यूं तो भारत के कई रेलवे स्टेशन के नाम कुछ महत्वपूर्ण लोगों के नाम पर है। लेकिन भारत में एक स्टेशन ऐसा भी है जो किसी के नाम पर तो नहीं है लेकिन किसी के नाम की वजह से इस स्टेशन को दुनियाभर में जाना जाता है। ये विश्व प्रसिद्ध स्टेशन कोई और नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के संत कबीर जिले में स्थित मगहर स्टेशन है। जिसे संत कबीर के निर्वाण भूमि के नाम से जाना जाता है। मगहर स्टेशन पर हर जगह अंकित कबीर के दोहे और साखियों को देखते ही बनता है। मगहर गोरखपुर से लगभग 30 किलोमीटर दूर पश्चिम में संत कबीर नगर जिले में स्थित है। यह जिला 5 सितंबर 1997 को बस्ती जिला से अलग होकर नया जिला बना।
कबीर की ‘समाधि’ भी ‘मजार’ भी :
- विश्व में एक मात्र आश्चर्य है कि किसी संत की समाधि और मजार दोनों है।
- कबीर 1518 की माघ एकादशी के दिन मगहर में अंतर्ध्यान हो गए थे।
- बताया जाता है कि उनके शरीर के स्थान पर पुष्प एवं चादर मिले।
- जिसे हिन्दू राजा वीरदेव सिंह बघेल और मुस्लिम नवाब बिजली खान पठान ने बांट लिया।
- पुष्प को हिंदू चिन्ह के रूप में माना गया और चादर मुस्लिम चिन्ह माना गया।
- पुष्प एवं चादर को बांटकर इस जगह पर समाधि एवं मजार बनवाई।
- जो आज भी मगहर में विद्यमान है
कबीर ने तोड़ा मिथक :
- संत कबीर मगहर कब आये इस बारे में कोई निश्चित तिथि कह पाना संभव नहीं है।
- एक मिथक के अनुसार “काशी में मरने से मुक्ति होती है और मगहर में शरीर त्यागने से नर्क मिलता है’।
- कबीर इसी मिथक को तोड़ने के लिए जीवन के आखिरी दिनों में काशी से मगहर चले आये।
- कबीर पंथी परम्परा के अनुसार कबीर साहब काशी में एक सौ सतरह वर्ष रहे और अंत में मगहर पधारे ।
- मगहर में वे तीन वर्ष रहे और 1518 ई0 में 119 वर्ष सात महीने और ग्यारह दिन की अवस्था पूर्ण कर माघ शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन निर्वाण को प्राप्त हुए।
मगहर नाम के पीछे की कहानी:
- कैसे पड़ा मगहर का नाम इस बारे में कई जनश्रुतियां हैं।
- जिनमें एक यह है कि ईसा पूर्व छठी शताब्दी में बौद्ध भिक्षु इसी मार्ग से कपिलवस्तु, लुम्बिनी जैसे प्रसिध्द बौद्ध स्थलों के दर्शन हेतु जाते थे।
- भारतीय स्थलों के भ्रमण के लिए आने पर इस स्थान पर घने वनमार्ग पर लूट-हर लिया जाता था।
- इस असुरक्षित रहे क्षेत्र का नाम इसी वजह से ‘मार्ग-हर’ अर्थात ‘मार्ग में लूटने वाले से’ पड़ गया।
- जो कालान्तर में अपभ्रंश होकर मगहर बन गया।
मगहर महोत्सव :
- मगहर महोत्सव हर साल मकर संक्रांति के अवसर आयोजित होता है।
- महोत्सव का इतिहास काफी पुराना है।
- शुरुआत के दिनों में पहले मकर संक्रांति के दिन सिर्फ एक दिन मेले का आयोजन होता था।
- 1932 में तत्कालीन कमिश्नर एस.सी.राबर्ट ने मगहर के धनपति स्वर्गीय प्रियाशरण सिंह उर्फ झिनकू बाबू के सहयोग से यहां मेले का आयोजन कराया था।
- राबर्ट जब तक कमिश्नर रहे तब तक वह हर साल इस मेले में सपरिवार भाग लेते रहे।
- उसके बाद 1955 से 1957 तक लगातार तीन साल भव्य मेलों का आयोजन किया गया ।
- 1987 में इस मेले का स्वरूप बदलने का प्रयास शुरू किया गया।
- 1989 से यह महोत्सव सात दिन और फिर पांच दिन का हो गया।
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