उत्तर प्रदेश का एक ऐसा गांव है जहां आधे से अधिक लोग अपंग है। कारण जानकर आप वास्तव में हैरान हो जाएंगे। कहा जाता है कि पानी हर किसी के लिए जीवनदायनी होती है लेकिन इस गांव में पानी ही उनके लिए जीव का काल बनती जा रही है। जी हां इस गांव के लोग स्वच्छ पानी के अभाव में अपंगता का शिकार हो जाते है। इस कारण इस गांव में कोई भी शादी करने को तैयार नहीं होता है। वहीं शासन प्रशासन के उदासीनता के कारण गांव के लोग दुर्गम परिस्थितियों में जीने को विवश हैं।
बचपन से ही होने लगते हैं अपंगता का शिकार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मंशा है देश का पूरी तरह से विकास हो, लेकिन विकास की यह लहर शहर तक सीमित न रहे बल्कि सुदूर गांवों तक भी पहुंचे। लेकिन ताजनगरी आगरा में ये दावे उस समय अपना अर्थ खो देते हैं जब पानी की वजह से एक गाँव के बच्चे बचपन में ही अपंगता का शिकार बन जाते हैं। विश्वास करना मुश्किल है कि जो पानी हमें जीवन प्रदान करता है वह कभी किसी को इस तरह असहाय बना दे कि अपनी सारी जिंदगी विकलांग के रूप में काटने को मजबूर हो जाए।
आधी आबादी झेल रही विकलांगता का दंश
बता दें कि ताजनगरी कहे जाने वाले इस आगरा शहर से पन्द्रह किलोमीटर दूर गांव पट्टी पचगांई है जहां लोग पानी पीकर ही बीमार हैं। लोगों की हड्डियां कमजोर हो रही है लोग ठीक से चल तक नहीं सकते। अगर किसी गांव में दो, चार व्यक्ति विकलांग हों तो समझ में आए लेकिन यह अपने आप में एक अनोखा गांव है, जहां की आधी आबादी विकलांगता का दंश झेल रही है। किसी के माता-पिता, बेटा-बेटी, भाई-बहन या किसी का पति विकलांग है तो कई लोग विकलांगता की ओर बढ़ रहे है। गांव में किसी का पैर टेढ़ा है तो किसी का हाथ टेढ़ा हो चुका है। कई ऐसे भी हैं जिनका फ्लोरोसिस के अत्याधिक प्रभाव के कारण कमर की हड्डी ही टेढ़ी हो चुकी है। गांव में लगभग सभी के दांत खराब हो चुके हैं।
8-14 वर्ष की उम्र से दिखने लगता है प्रभाव
बच्चों पर तो फ्लोरोसिस का प्रभाव 8 से 14 साल की उम्र में ही दिखने लगा है। इस बीमारी के कारण उन्हें सामाजिक बहिष्कार झेलने पर मजबूर होना पड़ रहा है। स्कूल में आने वाले अन्य गांव के बच्चे पीड़ित बच्चों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना तो दूर, उनकी इस बीमारी के कारण कटे-कटे से रहने लगे हैं। एक तरफ जहां पूरा गांव पानी के दुष्प्रभाव से परेशान है तो वहीं माता-पिता अब अपने बच्चों की शादी नहीं होने से भी चितिंत हैं। गांव के ज्यादातर युवा अब शादी-ब्याह के लायक हो गए हैं फिर भी किसी को दुल्हा तो किसी को दुल्हन नहीं मिल रही है क्योंकि अब इस गांव से कोई स्वस्थ परिवार रिश्ता नहीं जोड़ना चाहता।
नहीं हो पाती के गांव के लोगों की शादी
गॉव के सुनील की उम्र आज 38 साल की है और ये अपने पैरो से ठीक से चल भी नहीं सकता। सुनील का बचपन ऐसा नहीं था लेकिन जवान होते-होते इसकी हालत ऐसी हो गयी इसकी इस हालत की वजह से शादी नहीं हुई। गांव में कुछ और युवाओं का कहना है कि गांव में लगभग लोग ये फ्लोराइड युक्त पानी पीते हैं, जिससे इनकी हालत ऐसी हो जाती है तो ऐसी हालत में कौन इनसे शादी करेगा। गांव के एक टंकी जरूर लगी है लेकिन उसका भी कुछ फायदा नहीं क्योंकि वो भी बन्द है।
फ्लोराइड युक्त पीते हैं पानी
गाँव में दो किशोरों के पैर तो पूरी तरह खराब हो गए हैं। चल फिर भी नहीं सकते। इनकी हालत बचपन से ऐसी नही थी है, इनकी हालत फ्लोराइड युक्त पानी पीने हुयी है ये दोनों किशोर जवानी की दहलीज पर कदम रख चुके इनकी उम्र 16 और 17 साल है। इस गाँव के लोग पानी में फ्लोराइड अधिक होने वजह से सीधे बुढ़ापे की दहलीज पर पहुंच जाते है और बुड्ढों की तरह दिखने लगते है। गांव के लोग पिछले कई दशकों से परेशानी झेल रहे है इनकी कोई सुनाने वाला नहीं है।
शासन प्रशासन करता है मामले की अनदेखी
ऐसा नहीं है की जनप्रतिनिधि और अधिकारी इस बारे में नहीं जानते। रोज बिगड़ते हालात हकीकत बयां करते है कि प्रशासन और जनप्रतिनिधि कितने जागरूक हैं। इस परेशानी को लेकर प्रशासन के अधिकारी ये तो कह रहे हैं कि गाँव वालों को राहत देने के लिये प्रयास किये जायेंगे। लेकिन जनाब ये वही रटा रटाया जवाब है, क्योंकि अगर वास्तव में अधिकारी चाहे तो इस गाँव की समस्या का समाधान हो सकता है।
विधायक ने किया समस्या से निजात दिलाने का वादा
इस इलाके की विधायक हेमलता दिवाकर भी इस विषय को गंभीर मान रही है और कह रही है जल्द इस गांव में स्वयं जाकर समस्या देखूंगी वहाँ जल निगम अधिकारियों को बुलाकर समस्या दूर कराऊंगी। यही नहीं डाक्टर की टीम बुलाकर सबका चेकअप भी कराया जाएगा। बड़ा सवाल ये है कि जब यह समस्या 20 सालों से है तो अबतक इसका निदान क्यों नहीं हो पाया।
आखिर कब जागेगी सरकार
अगर ऐसा ही चलता रहा तो जल्द ही पूरा गांव विकलांग हो जाएगा। फिर भी सरकारी महकमा नहीं चेता तो भविष्य की स्थिति और भी भयावह हो सकती है। सरकार की उदासीन दिन प्रतिदिन किसी ना किसी को विकलांगता का दंश झेलने के लिए मजबूर कर रही है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो गांव के लोगों को बीमारी से बचने के लिए गांव से पलायन करना पड़ेगा। अब कब तक जागेगी सरकार और कब जागेगा प्रशासन क्या हम ऐसे विकास की उम्मीद पाले बैठे हैं।