सीतापुर में हो रहे बच्चों पर हमले में कड़ी दर कड़ी कई खुलासे सामने आ रहे हैं. हमारी टीम मौके पर हर हमलों की पड़ताल में जुटी है. ग्राउंड जीरो से ताजा ख़बर सामने आई है कि सुबह तकरीबन 9 बजे के आसपास एक बार फिर इन आदमखोर जानवरों ने घरेलु जानवरों को अपना शिकार बनाया है. खेतों में काम करने गई एक बूढी महिला के ऊपर इन जानवरों ने उस वक़्त हमला किया जब वो खेतों में अपनी बकरियों को चराने गई थीं.
पांच बकरियों को मार डाला
आदमखोर कुत्तों / भेडियों ने हमला कर पांच बकरियों को मौके पर ही मार डाला और उन बकरियों को बचाने गई बूढी महिला पर भी उन जानवरों ने हमला किया. हमला पैर की तरफ था. जिसकी वजह से बुजुर्ग महिला की साडी ही पकड़ पाए जानवर. तभी चीख पुकार सुन का आस पास की तरफ काम कर रहे लोग भी आ गए तो इन सभी आदमखोर जानवरों को वहां से भागना पड़ा.
चुप चाप सेंध लगा कर झुण्ड में करते हैं हमला
प्रत्यक्ष दर्शियों के मुताबिक हमला करने वाले जानवर भेडिये की तरह दिख रहे थे, वो भौंक नहीं रहे थे बस सूंघ ज्यादा रहे थे, दिखने में कुत्ते जैसे से मगर बेहद खूंखार लग रहे थे, चुप चाप सेंध लगा कर झुण्ड में हमला करते हैं. इनमें से एक बेहद तगड़ा लगभग 30 किलो के करीब का होगा जिसका रंग काला है, बाकी के 2 एकदम भूरे रंग के थे. उनमे से एक काला और सफ़ेद और एक भूरा और सफ़ेद है जिन्होंने आज सुबह हमला किया था. जब हम लोगों ने उन्हें खदेड़ा तो वो बड़ी नहर की तरफ भाग निकले.
प्रशासन कुत्ता कहता रहा मगर निकला भेड़िया जैसी नस्ल का जानवर
सीतापुर में हो रहे बच्चों पर हमलों के पीछे का एक चौंकाने वाला सच सामने निकल कर आया है। जिसमें बच्चों पर हमला करने वाले कुत्ते नहीं बल्कि भेड़िया की तरह दिखने वाले कोई जानवर है। इनका जबड़ा कुत्तों के जबड़ों से अलग दिख रहा था और इनकी बनावट भी आम कुत्तों से बिलकुल अलग थी। उनकी पूँछ झबरीली और नुकीले नाखून ये साबित करते हैं कि ये दिखने में तो कुत्ते जैसे हैं मगर हैं नहीं। uttarpradesh.org ने जब सीतापुर में जाके उन गॉंव वालों से बात की थी तो ये साफ़ निकल कर आया था की ये कुत्ते नहीं बल्कि कोई और जानवर हैं जो मासूमो को अपना शिकार बना रहे हैं।
बली का बकरा बने स्थानीय कुत्ते
उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के ग्रामीणों ने सड़क पर घूमने वाले स्थानीय कुत्तों पर युद्ध घोषित कर दिया था। बच्चों पर हमला करने वाले जानवर की बजाए पिछले कुछ दिनों में गांवों को “कुत्ते मुक्त” बनाने के लिए व्यापक रूप से एक झगड़ा है। लाठी से बंदूक तक लेकर लोग अब इन स्थानीय बेगुनाह कुत्तों के शिकार में निकल चके थे। ग्रामीणों द्वारा उनके बच्चों की मौत का बदला लेने के लिए सबकुछ इस्तेमाल किया जा रहा है।
इस जिले में लगभग 20 किमी की एरिया के भीतर 12 गांवों में 13 बच्चों की हत्याओं के जवाब में गाँव वाले और प्रशासन बेगुनाह कुत्तों को अपनी गोली का निशाना बना रहे थे लेकिन किसी ने भी उन जंगली आदमखोर जानवर को नहीं देखा था जो बच्चों पर बर्बता से हमला कर उन्हें मौत के घाट उतार रहे थे।
