मुजफ्फरनगर के दंगों पर बन रही फिल्म शोरगुल को लेकर जिमी शेरगिल के खिलाफ फतवा जारी हुआ है। फिल्म के रिलीज़ होने से पहले ही इससे जुड़े विवाद थमने का नाम नहीं ले रहे हैं।
मुजफ्फरनगर दंगों पर आधारित फिल्म पर यूपी के विभिन्न शहरों में लगा बैन अभी विवादों में छाया ही हुआ था कि इसी बीच फिल्म को लेकर एक्टर जिमी शेरगिल पर फतवा जारी कर दिया है, जिसके बाद फिल्म की रिलीज़ होने की तारीख को 1 जुलाई कर दिया गया है जो कि पहले 24 जून थी।
जिमी शेरगिल पर यह फतवा खम्मन पीर बाबा कमेटी ने मुस्लिमों की भावना को ठेस पहुंचाने के आरोप में जारी किया है। इस फिल्म को यूपी के मुजफ्फरनगर दंगों पर बनाया गया है और ये फिल्म समाज के प्रतिबिम्ब को दर्शाती है। ऐसे में इस मूवी का बैन किया जाना फिल्म और फिल्मकारों के लिए अच्छा संकेत नहीं है। पूरी फिल्म महज एक पोलिटिकल ड्रामा है और ये किसी व्यक्ति विशेष या समाज विशेष को इंगित करने के उद्देश्य से नहीं बनाई गई है। फतवे में कहा गया है कि जिमी शेरगिल यूपी में शूटिंग नहीं करेंगे मूवी को पूरे प्रदेश में बैन करने की बात भी कही गई है।
फिल्म उड़ता पंजाब में कुछ सीन कट करने को लेकर जिस प्रकार देश में फिल्मों पर राजनीति शुरू हुई है, ‘शोरगुल‘ पर बैन उस कड़ी को और आगे बढाता दिख रहा है। स्थानीय प्रशासन लोगों के दवाब में मूवी बैन कर रहा है और अबतक यूपी के मुजफ्फरनगर, कानपुर, लखनऊ औऱ गाजियाबाद जैसे शहरों में बैन कर दिया गया है और अब इसको लेकर फिल्मकार यूपी के सीएम अखिलेश यादव से मिलने वाले हैं।
फ़िल्मकार व्यास वर्मा इस घटना से खासे नाराज हैं और उन्होंने कहा, ‘यह खबर बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और दुखद है। मैं प्रशासन से पूछना चाहता हूं कि वह खासतौर पर मुजफ्फरनगर में फिल्म पर क्यों रोक लगा रहा है। क्या उन्हें किसी खास बात का डर है? क्या मुजफ्फरनगर के लोगों को यह देखने का हक नहीं है कि देश में क्या हो रहा है? इस फिल्म में आम आदमी की आवाज उठाई गई है।
ऐसे में ये सवाल यूपी प्रशासन के लिए सिरदर्द बन सकता है कि किसी समुदाय विशेष या संगठन के दवाब में आकर फिल्म को बैन करना कितना तर्कसंगत है। उड़ता पंजाब निसंदेह एक सामाजिक सन्देश देती हुई फिल्म थी और इसी तर्ज पर शोरगुल भी समाज को वो प्रतिबिम्ब दिखाने का प्रयास कर रही है जो दंगों और तुष्टीकरण की राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए आम जनता को आग में धकेलते हैं।