लेनिन की मूर्ति तोड़े जाने के विरोध में वाम दलों के नेताओं ने विरोध किया। इस दौरान जीपीओ पार्क पर धरना प्रदर्शन भी किया और अपना प्रतिरोध जताया। वाम नेताओं का कहना है कि यह लोकतंत्र का हनन है। इस दौरान नेताओं ने एक सभा भी की। इस दौरान कहा कि त्रिपुरा में कुछ वोट हमें कम मिल गया है। हम चुनाव हार गए हैं, लेकिन इसका मतलब कतई नहीं की हम नष्ट हो गए। हम चुनाव की हार स्वीकार करते है, लेकिन लोकतंत्र और युद्ध में हमेशा सही जीते, हमेशा सत्य की जीत हो यह आवश्यक नहीं।
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वक्ताओं ने स्पष्ट शब्दों में इन कायराना हमलों की तीखी हमलों की आलोचना की। कामरेड सुभाषणी अली ने कहा कि सवाल लेनिन, गांधी, भगत सिंह, आंबेडकर के मूर्तियां तोड़े जाने का नहीं है और न ही सवाल चुनाव हार जाने का है। नफरत की राजनीति लोकतंत्र की हत्या कर सत्ता के नशे में चूर है। कहा कि भूल गए हैं कि मूर्ति तोड़ने से विचार नहीं मरा करते। संघर्ष की विरासत पर हम सत्त्ता में आये थे और हमने भरसक मजदूर वर्ग के हित में काम किया।
हम चुनाव हार गए हैं, नष्ट नहीं हुए
त्रिपुरा में कुछ वोट हमें कम मिल गया है। हम चुनाव हार गए हैं, लेकिन इसका मतलब कतई नहीं की हम नष्ट हो गए। हम चुनाव की हार स्वीकार करते है, लेकिन लोकतंत्र और युद्ध में हमेशा सही जीते, हमेशा सत्य की जीत हो यह आवश्यक नहीं। रुमुसोलिनी ने 1924 का इटली का आम चुनाव 64 परसेंट वोट पाकर जीता था। क्या वो सत्य और सही की जीत थी ? हिटलर ने जर्मनी का फेडरल चुनाव 44 प्रतिशत वोट के साथ 1933 में जीता था तो क्या वो सत्य और सही की जीत थी।
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सत्य और सही की होती है अंतिम विजय
इतिहास हमे बताता है कि सही और सत्य को भी हार का सामना करना पड़ा था और आज भी करना पड़ सकता है। गलत राजनीति की जीत हो सकती है, लेकिन इतिहास गवाह है कि अंतिम विजय सत्य और सही ही कि होती है। मुसोलिनी और हिटलर का अंत किसको याद नहीं। हम कम्युनिस्ट है, गलतियों से सीखते हैं, सुधारते है और जनता की लड़ाई को आगे बढ़ाते है। चुनाव हार से कम्युनिस्ट विचलित नहीं होते हैं और हमारे संघर्ष नहीं रूकते हैं।
त्रिपुरा धरती क्रांतिकारी धरती है
हाँ, त्रिपुरा क्रांतिकारी धरती है, सबक लेकर हम वापिस आएंगे। हमारा लाल झंडा संघर्ष और बलिदान का प्रतीक है, हमने उसको तह करके अगले चुनाव तक के लिए नहीं रख दिया है, वो आम जनता के संघर्ष में उसी सुर्खी से फहराएगा जैसा फहराता आया है। प्रदर्शन में उत्तर प्रदेश किसान सभा के महामंत्री कामरेड मुकुट सिंह, सीटू नेता प्रेम नाथ राय, एडवा से मधु गर्ग, कलपि नेता राधे श्याम, खेत मजदूर यूनियन से बृज लाल भारती, पूर्व विधायक दीनानाथ सिंह, नेता अरुण कुमार, फूलचंद सहित लखनऊ शहर के बड़े तादाद में जनसंगठनों, सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए।