आखिर मदरसो में राष्ट्रगान क्यों नही गाया जा सकता है? तिरंगे के सम्मान पर क्यों है ऐतराज.? या महज सियासत है या फिर धार्मिक उन्माद की आड़ में कोई साजिश? वरना क्या वजह है कि देश के सम्मान से जुड़े गीत और ध्वज से किसी भारतीय को चाहे वह किसी भी मजहब का हो, क्यों ऐतराज है? आखिर क्यों राष्ट्र के सम्मान से जुड़े मसले पर अदालत को हस्तक्षेप करना पडा? योगी सरकार में स्वतंत्रता दिवस के दिन राष्ट्रगान गाने औऱ तिरंगा फहराने के आदेश को कुछ मुस्लिमों की तरफ से दी गई चुनौती को अदालत ने सीधे तौर पर खारिज कर दिया.
हाई कोर्ट की मौलाना को दो टूक, नहीं मिलेगी छूट
- इलाहाबाद हाई कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि मदरसों को राष्ट्रगान गाने से छूट नहीं मिलेगी.
- हाई कोर्ट ने कहा है कि राष्ट्रगान और तिरंगे का सम्मान संवैधानिक कर्तव्य है.
- उच्च न्यायालय ने राष्ट्रगान को जाति, धर्म और भाषा भेद से परे बताते हुए मदरसों की आपत्तियों को दरकिनार कर दिया.
- हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद अब मदरसों में राष्ट्रगान अनिवार्य रूप से गाना ही पड़ेगा.
ये था मामला –
- दरअसल योगी सरकार ने स्वतंत्रता दिवस के दिन सभी मदरसों को यह लिखित आदेश दिया था कि वह स्वतंत्रता दिवस मनाये.
- इस दौरान राष्ट्रगान औऱ राष्ट्रगीत गाये औऱ तिंरग फहराये.
- और सारे कार्यक्रम करने के बाद इसकी रिकॉर्डिंग सरकार को भेजे.
- इस फरमान को लेकर यूपी में मतभेद के स्वर खड़े हो गये.
- मुस्लिम संगठनों ने यूपी सरकार पर मुस्लिमों की देशभक्ति पर संदेह करने का आरोप लगाया था.
- मुस्लिम संगठनों से योगी सरकार के आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट मे चुनौती दी थी.
- लेकिन अदालत ने इसे खारिज कर दिया.
मुस्लिमों भी था मतभेद.
- मदरसों में राष्ट्रगान गाने को लेकर मुस्लिमों में भी विरोध था.
- बरेली मसलक के लोग राष्ट्रगान नही गाने की जिद पर अड़े रहे.
- वहीं देवबंदियों को राष्ट्रगान गाने से ऐतराज नही था.
- कुछ मसलक के लोग राष्ट्रगीत यानि वंदे मातरम नहीं गाने पर अड़े रहे.
- ज्यादातर मुस्लिमों को वंदे मातरम गाने से ऐतराज है क्योंकि उनक कहना है कि वह अल्लाह के अलावा किसी की इबादत नही कर सकते चाहे वह देश ही क्यों न हो.
- ऐसे मुस्लिम धर्म के लोग सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा गाने को तैयार थे.
जमकर हुई थी सियासत:
- इस मुद्दे पर मुस्लिम वोट बैंक के सहारे अपनी सियासत चमकाने वालों ने जमकर सियासत की.
- योगी सरकार के इस फैसले का विरोध किया जाने लगा.
- यह सोचे बगैर कि यह देश के सम्मान से जुडा हुआ मसला था.
- विरोध करने वालों में समाजवादी पार्टी के कुछ नेता थे तो कुछ कांग्रेस औऱ एआईएमआईएम से जुडे नेता.
- जो बार बार यह कह रहे थे कि योगी सरकार का यह आदेश मुस्लिमों पर शक पैदा करने वाला है औऱ समाज मे खाई पैदा कर रहा है
- .हालांकि ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर पार्टियों की तरफ से कोई अधिकृत बयान नही आय़ा.
- लेकिन नेताओं ने व्यक्तिगत तौर पर बयानबाजी कर इस मुद्दे को गर्म कर दिया.
मुस्लिमों का रहा है देशभक्ति का शानदार इतिहास..
- यह शायद बहुत कम लोग जानते होंगे कि कांग्रेस से पहले जमीयत उलेमा हिंद ने देश में क्विट इंडिया और अंग्रेजों भारत छोड़ो का प्रस्ताव पारित किया
- जिसे मौलाना अबुल कलाम आजाद ने जमीयत के मंच से पढा था.
- आजादी की जंग मे उत्तर प्रदेश के ही दारुल उलूम देवबंद का शुरुआती दौर से ही बड़ा योगदान रहा औऱ उलेमाओ देश के लिये बड़ी कुर्बानिया दी
- इतिहास के पन्नों में इसकी तारीखे दर्ज है.
- यहां यह जानना भी महत्वपूर्ण होगा कि उलेमाओं ने 1857 के स्वाधीनता संग्राम में भी भाग लिया था और उसमें अपनी पूरी ताकत झोक दी थी इन उलेमाओं ने.
