उत्तर प्रदेश की आधी आबादी के लिए गन्ने की खेती जीने का सहारा है। लगभग 50 लाख से ज्यादा किसान परिवार इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। मगर फिर भी वोटों की राजनीति करने वालों को किसानों की दुर्दशा नहीं दिखाई देती है। ब्याज मुक्त कर्ज और टैक्स रियायतों के लिए सिर्फ चीनी मिलों को अरबों के पैकेज मिले मगर किसान के हाथ सिर्फ बदहाली ही आई। (sugarcane farmers)
सिर्फ एक फसल नहीं गन्ना :
- उत्तर प्रदेश में गन्ना सिर्फ एक फसल नहीं है इसके और भी बहुत उपयोगी इस्तेमाल हैं।
- यहाँ पर गन्ने से चीनी, शीरा, इथेनोल, बिजली और खोई बनते हैं।
- ज्यादातर चीनी मिल समूह में गन्ने के शीरे से ही शराब का निर्माण करते हैं।
- गन्ने की हालत इस्ससे पता चलती है कि गन्ना की कीमत 300/क्विंटल और खोई 350 पर बिकती है।
- यूपी को देश में सबसे ज्यादा गन्ना उत्पादक का दर्जा मिला है पर उसका किसान आज भी बेहाल है।
- गन्ना किसानों की ये बहाली पिछले 3-4 सालों में देखने को मिली है।
- 3 साल तक गन्ना के मूल्य में कोई बढ़ोत्तरी नहीं की गयी थी।
- इसके कारण किसानों ने बेबस होकर मौत को गले लगाना ज्यादा अच्छा समझा।
- यूपी चुनाव के समय गन्ना किसानों की हालत का मुद्दा काफी जोरों से उठाया गया था।
एक नजर में गन्ना की फसल :
- गन्ने की फसल की नगद कीमत लगभग 25-28 हजार करोड़ रुपयों की है।
- इसमें से 20-22 हजार करोड़ का गन्ना तो सिर्फ चीनी मिलें खरीदती हैं।
- साथ ही 3-4 करोड़ रूपये का गन्ना गुड़, जूस और बीज उद्योग में इस्तेमाल होता है।
- राजनैतिक दलों में देखें तो सपा-कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में किसानों की हालत का जिक्र नहीं किया।
- वहीँ भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में 14 दिन के अंदर गन्ना मूल्य के भुगतान का वादा किया था।
- हकीकत में 14 दिन में गन्ना भुगतान का प्रावधान एक्ट में दिया गया है।
- इसके साथ ही 15% ब्याज की भी व्यवस्था है।
3 सालों से नहीं बढ़ा गन्ना मूल्य :
- चीनी मीलों ने अभी तक लगभग 14,413 करोड़ रुपयों का गन्ना खरीदा है।
- इसका भुगतान किसानों को 14 दिन के अंदर ही हो जाना चाहिए था।
- इसका किसानों को भगतान लगभग 12031.48 करोड़ बनता है।
- साल 2012-13 में प्रदेश सरकार ने 280-290 रूपये क्विंटल मूल्य बनाया था।
- इसके बाद 2013 से 2016 तक गन्ना मूल्य में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई थी।
- फिर साल 2016-17 गन्ना मूल्य में 20 रूपये क्विंटल की बढ़ोत्तरी की गयी।
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