राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कांग्रेस मुक्त भारत को एक राजनीतिक नारा बताते हुए कहा कि यह संघ की भाषा नही है. मोहन भागवत ने भाजपा के कांग्रेस मुक्त भारत के नारे को संघ की विचारधारा से से अलग बताया. उन्होंने कहा कि हमें राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में सभी लोगों को शामिल करना है, उन लोगों को भी जो हमारा विरोध करते हैं.

मोहन भागत ने किया सरकार के कांग्रेस मुक्त भारत के सपने से किनारा:

मोहन भागवत नागपुर में पुस्तक विमोचन के कार्यक्रम में मौजूद हुए थे, कार्यक्रम के दौरान आरएसएस प्रमुख ने कहा, “ये राजनीतिक नारे हैं. यह आरएसएस की भाषा नहीं है. मुक्त शब्द राजनीति में इस्तेमाल किया जाता है. हम किसी को छांटने की भाषा का कभी इस्तेमाल नहीं करते. हमें राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में सभी लोगों को शामिल करना है, उन लोगों को भी जो हमारा विरोध करते हैं.”

भागवत 1983 बैच के भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी ध्यानेश्वर मुले की छह पुस्तकें लांच करने के लिए कार्यक्रम में पहुंचे थे. मुले विदेश मंत्रालय में फिलहाल सचिव (कांसुलर, पासपोर्ट, वीजा और ओवरसीज इंडियन अफेयर्स) हैं.

आरएसएस के समावेशी चरित्र पर बल देते हुए मोहन भागवत ने कहा कि कांग्रेस मुक्त भारत जैसे नारे राजनीतिक मुहावरे हैं न कि संघ की भाषा का हिस्सा. लेकिन आरएसएस को अपना वैचारिक मातृ संगठन मानने वाली भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने अक्सर कांग्रेस मुक्त भारत की बात की है.

प्रधानमन्त्री दे चुके है कांग्रेस मुक्त भारत का नारा:

बता दें कि फरवरी में संसद में अपने भाषण के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस मुक्त भारत की बात की थी. उन्होंने कहा था कि वह महात्मा गांधी के कांग्रेस मुक्त भारत के सपने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. प्रधानमन्त्री मोदी ने देश की सबसे पुरानी पार्टी पर सत्ता में रहने के दौरान देश की विकास की कीमत पर गांधी परिवार का महिमामंडन करने का आरोप लगाया था.

आरएसएस प्रमुख ने बदलाव लाने के लिए सकारात्मक पहल की आवश्यकता पर बात की और कहा नकारात्मक दृष्टि वाले बस संघर्षों और विभाजन की ही सोचते हैं. उन्होंने कहा,”ऐसा व्यक्ति राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में बिल्कुल ही उपयोगी नहीं है.”

उन्होंने कहा कि हिंदुत्व को देखने का एक तरीका अपने आप, अपने परिवार एवं अपने देश पर विश्वास करना है. भागवत ने कहा,”यदि कोई अपने आप पर, परिवार पर और देश पर विश्वास करता है तो वह समावेशी राष्ट्रनिर्माण की दिशा में काम कर सकता है.”

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