विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की रिपोर्ट ने उत्तरप्रदेश के लिये चिंता बढ़ा दी है। डब्लूएचओ की तरफ से दुनिया के प्रदूषित शहरों की सूची जारी की गयी है, जिनमें 20 सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में 6 शहर उत्तरप्रदेश के शामिल हैं। अगर सिर्फ साल 2016 के बाद डाटा को देखा जाये तो कानपुर को इस लिस्ट में दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर बताया गया है। 20 सबसे प्रदूषित शहरों में अकेले भारत के 15 शहर शामिल हैं। इन 15 शहरों में भी सबसे ज्यादा उत्तर भारत खासकर उत्तरप्रदेश, दिल्ली और बिहार के शहर शामिल हैं।
यह बताता है कि अभी भारत को वायु प्रदूषण संकट से निपटने के लिये बहुत कुछ करना बाकी है। इसी साल जनवरी में ग्रीनपीस इंडिया की जारी रिपोर्ट एयरोप्किल्पिस 2 में भी उत्तर प्रदेश के वायु प्रदूषण पर डरावने तथ्य सामने आये थे। इस रिपोर्ट में 280 शहरों के वर्ष 2015 और 2016 के साल भर का औसत पीएम 10 को दर्ज किया गया था। इस आधार पर देश के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में 15 शहर उत्तर प्रदेश के शामिल थे।
रिपोर्ट में डाटा की कमी एक बड़ी चुनौती
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2016 के लिये सिर्फ 32 भारतीय शहरों का आंकड़ा लिया है। जबकि केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मिलकर आज के समय में यूपी के 24 शहरों में वायु निगरानी का डाटा एकत्रित करती है। अभी भी 51 जिलों में वायु गुणवत्ता को नापने के लिये कोई यंत्र नहीं लगाया जा सका है। ऐसे में अगर बाकी जिलों से भी वायु गुणवत्ता के डाटा को डब्लूएचओ की रिपोर्ट में शामिल किया जाता तो उत्तर प्रदेश में प्रदूषित शहरों की संख्या और भी भयानक होगी।
राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कार्यक्रम में शामिल 100 अयोग्य शहरों के बीच अंतर
पर्यावरण मंत्रालय ने राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कार्यक्रम के भीतर 100 अयोग्य शहरों को चिन्हित किया है, हालांकि इस कार्यक्रम में डब्लूएचओ रिपोर्ट में शामिल सबसे प्रदूषित शहरों में से 3 शहर गया, पटना और मुजफ्फरपुर गायब हैं। इसी तरह उत्तर प्रदेश के 24 जिले जहां की हवा राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानको से काफी नीचे है, इनमें से सिर्फ 15 को इन अयोग्य शहरों में शामिल किया गया है।
ग्रीनपीस के सीनियर कैंपेनर सुनील दहिया कहते हैं, “डब्लूएचओ की रिपोर्ट अपने आप में पूरा नहीं है क्योंकि उसमें कई पुराने सालों के डाटा को मिला दिया गया है जबकि वास्तविकता में भारत में स्थिति और भी खराब है। यह जरुरी है कि राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कार्यक्रम में प्रदूषण को कम करने के लिये स्पष्ट लक्ष्य और समयसीमा को शामिल किया जाये।”
इस रिपोर्ट के विस्तार से अध्ययन के आधार पर क्लाइमेट एजेंडा की मुख्य अभियानकर्ता एकता शेखर का कहना है, ” दुनिया भर में होने वाली 70 लाख मौतों में ज्यादातर मौतें भारत के इन चुनिन्दा शहरों में हो रही हैं। ऐसे में, अब यह एक स्वास्थ्य आपातकाल की स्थिति बन चुकी है।” एकता शेखर ने कहा कि लम्बे समय से क्लाइमेट एजेंडा की यह मांग रही है कि देश के अन्दर वायु गुणवत्ता निगरानी तंत्र को पारदर्शी बनाया जाए, और राष्ट्रीय स्तर पर इस तंत्र का विस्तार किया जाए।”
चीन की वायु गुणवत्ता में तुलनात्मक रूप से सुधार
अगर हम कुछ साल पहले के डाटा देखें तो पाते हैं कि 2013 में विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों में चीन के शहर सबसे ऊपर थे, लेकिन पिछले सालों में चीन के शहर कार्ययोजना बनाकर, समयसीमा तय करके और विभिन्न अलग-अलग प्रदूषण कारकों से निपटने के लिये स्पष्ट योजना बनाकर अपने वायु गुणवत्ता में काफी सुधार कर रहे हैं। लेकिन यही समय-सीमा और अलग-अलग प्रदूषकों से निपटने के लिये स्पष्ट योजना का भारत के लिये प्रस्तावित राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के ड्राफ्ट में अभाव दिख रहा है।
डब्लूएचओ रिपोर्ट की प्रमुख बातें
➡रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि 70 लाख लोगों की पूरी दुनिया में मौत बाहरी और भीतर वायु प्रदूषण की वजह से होती है।
➡वायु प्रदूषण से मरने वाले लोगों में 90 प्रतिशत निम्न और मध्य आयवर्ग के देश हैं जिनमें एशिया और अफ्रीका शामिल है।
➡बाहरी वायु प्रदूषण की वजह से 42 लाख मौत 2016 में हुई, वहीं घरेलू वायु प्रदूषण जिसमें प्रदूषित ईंधन से खाना बनाने से होने वाला प्रदूषण शामिल है से 38 लाख लोगों की मौत हुई।