महिलाएं घरेेलू कामगार है तथा यह क्षेत्र रोज़गार की दृष्टि से शहरी क्षेत्रों का सबसे बड़ा क्षेत्र है।
- शहरी भारत की महिला कामगारों का 12 प्रतिशत 3.05 करोड़ घरेेलू कामगार महिलाओं से है।
- यह क्षेत्र रोजगार के लिए तेजी़ से बढ़ोत्तरी करने वाला क्षेत्र है जो 1990-2000 से अब तक 222 प्रतिशत की वृ़द्धि दर्ज करा चुका है।
- एन.सी.ई.यू.एस. (2007) के अनुसार 84 प्रतिशत से ज्यादा घरेेलू कामगार न्यूनतम मजदूरी से कम वेतन पाती हैं।
- ज्ञातव्य हो कि घरेेलू कामगारों में 90 प्रतिशत महिलाएं और बच्चे हैं जो 12-75 वर्ष की उम्र की हैं और इनमें 25 प्रतिशत 14 साल से भी कम आयु के हैं।
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कई संगठन रहे मौजूद
- विज्ञान फाउन्डेशन से रिचा चन्द्रा ने कहा कि घरेलू कामगार महिला श्रम शक्ति का सबसे बड़ा हिस्सा हैं और अब वक्त की मांग है कि उन्हें श्रमिक के तौर पर पूरी पहचान व सम्मान मिले।
- जिसके लिए अलग कानून बनाना आवश्यक है।
- उन्होंने घरेलू कामगारों के मुद्दे पर अब तक के सफर के बारे में बताया और कहा कि जब हमारी मांगे पूरी नहीं हो जाती हैं।
- असंगठित कामगार अधिकार मंच लगातार घरेलू कामगारों के लिए पैरवी करता रहेगा।
- कार्यक्रम को एम संस्था के संजय राय, वीमेन मुस्लिम लीग की नाईस हसन, सिस्टर अंशू, ह्यूमन राईट मानीटरिंग कमेटी के संयोजक अमित मिश्र आदि साथियों ने सम्बोधित किया।
- सम्मेलन में घरेलू कामगारों सहित विभिन्न सामजिक संगठनों के लोग शामिल हुए। (domestic workers)
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