- इनमे से कई उलेमाओं को काला पानी की सजा तक झेलनी पडी.
- जंगे आजादी मे यह उलेमा शान से तिरंगा फहराते हुए औऱ वंदे मातरम गाते हुये सडकों पर नजर आते थे.
क्यों हो रहा है विवाद:
- दरअसल कुछ बुद्धिजीवी हमेशा तुष्टीकरण को घातक बताते रहे.
- वह तुष्टीकरण चाहे अल्पसंख्यकों हो या बहुसंख्यकों का.
- या किसी खास जाति का.
- एक पक्ष को बढ़ावा देकर वोट हासिल करने की सियासत ने सबसे पहले देश की कौमी एकता को नष्ट किया.
- बीते कुछ समय से पाकिस्तान परस्ती औऱ कथित जेहादी संगठनों के चक्कर में फंस कर देश के कई मदरसों और अल्पसंख्यकों की मजहबी इमारतों से देश विरोधी गतिविधियों के संचालन की घटनाएं सामने आती रही है
- इनकी तादाद अभी भी कम है.
लेकिन फिर भी कई बार ऐसी घटनाएं सामने आई कि स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस पर किसी मदरसे में पाकिस्तानी झंडा फहरा दिया गया तो कही राष्ट्रगान नही गाया गया तो कई मदरसों ने राष्ट्रीय पर्व मनाया ही नही.
इन घटनाओं पर हिंदू वादी संगठनो ने भी बवाल खड़ा किया औऱ अक्सर इस तरह की घटनाएं पूरे मुस्लिम समाज के खिलाफ कुछ सियासी दलों को बोलने का मौका दे देती है.
ऐसे में सवाल यह कि :
- आखिर क्यों देश के किसी भी मजहब के मानने वाले को राष्ट्रगान गाने या तिरंगे का सम्मान करने पर ऐतराज है?
- क्या राष्ट्रीय अस्मिता का सवाल मजहब से उपर नही होना चाहिये?
जब पाकिस्तान के बुद्धीजीवि एक मुस्लिम राष्ट्र में रहते हुये भगत सिंह चौक बनवा सकते है औऱ भगत सिंह को अपने देश के पाठ्यक्रम मे शामिल कर सकते हैं तो भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में किसी को मनमानी करने की इजाजत क्यों दी जाये?
- आखिर क्यों देशभक्ति से जुड़े मसले में अदालत को हस्तक्षेप करना पडा?
- क्या देश का कोई व्यक्ति चाहे वह किसी भी मजहब का हो उसे यह अधिकार है कि वह जाकर अदालत मे इस बात की याचिका दायर करे कि वह राष्ट्रगान नही गा सकता या तिरंगे का सम्मान नही कर सकता है?
- क्या राष्ट्रगान का विरोध करने वाले टीपू सुल्तान औऱ बहादुर शाह जफर का इतिहास भूल गये है..
- या जानबूझ कर देश मे धीरे-धीरे ऐसे हालात पैदा कर दिये गये है कि देश का एक तबका देश के सम्मान पर ही सवाल खड़े करने लगा है.
- क्या तुष्टीकरण की राजनीति ने देश के एक तबके को ऐसा मौका दिया है.
- या फिर देश के हर हिस्से मे पनप रहे आतंकियों के स्लीपिंग माड्यूल्स ने धीरे धीरे यह जहर देश के कुछ मुसलमानों में घोल दिया है.
- क्या किसी औऱ मुल्क मे यह संभव है कि वहां का कोई भी नागरिक चाहे वह किसी भी मजहब का हो वह उस देश के राष्ट्रगान का अपमान कर सके.
- या कोई आपत्ति जाहिर कर सके.
ये सब भारत में ही क्यों होता है?
- अगर नहीं तो फिर यह उदारता भारत में ही क्यों दिखाई जा रही है.
- क्यों नही देश के सभी शिक्षण संस्थानों, सरकारी गैर सरकारी कार्यालयों सभी सार्वजनिक स्थलों पर इसे अनिवार्य कर दिया जाता है.
- सबसे अहम सवाल आखिर क्यों देश की सियासी जमात राष्ट्रगान जैसे राष्ट्रीय अस्मिता से जुड़े मुद्दे पर भी सियासत शुरु कर देती है.
- जो लोग देश के सम्मान से जुड़े गीत औऱ राष्ट्रीय प्रतीक चिन्हों का सम्मान नही कर सकते उनसे देशभक्ति की उम्मीद कैसे की जा सकती है.
- इन तमाम हालातों में देश की गंगा जमुनी तहजीब को तो धक्का लग ही रहा है साथ ही दुनिया के तमाम दूसरे मुल्कों मे भी देश की तस्वीर बिगड़ने का खतरा बना हुआ है.
- कोशिश यह होनी चाहिये कि देश के सम्मान के मुद्दे पर राष्ट्र को एकसूत्र मे बंधा हुआ नजर आना चाहिये और महजबी मामलो को देश की अस्मिता के आड़े नही आने देना चाहिये..