उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ का वातावरण जियोग्राफी के कारण गर्मियों में बेहद गरम और सर्दियों में बेहद सर्द होता है. मौसम विभाग की मानें तो इस साल पिछली सर्दियों से मौसम ज़्यादा सर्द रहने वाला है. दोनों मौसमों में सिर्फ स्वेटर, कोल्डड्रिंक और चाय की चुस्की का फर्क नहीं है बल्कि फर्क है सड़क किनारे रात गुज़ार पाने का.
रैनबसेरा में रहने वालों का दर्द कौन समझेगा?
- गर्मियों में यह फिर भी मुमकिन है की लखनऊ के आसपास के इलाके से रोज़ी रोटी कमाने के लिए राजधानी में आने वाले गरीब मजदूर सड़क किनारे किसी तरह रात गुज़ार लें.
- लेकिन सर्दियों में हाड़ कपाने और सीत वाली रात में खुले आसमान के नीचे सो जाएं यह ख़याल भी बड़ा भयानक लगता है.
- लखनऊ शहर के किसी भी इलाके में फिर आपको यह गरीब मजदूर दिनभर रिक्शा चलाकर, छोटे मोटे काम करके खाली पेट किसी ऊँचे फुटपाथ पर तिरपाल ओढे सोते दिख जाएंगे.
- इस उम्मीद में कि रात में शायद कोई गाड़ी वाला शराब के नशे में इन पर गाडी नहीं चढ़ा देगा या फिर गश्त लगाती पुलिस इन्हें यहाँ से उठकर वहां सोने के लिए मजबूर नहीं करेगी.
- कहने के लिए प्रशासन हर साल की तरह इस साल भी जगह जगह अलाव जलायेगी और कुछ धन्नासेठ CSR के रास्ते अखबार में फोटो छपवाने के लिए टेंट नाट टांग देंगे और लिख देंगे.
- रैनबसेरा: सौजन्य X Y Z लेकिन क्या इतने से काम चल जायेगा.
- या फिर हमें ज़रुरत है प्लानिंग की?
- ताकि फिर से कोई गरीब पिछले साल की तरह इस साल बहुखंडी पर सड़क किनारे फुटपाठ पर किसी ऐसे ही सौजन्य से वाले रैनबसेरा में किसी विधायक के नशे में धुत भतीजे की गाड़ी के नीचे न आ जाये.
- ज़रुरत है!! पर शायद यह रैनबसेरा में सोने वाले गरीबों की किसी को ज़रुरत नहीं.
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