उप-मंडल मजिस्ट्रेट शशांक त्रिपाठी ने हमसे बताया, “हम आश्वस्त हैं कि हत्याएं कुत्ते के हमलों की वजह से हुई है गांववासियों ने हमलों की गवाही दी है।” दूसरी तरफ ग्रामीण गुस्से में हैं उनका कहना है कि कुछ हत्याएं हुई हैं, लेकिन प्रशासन ने उन्हें किसी भी तरह से समर्थन नहीं दिया है। हालांकि, यह बयान ग्रामीणों द्वारा पूरी तरह से विरोधाभास है।
मादा कुत्ते और उसके बच्चों तक को मारडाला
खैराबाद में हो रहे बच्चों के हमले के पीछे कौन है वाला सवाल सबके ज़हन में बखूबी था मगर प्रशासन ने इसका ठीकरा सड़क पर घूमने वाले कूटों पर फोड़ दिया। जिसकी वजह से गुस्साए गाँव वालों ने जिस भी कुत्ते को देखा भले वो बेगुनाह हो उसे मौत के घाट उतार दिया गया। एक 4 बच्चों की मादा कुत्ते को उसके बच्चों के सामने लाठियों से पीट पीट कर मार डाला गया क्यूंकि प्रशासन ने ये कहा था ग्रामीणों से कि ये हमला कुत्ते कर रहे हैं, कुत्ते पागल हो गए हैं। उन मासूम बच्चों को भी मार डाला गया जिनका इस घटना से कोई लेना देना नहीं था।
कुत्तों को पेड़ से लटकाया गया
स्थानीय व्हाट्सएप ग्रुप्स पर गांवों में हो रहे मासूम कुत्तों की भयानक हत्याओं की तस्वीरें प्रमाण पत्र के तौर पर मौजूद हैं। कहीं कुत्तों को पीट पीट कर लटका दिया गया तो कहीं पीटने के बाद उन्हें गोली मार दी गई। फिर उसके बाद उसपे पैर रख कर या पास में खड़े होकर एक ग्रुप फोटो भी खिंचवाई गई।
स्कूल जाने से डर रहे हैं बच्चे
आदमखोर जानवर के हमलों का डर इस तरह पूरे खैराबाद सीतापुर में फैला है कि बच्चे पिछले एक डेढ़ हफ्ते से स्कूल नहीं जा रहे हैं, और कभी भी बड़े लोग उन्हें अकेला नहीं छोड़ रहे हैं। एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता उर्मिला देवी कहती हैं कि यहां तक कि जब बच्चे अपने आप को राहत दिलाने के लिए खेतों में जाते हैं, तब भी बाकि बड़े लोग अपने साथ बंदूकें और डंडा लेकर जाते हैं ताकि जब वो जानवर हमला करे तो उन्हें वहीं मारा जा सके।
कार्यकर्ताओं में चिंता
हालांकि पशु अधिकार कार्यकर्ता चिंतित हैं। महिलाएं और बाल विकास मंत्री और पशु अधिकार कार्यकर्ता मेनका गांधी की सहयोगी गौरी मौलेखी ने कहा, “सीतापुर में जो हो रहा है, यह चौंकाने वाला है। सबसे पहले, वे नसबंदी के नियमों को लागू करने में विफल रहते हैं, और एक त्रासदी की प्रतीक्षा करते हैं, और फिर कानून के पूर्ण उल्लंघन में जानवरों को मारने के लिए अंधाधुंध रूप से जाते हैं। वन्यजीव संस्थान के आदेश पर विशेषज्ञ सहायता प्रदान करने के लिए पशु चिकित्सकों, पशु कल्याण अधिकारी और कुत्तों के हैंडलरों की एक टीम अब सीतापुर में हुमाइन सोसाइटी इंटरनेशनल द्वारा तैनात की गई है। हम स्थिति की गंभीरता को समझते हैं हालांकि अनजाने में सड़क पर घूमने वाले कुत्तों को मारना, जो पूरी तरह से एक दुखद घटना हैं।