उत्तर प्रदेश विधान परिषद के चुनाव में फिर से विपक्षी एकता दिखाई देने की खबरें आना शुरू हो गयी हैं। राज्यसभा चुनाव में मिली मायूसी के बाद इस चुनाव में सपा क्या बसपा को रिटर्न गिरफ्त दे पाती है, ये देखना काफी दिलचस्प होगा। इस चुनाव में सपा-बसपा और कांग्रेस मिलकर 2 सदस्य चुन कर परिषद् में भेज सकती हैं। राज्य सभा चुनावों में महत्वपूर्व भूमिका निभाने वाले निर्देलीय विधायकों रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भैया और बाबागंज से निर्दलीय विधायक विनोद सरोज पर सभी की नजर टिकी हुई है।
भाजपा को मिलेगी 11 सीट :
उत्तर प्रदेश की विधानसभा में प्रचंड बहुमत होने के कारण भाजपा 324 विधायकों के दम पर आसानी से 11 सीटें जीत सकती है। इसके अलावा समाजवादी पार्टी के पास कुल 47 विधायक हैं मगर नरेश अग्रवाल के भाजपा में चले जाने के बाद उनके विधायक पुत्र नितिन अग्रवाल ने भी भाजपा ज्वाइन कर ली है। ऐसे में उनका वोट इस चुनाव में भी भाजपा को जाएगा। ऐसे में समाजवादी पार्टी अपने दम पर सिर्फ 1 प्रत्याशी को विधान परिषद पहुंचा सकती है। ऐसा करने के बाद भी सपा के पास 16 वोट अतिरिक्त बच जाएंगे जिन्हें वह बसपा के साथ मिलकर उसके प्रत्याशी को परिषद् भेजने में इस्तेमाल कर सकती है।
सपा को नहीं राजा भैया के वोट की जरूरत :
राज्य सभा चुनावों के मुकाबले विधान परिषद में चुनाव का गणित कुछ अलग है। इस चुनाव में जीतने के लिए प्रत्याशी को 29 वोटों की जरूरत है। सपा 46 में अपने 1 प्रत्याशी को जितायेगी साथ ही शेष बचे वोट बसपा को ट्रांसफर करेगी जिससे आसानी से उसका प्रत्याशी जीत जाएगा। ऐसे में निर्दलियों को इस बार शायद कोई नहीं पूछेगा। हालाँकि राजा भैया हमेशा से अपना समर्थन सपा को देते आये हैं तो ऐसे में ख़बरें हैं कि इस बार भी वे सपा को अपनी वोट देंगे मगर अखिलेश के उन पर दिए बयान से कुछ अलग भी हो सकता है।