उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री की महत्वपूर्ण साइकिल ट्रैक परियोजना अब गोबर के उपले सुखाने और कपड़े धोने के उपयोग में आ रही है. तत्कालीन सपा सरकार ने इटावा से आगरा तक 133 करोड़ रुपये में बनी 207 किलोमीटर लंबा ट्रैक बनवाया था. बिना देखभाल और संरक्षण के जिसकी हालत अब बेकार हो चुकी है. 

133 करोड़ में बना इटावा से आगरा साइकिल ट्रैक:

राजनीतिक दल सत्ता में आने के बाद कुछ करे या ना करे अपनी छाप छोड़ना नहीं भूलते. चाहे वो मायावती सरकार हो या सपा सरकार. सपा सरकार ने भी अपनी छाप छोड़ते हुए करोड़ो रुपये की साइकिल ट्रैक परियोजना शुरू की. कारण सपा का साइकिल प्रेम. पर क्या इसका कोई फायदा आम जन को हुआ.. या उन्होंने इसका फायदा लेने की कोशिश भी की. इस सवाल का जवाब मिलता है जब आप रोड किनारे बने इन साइकिल ट्रैक्स पर लगी दुकानों, उपलों को सूखते देखते है.

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पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने इटावा से आगरा तक 133 करोड़ रुपये में 207 किलोमीटर लंबा ट्रैक बनवाया था. ट्रैक की हालत अब बेहाल है. बिना देखभाल और संरक्षण के ट्रैक पर इक्का दुक्का चलने वालों ने भी इनका इस्तेमाल बंद कर दिया है.

कंक्रीट से बना यह साइकिल ट्रैक यमुना के नालो और झाड़ियों के बीच बना है, जिस पर साइकिल चलाने वाले है ही नही. कोई इस तरह के रास्ते पर साइकिल चलाने में रूचि भी नहीं लेता.

आधा अधूरा ट्रैक बेमतलब:

यहाँ तक की कई जगहों पर ट्रैक निर्माण पूरा नही हुआ है. पर उसका उद्घाटन कर के ट्रैक चालू कर दिया गया. ऐसा ही एक स्थानीय स्कूल के शिक्षक सुबोध कुमार ने भी बताया, “बाह क्षेत्र में, ट्रैक पूरी तरह से पूरा नहीं हुआ था, लेकिन तत्कालीन सरकार 26 नवंबर, 2016 को परियोजना का उद्घाटन करने के लिए जल्दबाजी में थी।”

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव हमेशा ही साइकिल को प्रमोट करने में लगे रहे है. चाहे साइकिल रैलियों के माध्यम से या चाहे इतने बड़े स्तर पर साइकिल ट्रैक बनवा कर. इसके पीछे का भी कारण है. साइकिल उनके पार्टी का प्रतीक चिन्ह है, जिसे सपा प्रमुख प्रमोट करने में लगे रहते है.

ताजमहल के साथ खेरिया हवाई अड्डे को जोड़ने के लिए आगरा शहर में छह-लेन फतेहाबाद रोड पर साइकिल ट्रैक, छायादार पेड़ों के साथ घुमावदार रंगीन खंबे लगने थे.

साइट के एक ठेकेदार ने कहा, “क्योंकि सड़क के इस हिस्से का ज्यादातर वीआईपी और विदेशी अतिथि उपयोग करते है, इसलिए इसे बनाने की योजना लंबे समय तक पाइपलाइन में थी।”

इस परियोजना में बड़े स्तर पर समय, श्रम और पैसा व्यय किया गया. पर परिणाम आज इन ट्रैक्स की हालत देख कर ही पता चलता है.

वीआईपी इलाकों में साइकिल ट्रैक बनवाना और भी बड़ा गलत फैसला था, क्योंकि वीआईपी सुरक्षा व्यवस्था के मद्देनजर कभी भी साइकिल ट्रैक्स का उपयोग नही करते. वहीं आम लोग अब साइकिल की तुलना में बाइक का उपयोग ज्यादा करते है.

आधे अधूरे पड़े ट्रैक्स को वर्तमान सरकार बनवाने में रूचि नही ले रही. वहीं जहाँ ये ट्रैक पूरे बने है, वहां साइकिलिंग करने वालो को इन पर चलने में कोई रूचि नही है.

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