दुनियाभर में 13 मई को मदर्स डे मनाया जाता है। आज सभी फ़िल्मी सितारों ने अपनी अपनी माँ को ही संघर्षशील, पॉवरफुल और मार्गदर्शक बताया। आज के दिन लोग अपनी मां के लिए उन्हें उनके प्यार का अहसास करवाते हैं। सभी ने माना कि दुनिया का सबसे खूबसूरत शब्द ‘मां’ है। इस शब्द के उच्चारण से हमें प्यार और ऊर्जा की अनुभूति होती है। हम सबके जीवन में मां का विशेष स्थान है। हमें इस दुनिया में लाने वाली मां के एहसान हम पर बहुत ही ज्यादा हैं। हम उनके एहसानों को कभी चुका भी नहीं पाएंगे। सोशल मीडिया पर अपनी माँ के साथ सेल्फी सभी सुबह से ही अपलोड कर रहे हैं। व्हाट्सएप्प, इंस्टाग्राम, फेसबुक, ट्विटर, सहित हर सोशल साईट पर माँ को समर्पित पंक्तियाँ भी खूब शेयर की जा रही हैं।
माता के समान कोई प्रिय नहीं
कहते हैं कि मदर्स डे सेलिब्रेट करने की शुरुआत ग्रीस से हुई है। ग्रीस के लोग अपनी माताओं के प्रति विशेष सम्मान रखते थे। हालांकि हम उनकी सेवा करके और उनके प्रति अपना प्यार जताकर उन्हें खुश रख सकते हैं। ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर मदर्स डे क्यों सेलिब्रेट किया जाता है। इसके अलावा मदर्स डे का इतिहास क्या है और इसकी क्या महत्ता है। माता के समान कोई छाया नहीं है, माता के समान कोई सहारा नहीं है। माता के समान कोई रक्षक नहीं है और माता के समान कोई प्रिय नहीं है। माँ के लिए जितने शब्द कहे जाएँ वो कम हैं।
लेती नहीं दवाई “माँ”,
जोड़े पाई-पाई “माँ”।
दुःख थे पर्वत, राई “माँ”,
हारी नहीं लड़ाई “माँ”।
इस दुनियां में सब मैले हैं,
किस दुनियां से आई “माँ”।
दुनिया के सब रिश्ते ठंडे,
गरमागर्म रजाई “माँ” ।
जब भी कोई रिश्ता उधड़े,
करती है तुरपाई “माँ” ।
बाबू जी तनख़ा लाये बस,
लेकिन बरक़त लाई “माँ”।
बाबूजी थे सख्त मगर ,
माखन और मलाई “माँ”।
बाबूजी के पाँव दबा कर
सब तीरथ हो आई “माँ”।
नाम सभी हैं गुड़ से मीठे,
मां जी, मैया, माई, “माँ” ।
सभी साड़ियाँ छीज गई थीं,
मगर नहीं कह पाई “माँ” ।
घर में चूल्हे मत बाँटो रे,
देती रही दुहाई “माँ”।
बाबूजी बीमार पड़े जब,
साथ-साथ मुरझाई “माँ” ।
रोती है लेकिन छुप-छुप कर,
बड़े सब्र की जाई “माँ”।
लड़ते-लड़ते, सहते-सहते,
रह गई एक तिहाई “माँ” ।
बेटी रहे ससुराल में खुश,
सब ज़ेवर दे आई “माँ”।
“माँ” से घर, घर लगता है,
घर में घुली, समाई “माँ” ।
बेटे की कुर्सी है ऊँची,
पर उसकी ऊँचाई “माँ” ।
दर्द बड़ा हो या छोटा हो,
याद हमेशा आई “माँ”।
घर के शगुन सभी “माँ” से,
है घर की शहनाई “माँ”।
सभी पराये हो जाते हैं,
होती नहीं पराई “माँ”
आसमान की तेज धूप में,
शीतल छाया सी लगती हो।
मन के अँधियारे में,
धवल चाँदनी सी सजती हो।
दुःखों में नहीं तन्हा रहा,
विश्वास की ढाल बनती हो।
सफलता मिली जब भी कभी,
सिर पर ताज सा चमकती हो।
दूर रहे जब भी तुमसे,
धड़कन बनकर धड़कती हो।
क्या अस्तित्व है तुम्हारे बिना?
माँ, तुम ही मेरी जिन्दगी हो।
हमारे हर मर्ज की दवा होती है माँ….
कभी डाँटती है हमें, तो कभी गले लगा लेती है माँ…..
हमारी आँखोँ के आंसू, अपनी आँखोँ मेँ समा लेती है माँ…..
अपने होठोँ की हँसी, हम पर लुटा देती है माँ……
हमारी खुशियोँ मेँ शामिल होकर, अपने गम भुला देती है माँ….
जब भी कभी ठोकर लगे, तो हमें तुरंत याद आती है माँ…..
दुनिया की तपिश में, हमें आँचल की शीतल छाया देती है माँ…..
खुद चाहे कितनी थकी हो, हमें देखकर अपनी थकान भूल जाती है माँ….
प्यार भरे हाथोँ से, हमेशा हमारी थकान मिटाती है माँ…..
बात जब भी हो लजीज खाने की, तो हमें याद आती है माँ……
रिश्तों को खूबसूरती से निभाना सिखाती है माँ…….
लब्जोँ मेँ जिसे बयाँ नहीँ किया जा सके ऐसी होती है माँ…….
भगवान भी जिसकी ममता के आगे झुक जाते हैँ
चिंतन दर्शन जीवन सर्जन
रूह नज़र पर छाई अम्मा
सारे घर का शोर शराबा
सूनापन तनहाई अम्मा
उसने खुद़ को खोकर मुझमें
एक नया आकार लिया है,
धरती अंबर आग हवा जल
जैसी ही सच्चाई अम्मा
सारे रिश्ते- जेठ दुपहरी
गर्म हवा आतिश अंगारे
झरना दरिया झील समंदर
भीनी-सी पुरवाई अम्मा
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