उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मई दिवस पर पत्रकारों और श्रमिकों को हार्दिक बधाई दी है।
एक बधाई संदेश में मुख्यमंत्री ने कहा कि मई दिवस विकास की प्रक्रिया में श्रम के महत्व को रेखांकित करता है। प्रदेश के विकास एवं समृद्धि में श्रमिकों तथा पत्रकारों के योगदान को महत्वपूर्ण बताते हुए उन्होंने कहा कि मई दिवस के दिन हम सभी को प्रदेश को प्रगति की नई ऊँचाइयों की ओर ले जाने का संकल्प लेना चाहिए।

हर वर्ष अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मई महीने की पहली तारीख को मनाया जाता है। अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस को ‘मई दिवस’ भी कहकर बुलाया जाता है। अमेरिका में 1886 में जब मजदूर संगठनों द्वारा एक शिफ्ट में काम करने की अधिकतम सीमा 8 घंटे करने के लिए हड़ताल की जा रही थी तो इस हड़ताल के दौरान एक अज्ञात शख्स ने शिकागो के हेय मार्केट में बम फोड़ दिया, इसी दौरान पुलिस ने मजदूरों पर गोलियां चला दीं जिसमें 7 मजदूरों की मौत हो गई।

इस घटना के कुछ समय बाद ही अमेरिका ने मजदूरों के एक शिफ्ट में काम करने की अधिकतम सीमा 8 घंटे निश्चित कर दी थी। तभी से अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस 1 मई को मनाया जाता है। इसे मनाने की शुरुआत शिकागो में ही 1886 से की गई थी। मौजूदा समय में भारत सहित विश्व के अधिकतर देशों में मजदूरों के 8 घंटे काम करने का संबंधित कानून बना हुआ है। अगर भारत की बात की जाए तो भारत में मजदूर दिवस के मनाने की शुरुआत चेन्नई में 1 मई 1923 से हुई। ‘अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस’ लाखों मजदूरों के परिश्रम, दृढ़ निश्चय और निष्ठा का दिवस है। एक मजदूर देश के निर्माण में बहुमूल्य भूमिका निभाता है और उसका देश के विकास में अहम योगदान होता है।

किसी भी समाज, देश, संस्था और उद्योग में काम करने वाले श्रमिकों की अहम भूमिका होती है। मजदूरों के बिना किसी भी औद्योगिक ढांचे के खड़े होने की कल्पना नहीं की जा सकती इसलिए श्रमिकों का समाज में अपना ही एक स्थान है। लेकिन आज भी देश में मजदूरों के साथ अन्याय और उनका शोषण होता है। आज भारत देश में बेशक मजदूरों के 8 घंटे काम करने का संबंधित कानून लागू हो लेकिन इसका पालन सिर्फ सरकारी कार्यालय ही करते हैं, बल्कि देश में अधिकतर प्राइवेट कंपनियां या फैक्टरियां अब भी अपने यहां काम करने वालों से 12 घंटे तक काम कराते हैं। जो कि एक प्रकार से मजदूरों का शोषण है।

मजदूर दिवस की नहीं जानकारी

पूरी दुनिया के करीब 80 देशों में एक मई को अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस (लेबर डे) मनाया जाता है। मजदूर दिवस पर पूरे देश में सभी कंपनियों में छुट्टी रहती है। हमारे मजदूर भाई कड़ी धूप हो या सर्दी और बरसात हर मौसम में अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। वास्तव इन मजदूरों की मेहनत देखकर आप की भी हिम्मत डगमगा जायेगी। इनकी दिनचर्या को आप तक पहुंचाने के लिए हमारी टीम राजधानी के पीजीआई इलाके के कल्ली क्षेत्र में पहुंची। इस क्षेत्र में कई ईंट के भट्ठे हैं जहां हजारों मजदूर काम करते हैं। इन मजदूरों को उनके अधिकार तो दूर मजदूर दिवस के बारे में ही जानकारी नहीं है।

