8 महीने पहले गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में ऑक्सीजन कि कमी से कई बच्चों की मौत का मामला तो याद ही होगा. उस दौरान अस्पताल का एक डॉ मसीहे के रूप में आया और हर मुमकिन कोशिश करते हुए बच्चों को बचाने के लिए अपने स्तर पर ऑक्सीजन सेलेंडर की व्यवस्था की. हम बात कर रहे हैं डॉ काफ़िल की. 

मसीहे से गुनाहगार बन गये डॉ कफील:

गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में अगस्त 2017 में अचानक गैस सिलेंडर की सप्लाई रोक दिए जाने के बाद अस्पताल में एडमिट बच्चों की जान पर बं आई थी. कई बच्चों कि ऑक्सीजन की अनापूर्ति से मौत हो गयी थी. इस मामले ने उस दौरान मसीहा बन कर सामने आने वाले डॉक्टर काफ़िल को बाद में इस दुर्घटना का आरोपी बता कर हिरासत में ले किया गया था. मसीहा अचानक से गुनाहगार बन गया था. बहरहाल डॉ काफ़िल सितंबर 2017 से जेल में बंद है. उन पर आरोप है कि अपनी प्राइवेट प्रैक्टिस चलाने के लिए वो अस्पताल से सिलिंडर निजी क्लीनिक पर ले जाते थे. 8 महीने से जेल में बंद डॉ काफ़िल ने जमानत की भी गुहार लगाई जो की ख़ारिज कर दी गयी.

नहीं मिल रही जमानत:

जब तक कोर्ट का फैसला नही आता यह कह पाना मुश्किल है कि एक मसीहा जो दिन रात एक कर के मौत के हवाले हो रहे बच्चों को बचाने की कोशिश में लगा था, वो सच में अपराधी है. पर डॉ. कफील खान के जेल में लिखे एक खत ने कई सवाल उठा दिए हैं. आठ महीने से जेल में बंद डॉ. कफील खान ने खत में घटना के बारे में तफसील से जिक्र के साथ ही खुद को निर्दोष बताया है।

बिना बेल 8 महीने से जेल, क्या मैं वाकई कसूरवार हूँ..?

10 पेज के खत में जेल की यातना के साथ एक बार उन्होंने मामले में उच्च स्तर पर बरती गई लापरवाही का जिक्र किया गया है। खत में डॉ. कफील कह रहे हैं कि आठ महीने से जेल में यातना, अपमान के बाद भी सब कुछ मेरे यादों में जिंदा है। कभी-कभी मैं अपने आप से सवाल पूछता हूं क्या मैं सच में दोषी हूं, तो दिल की गहराइयों से जवाब मिलता है नहीं, नहीं, नहीं। उन्होंने लिखा है कि छुट्टी पर होने के बावजूद 10 अगस्त को व्हाट्सएप पर जब मुझे खबर मिली तो मैंने वह सब किया जो एक डॉक्टर, एक पिता और देश के एक जिम्मेदार नागरिक को करना चाहिए।
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मैंने सबको कॉल किया:

मैंने सभी लोगों को फोन किया, मैंने खुद ऑक्सीजन का ऑर्डर किया. मुझसे जो कुछ हो सकता था, मैंने वो सब किया. मैंने एचओडी, बीआरडी के प्रिंसिपल, एक्टिंग प्रिंसिपल, गोरखपुर के डीएम सभी को कॉल किया. सभी को स्थिति की गंभीरता के बारे में बताया. मैंने अपने दोस्तों को भी फोन कर उनसे मदद ली.

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गैस सिलेंडर के लिए मिन्नतें कीं:

बच्चों की जान बचाने के लिए मैंने गैस सिलेंडर सप्लायर से मिन्नतें तक कीं. मैंने कुछ पैसों का इंतजाम कर कहा कि बाकी पैसा सिलेंडर मिल जाने के बाद दे दिया जाएगा. मैं बच्चों को बचाने के लिए एक वार्ड से दूसरे वार्ड भाग रहा था. पूरी कोशिश कर रहा था कि कहीं भी ऑक्सीजन सप्लाई की कमी न हो. आसपास के अस्पताल से सिलेंडर का इंतजाम करने के लिए मैं खुद गाड़ी चलाकर गया.

