वरिष्ठ समाज सेवी राजेंद्र नाथ श्रीवास्तव ‘भइयाजी’ (Rajendra Nath Srivastava) का लंबी बीमारी के बाद हृदय गति और सांस रुकने से गुरुवार की रात सिविल अस्पताल में निधन हो गया। उन्होंने जैसे ही अंतिम सांस ली उसके चंद मिनटों में नरही ही नहीं पूरे शहर में उनके निधन की खबर फैल गई। भइया जी के निधन के बारे में जिसने भी सुना वह गमजदा हो गया। समाजसेवियों सहित नेताओं का भी उनके घर पर तांता लगा हुआ है।
समाज को है भइयाजी जैसे संत की आवश्यकता-
- मनकामेश्वर मठ मंदिर की श्रीमहंत देव्यागिरि ने 86 साल के वरिष्ठ समाज सेवी राजेन्द्र नाथ श्रीवास्तव उर्फ भइया जी के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया.
- उन्होंने कहा कि समाज को बिना चोले के समाज सेवी भइयाजी जैसे संत की आवश्यकता है.
- वह हमेशा लोगों के प्रेरणा स्रोत रहेंगे.
- उन्होंने दिखा दिया कि धनशक्ति से भी बड़ी है इच्छाशक्ति.
- इसलिए मनुष्य को कभी निराश नहीं होना चाहिए.
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- केवल सत्य मार्ग पर चलते हुए कर्म करते रहना चाहिए.
- जिसके बाद मंजिले खुद कदम चूमेंगी.
- इस दौरान उन्होंने भइयाजी की स्मृति में सेवा प्रतीक स्थल बनाए जाने की इच्छा जाहिर की.
- उन्होंने बताया कि शुक्रवार 1 सितम्बर 2017 को वह भइयाजी के नरही स्थित निवास पर मिलने भी गई थी.
- भइया जी हार्ट और न्यूरों की बीमारियों के चलते बहुत कमजोर हो गये थे.
- शुक्रवार की रात को सिविल अस्पताल में उनका स्वर्गवास हुआ.
- इस दौरान श्रीमहंत देव्यागिरि ने भइया जी के भतीजे अजय कुमार को सांत्वना भी दी.
बीमारी के बाद भइयाजी ने लिया था देहदान का संकल्प-
- जानकारी के मुताबिक, वरिष्ठ समाज सेवी ‘भइयाजी’ का जन्म 16 नवम्बर 1930 को हुआ था.
- भइयाजी 1935 से नरही में रह रहे थे।.
- 1995 से पहले 30 साल से अधिक समय तक नरही के पार्षद रहे.
- भइयाजी के प्रयास से ही चिड़ियाघर का नाम प्रिंस ऑफ वेल्स जूलॉजिकल पार्क से बदल कर लखनऊ प्राणी उद्यान हुआ था.
- जिसे अब नवाब वाजिद अली शाह जूलोजिकल गार्डेन नाम से जाना जाता है.
- सप्रू मार्ग पर ब्रिटिश ग्रेवयार्ड की जमीन पर कुष्ठ रोगियों के इलाज के लिए मदर टेरेसा होम शुरू होना भी भइयाजी की ही देन है.
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- इतना ही नहीं उन्होंन अपनी 60 एकड़ जमीन भी मिशनरीज ऑफ चैरिटी को दे दी थी.
- सिविल अस्पताल का वर्तमान स्वरूप भी उन्हीं की देन है.
- 14 सितम्बर को तबीयत बिगड़ने पर उन्हें सिविल अस्पताल में भर्ती करवाया गया था.
- बीमारी के बाद उन्होंने देहदान का संकल्प ले लिया था.
- बीमारी के बावजूद वह अस्पताल में रहकर इलाज नहीं करवाना चाहते थे.
- इसी के चलते सिविल से पहले उन्हें लोहिया अस्पताल में भर्ती करवाने के दौरान घर लौट आए थे.
- भइया जी ने अपनी शादी तक नहीं की थी.
- उन्होंने अपना सारा जीवन समाज सेवा में लगा दिया.
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