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राजधानी के सरकारी अस्पतालों में रेफरल का खेल नया नहीं है लेकिन, दुखद ये है की इस रेफर के खेल में आये दिन मासूम नवजातों की जिंदगी ख़त्म हो रहीं हैं। मासूम नवजातों की जिंदगी से खेलने वाले इन सरकारी अस्‍पतालों को शायद इनकी बिल्‍कुल भी चिंता नहीं है। तभी तो ऑनलाइन मिलने वाली जानकारी को भी वह देखने की जहमत नहीं उठाते जिसके चलते एक मां की गोद सूनी हो जाती है। एनआईसीयू में बिस्‍तरों का अभाव इन मासूमों को इलाज दिलाने में आड़े आता है। जबकि सरकार ने समस्त एनआईसीयू की जानकारी ऑनलाइन करने का निर्देश है। बावजूद इसके इन आदेशों का पालन नहीं हो रहा है।

आगे पढ़ें : क्यों नहीं मिल पाता  मासूमों को इलाज…

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KGMU में भी नहीं किया जाता है भर्ती

 

  • लोहिया, डफरिन और झलकारीबाई जैसे अस्‍पतालों से नवजातों को केजीएमयू रेफर किया जाता है।
  • राजधानी में कुल 9 बाल महिला अस्पताल हैं।
  • लेकिन यहाँ पर ज्यादा सुविधाएं नहीं हैं।
  • इन बाल महिला अस्पतालों में से ज्यादातर में तो एनआईसीयू की व्यवस्था ही नहीं है।
  • यहाँ जन्मे प्री-मच्योर बच्चों को मजबूरी में दूसरे अस्पतालों और KGMU रेफर किया जाता है।
  • जबकि उस मासूम को वहां भी इलाज नहीं मिल पता है और ये बात उन्हें पता भी है।
  • क्‍योंकि वहां तो पहले से ही बेतहाशा भीड़ है।
  • ऐसे में दूसरे बच्चे को कैसे इलाज मिल सकेगा।
  • इस खेल का खामियाजा हर तरफ से मासूम नवजात को ही भुगतना पड़ता है।
  • स्‍वास्‍थ्‍य विभाग से यह निर्देश हुआ था की अस्पताल एनआइसीयू का ब्‍यौरा ऑनलाइन रखें।
  • बावजूद इसके अब तक कोई भी ब्यौरा ऑनलाइन नहीं किया जा रहा है।
  • या यूं कहे की कोई भी अस्पताल इतना मानसिक दबाव नहीं लेना चाहता है।
  • इसमें यह जानकारी भरनी है कि किसी भी अस्‍पताल में इस वार्ड में कितने बिस्‍तर हैं।
  • इनमे कितने खाली व कितने भरे हैं। इन जानकारियों को ऑनलाइन करने का तात्‍पर्य ही यह था।
  • कोई भी अस्‍पताल अपने यहां से नवजात को रेफर करने से पहले उस दूसरे अस्‍पताल एनआइसीयू के बिस्‍तरों को देख ले।

आगे पढ़ें : nicu के नाम पर कैसे लूटते है निजी अस्पताल 

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नहीं होता है नियमों का पालन

 

  • सात दिन पहले एक व्यक्ति अपने पोते को लेकर लोहिया अस्‍पताल के एनआईसीयू वार्ड में भर्ती कराने आए थे।
  • उनके नवजात को भर्ती तो कर लिया गया लेकिन बाद में उनसे कहा गया कि उनके पोते की हालत नाजुक है उसे केजीएयमू ले जाएं।
  • यह सुनकर उन्‍होंने अपने बेटे को तत्‍काल केजीएमयू भेजा।
  • लेकिन, वहां पहुंचने पर नवजात को भर्ती करने से साफ मना कर दिया गया।
  • केजीएमयू के डॉक्‍टर का कहना था कि एनआइसीयू में एक भी बिस्‍तर खाली नहीं है।
  • इस पर जब धनलाल ने लोहिया अस्‍पताल के डॉक्‍टरों से यह बात कही तो उनका कहना था कि ऐसे में यदि नवजात को कुछ हो जाता है तो उनकी जिम्‍मेदारी नहीं होगी।
  • क्‍योंकि उनका कहना था की वे नवजात को रेफर करने को तैयार हैं।
  • सरकारी एनआइसीयू में जगह न मिलने पर गरीब परिवार अपने बच्‍चे को लेकर निजी अस्‍पताल भी नहीं जा सकता है।
  • इसकी वजह है कि किसी भी निजी अस्‍पताल में एनआइसीयू के एक बेड का खर्च रोजाना का 5 से 10 हजार रूपए है।
  • जो कि किसी भी गरीब परिवार के लिए वहन कर पाना संभव नहीं है।
  • वहीं दूसरी ओर सरकारी अस्‍पतालों में रोजाना का बेड चार्ज 200 से 300 रूपए है।

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आगे पढ़ें : किस अस्पताल में हैं कितने वेंटिलेटर 

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सिविल में अभी तक नहीं लगे वेंटिलेटर

 

  • राजधानी के सिविल अस्पताल में बीमार बच्चों की संख्या को देखते हुए बाल रोग विभाग में 10 वेंटिलेटर लगने थे।
  • इसके लिए स्वास्थ्य विभाग की ओर से बजट भी जारी किया गया था।
  • लेकिन, अस्पताल प्रशासन की लापरवाही के कारण अभी तक ये वेंटिलेटर नहीं लग सके हैं।
  • आपको बता दें की साल 2014 में सिविल अस्पताल में 10 वेंटिलेटर लगने थे।
  • जो की तीन साल बीत जाने के बाद अभी तक नहीं लग सके हैं।
  • इससे यहाँ आने वाले या गंभीर हालत में जन्मे बच्चो की जान को खतरा बना हुआ है।
एनआइसीयू व वेंटिलेटर सुविधा

अस्पताल       एनआइसीयू बेड          वेंटिलेटर

केजीएमयू             60                   उपलब्ध

डफरिन                 20                      नहीं

लोहिया                 12                      नहीं

झलकारीबाई          06                     नहीं

 

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