परिवार सहित कर रहे काम

इस क्षेत्र के करीब आधा दर्जन ईंट भट्ठों पर कलकत्ता, बिहार, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों के हजारों मजदूर काम करते हैं। निगोहा के रहने वाले उमेश कुमार ने बताया कि गांव में उसका ना तो मनरेगा कार्ड बना है और ना ही उसे इसके तहत मजदूरी मिलती है। वह पीजीआई में मजदूरी करता है उसे यह भी नहीं मालूम किस दिन मजदूरी मिलेगी या नहीं। वहीं मोहित कुमार ने बताया कि उसके परिवार में कई लोग हैं मजदूरी करके परिवार का पेट पलता है। गांव में उसे दबंग जानवर तक बांधने के लिए जगह नहीं दे रहे हैं। इन मजदूरों की सरकार से एक मांग है कि उनके बच्चों के लिए पढ़ने की व्यवस्था उपलब्ध करवा दी जाये ताकि उनका भविष्य अंधकारमय ना हो।

दिनभर और रात में करते हैं काम

कल्ली स्थित जैन ब्रिक फील्ड (पारस) ईंट भट्ठे पर काम करने वाले आसीमुद्दीन, नूर अमीन, मजनू, अफरूजा सहित कई मजदूरों ने बताया वह पश्चिम बंगाल के रहने वाले है। सभी अपने परिवार के साथ मेहनत मजदूरी करके अपने परिवार का पेट पालते हैं। इन मजदूरों का काम शिफ्ट के हिसाब से रहता है, कोई चार घंटे लगातार काम करता है तो कोई दो घंटे काम करके ईंट पाथने का काम करता है। इन लोगों के पास कुछ रहने का प्रमाण नहीं है इसलिए बच्चों का स्कूलों में दाखिला नहीं हो पा रहा है वह वह शिक्षा से वांछित होते दिखाई दे रहे हैं। हालांकि इन मजदूरों को कोई असुविधा ना हो इसके लिए भट्टा मालिक ने बेहतर आधुनिक सुविधाएं दे रखीं हैं इससे इनका काम आसान हो गया है।

प्रदूषण रहित है ईंट भट्ठा

इस क्षेत्र का जैन ब्रिक फील्ड ईंट भट्ठा प्रदूषण रहित है। इस भट्ठे में आधुनिक तकनीक का प्रयोग किया गया है इस भट्ठे की चिमनी से काला धुंआ नहीं निकलता। भट्ठा मालिक सुरेंद्र कुमार जैन ने बताया कि पहले मजूरों को ईंट बनाने के लिए मिट्टी को बनाने में काफी मेहनत करनी पड़ती थी लेकिन अब उन्होंने कई सारी मशीनें लगा रखीं हैं। इससे समय की बचत होती ही है बल्कि मजदूरों को ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ती है। उन्होंने बताया कि ईंट बनाने के लिए मिट्टी को जेसीबी से खुदवाकर फिर पॉवर हैरो से महीन बना दिया जाता है। पहले मजदूर पानी भर के लाते थे लेकिन अब उन्होंने बड़ा सबमर्सिबल लगवा रखा है जो हर जगह पानी आसानी से पहुंचा देता है। साथ ही जो ईंट तैयार होने के बाद मजदूर पहले अपने सिर पर ढोकर बाहर चट्टान लगाते थे। वह प्रथा समाप्त करके उन्होंने ट्रॉली की व्यवस्था कर दी है ताकि मजदूरों को कोई परेशानी ना हो और कम मेहनत में काम कर सकें। इतना ही नहीं उन्होंने इन मजदूरों को रहने की भी व्यवस्था उपलब्ध करवा रखी है।

क्या है मजदूर दिवस

अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस की शुरुआत 1 मई 1886 को हुई थी। इस दिन अमेरिका के मजदूर संघों ने एक साथ मिलकर यह एलान किया था कि वह 8 घंटे से अधिक समय तक काम नहीं करेंगे। इस मांग को मनवाने के लिए सभी संगठनों ने हड़ताल कर दी थी। जब मजदूरों ने हड़ताल की तभी इस दौरान शिकागो की हेमार्केट में एक बम विस्फोट हो गया। इससे निपटने के लिए पुलिस ने मजदूरों पर गोली चला दी थी इसमें कई मजदूरों की मौत एवं सैकड़ों मजदूर घायल हो गए थे। इस घटना के बाद वर्ष1889 में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में हेमार्केट नरसंघार में मारे गये निर्दोष लोगों की याद में एक मई को अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाये जाने का एलान किया गया। इसके बाद से इस दिन को श्रमिक दिवस, मजदूर दिवस, कामगार दिवस कई तरह से मनाकर श्रमिकों का अवकाश रहता है।

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