महाशिवरात्रि के अवसर पर चार दिवसीय मनकामेश्वर पर्व का आरम्भ आज चित्रकला व मूर्तिकला प्रतियोगिता के साथ डालीगंज स्थित त्रेताकालीन महादेव धाम मनकामेश्वर मठ-मंदिर मे हुआ। ‘हम शिव के शिव हमारे’ विषयक पर आधारित प्रतियोगिता में बच्चों की कल्पना पेंट ब्रश व रंगो का साथ पाते ही शिव के स्वरुप को पन्नों पर उतारने के लिए समय की सीमाओं को तोड़ती हुई अपराह्न से सांध्यकाल तक पहुंच गई। इस अवसर पर स्वास्तिक कंपनी प्राइवेट प्राइवेट लिमिटेड के सीएमडी प्रदीप कुमार गुप्ता मुख्य अतिथि के रूप मे शिरकत की। महंत देव्यागिरि के सानिध्य में हुए इस कार्यक्रम मे विश्वकल्याण महाआरती की गई। रविवार व विजयाएकादशी होने के कारण महादेव दर्शन लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा।
हम शिव के शिव हमारे प्रतियोगिता में बच्चों ने दिखाए जौहर
लखनऊ के विभिन्न विद्यालयों से आये हुए बच्चों ने चित्रकला व मूर्तिकला प्रतियोगिता मे हिस्सा लिया। तुलसा देवी इंटर कॉलेज गोमती नगर लखनऊ, बेस्ट कैरियर इंटेर कॉलेज त्रिवेणी नगर, महानगर पब्लिक इंटर कॉलेज कृष्णानगर, द ओफ पब्लिक स्कूल हसनगंज डालीगंज व अवध अकादमी इंटर चिनहट लखनऊ मुख्य रूप से इस प्रतियोगिता के प्रतिभागी बने।
शिव परिवार का मोहक चित्र बनाकर सबको मन्त्र मुग्ध करने वाली महानगर पब्लिक इंटर कॉलेज कृष्णानगर रुद्रिका मनस्वी को प्रथम पुरस्कार मिला, ब्रह्म शिव अवतार को अपनी तूलिका से उकेर अवध अकादमी दीपा शाह को द्वितीय पुरुस्कार से सम्मानित किया गया। वहीं नीलकण्ठ स्वरुप शिव को चित्रित करने वाली तुलसा देवी इंटर कॉलेज गोमती नगर की रिंकी यादव को तीसरा पुरस्कार मिला। सांत्वना पुरुस्कार रोली चौधरी, स्नेहा कुमारी, विनीत कश्यप व अदिति गुप्ता ने जीता। पुरुस्कार स्वरुप समस्त बच्चों को प्रशस्ति पत्र व विभिन्न मोहक पुरस्कार दिया गया।
लड़कियों ने सजाई रंगोली
मनकामेश्वर मठ-मंदिर परिसर में उपमा पांडेय के निर्देशन में कल्पना, संगीता, नीतू, पूनम, ऋतु समेत अन्य लड़कियों ने फूलों एवं दीपों से रंगोली सजाई।
‘पंडित दीनदयाल उपाध्याय’ की पुण्यतिथि पर दी गई श्रद्धांजलि
पं. दीनदयाल उपाध्याय की 50 वीं पुण्यतिथि को मठ-मंदिर परिसर मे मनाया गया। सामूहिक कार्यक्रम के रूप में परिसर में पं.दीनदयाल उपाध्याय के चित्र पर महिला पुरुष कार्यकर्ताओं व सेवादारों ने पुष्पांजलि अर्पित की। इस अवसर पर महंत देव्या गिरि ने कहा की पंडित दीनदयाल ने एकात्म मानववाद के आधार पर एक ऐसे राष्ट्र की कल्पना की जिसमे विभिन्न राज्यों की संस्कृतियाँ विकसित हों और एक ऐसा मानव धर्म उत्पन्न हो जिसमे सभी धर्मों का समावेश हो, जिसमे व्यक्ति को सामान अवसर और स्वतंत्रता प्राप्त हो जो एक सुदृढ़, सम्पन्न एवं जागरूक राष्ट्र कहलाये।
पंडित जी के शब्दों में एकात्म मानववाद का सार कुछ इस तरह है
“हमारी सम्पूर्ण व्यवस्था का केंद्र ‘मानव’ होना चाहिए। जो ‘यत् पिंडे तत् ब्रह्मांडे’ के न्याय के अनुसार समिष्ट का जीवमान प्रतिनिधि एवं उसका उपकरण है। भौतिक चीजें मानव के सुख के साधन हैं, साध्य नहीं। पंडित जी का मानना था कि व्यक्ति का अर्थ सिर्फ उसका शरीर नहीं है, बल्कि उसका मन, बुद्धि, और आत्मा भी है। यदि इन चारों में से किसी एक को भी उपेक्षा की जाए तो व्यक्ति का सुख विकलांग हो जाएगा।”