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SSB के डीआईजी ने की मदद:

खत में डॉ. कफील ने बताया कि मैंने एसएसबी के डीआईजी से बात की. उन्होंने काफी मदद की. उन्होंने सिलेंडर लाने के लिए न सिर्फ ट्रक मुहैया कराया, बल्कि कुछ सैनिक भी साथ में भेजे. इसके लिए उनका शुक्रिया. ऑक्सीजन की कमी दूर करने के साथ-साथ हम लोगों ने उस समय टीम के रूप में काम किया.

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सिलेंडर का इंतजाम करने से हीरो बन जाओगे? : सीएम योगी

कफील ने बताया कि 13 अगस्त की सुबह योगी महाराज अस्पताल आए थे. उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या आप ही डॉ. कफील हैं जिन्होंने सिलेंडर का इंतजाम किया? मैंने हां कहां तो वे मुझ पर भड़क गए. उन्होंने कहा कि सिलेंडर का इंतजाम कर लेने से आपको लग रहा कि आप हीरो बन जाएंगे? मैं इसे देखता हूं. इस पूरी घटना के बारे में मीडिया को पता चल जाने से योगी जी गुस्से में थे. मैंने मीडिया को कुछ भी नहीं बताया था, बल्कि वे तो खुद पहुंच गए थे.

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मेरे परिवार को तंग किया, धमकी दी: 

 इसके बाद से मेरे परिवार को तंग किया जाने लगा. पुलिस घर आने लगी. मुझे धमकी दी जाने लगी. मेरा परिवार इन सब बातों से बुरी तरह डर गया था. परिवार को बचाने के लिए मैंने सरेंडर किया. मुझे लगा कि जब मैंने कुछ गलत नहीं किया तो मुझे कैसा डर?
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मुझे लगा कि इंसाफ मिलेगा, लेकिन कई महीने बीत गए. मुझे लग रहा था कि मुझे बेल मिल जाएगी, लेकिन अब मुझे लग रहा कि न्यायपालिका दबाव में काम कर रही है. मेरे साथ-साथ मेरे परिवार की भी जिंदगी नर्क बन गई है. मेरी बेटी एक साल 7 महीने की हो गई है. मैं उसका जन्मदिन भी नहीं मना सका.
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DM, DGME दोषी:

10 अगस्त को छुट्टी होने के बावजूद जैसे ही मैंने ये खबर सुनी, मैं भाग कर अस्पताल गया. मैं अस्पताल में सबसे जूनियर डॉक्टर था.  मैं तो NHRM में नोडल अफ़सर था. मैं पीडियाट्रिक्स के लेक्चरर के रूप में स्टूडेंट्स को पढ़ाता था. सिलेंडर खरीद, टेंडर, ऑर्डर और पेमेंट, इस पूरी प्रक्रिया में मैं कहीं भी शामिल नहीं था.

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ऐसे में पुष्पा सेल्स ने सिलेंडर देना बंद कर दिया तो मैं कैसे इसके लिए जिम्मेदार हो सकता हूं? डॉ. कफील ने साफ शब्दों में कहा कि इसके लिए गोरखपुर के DM, DGME, हेल्थ और एजुकेशन के प्रिंसिपल सेक्रेटरी दोषी हैं.

प्रशासनिक नाकामी, पर बनाया मुझे बलि का बकरा:

पुष्पा सेल्स के 68 लाख बकाया पेमेंट के लिए 14 रिमाइंडर के बाद भी कोई कदम नहीं उठाया गया. यह बड़े स्तर पर प्रशासनिक नाकामी है. मुझे तो बलि का बकरा बनाया गया. जानबूझ कर हम लोगों को जेल में डाला गया, ताकि सच्चाई इसी जेल के अंदर ही रह जाए.

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डॉ कफील ने खत में उम्मीद जताई कि जब मनीष को बेल मिली तो हमें भी लगा कि जस्टिस मिलेगा। लेकिन अभी भी इंतजार कर रहे हैं।कि उन्हें भी बेल मिल जायें और वे अपनी बेटी और परिवार के साथ रह सकें.

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