सीतापुर जिला के खैराबाद क्षेत्र में पिछले कई महीनों से करीब 13 मासूम बच्चों की जान लेने वाले गांव के कुत्ते नहीं बल्कि जंगली कुत्ते या भेड़िये हो सकते हैं। ये दुधवा नेशनल पार्क के संस्थापक निदेशक रहे डॉ. राम लखन सिंह का मानना है। उन्होंने uttarpradesh.org से खास बातचीत में ऐसे कई तथ्य बताये जो इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि हमला करने वाले ग्रामीण कुत्ते नहीं बल्कि अपराधी प्रवत्ति के जंगली कुत्ते या फिर भेड़िये हो सकते हैं। उन्होंने इनसे बचने के उपाय भी हमसे साझा किये। पेश है एक रिपोर्ट…

38 शिकार करने वाले 3 टाइगर मारे गए थे

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डॉ. राम लखन सिंह ने बताया कि इससे पहले उन्होंने कई अभियान चलाए। जिनमें बच्चों की जान लेने वाले कई भेड़िये को मारने का काम किया और इसके अलावा उन्होंने टाइगर को भी मारने में सफलता प्राप्त की। उन्होंने 1977 से 1985 तक इसमें सेवाएं दी हैं। इस दौरान उन्हें तीन टाइगर मारने पड़े थे। उन्होंने बताया कि 38 मनुष्यों को इन टाइगर ने खा डाला था। इसके बाद उन्होंने यह अभियान चलाकर 3 टाइगर को मारा था। 2002 में हरदोई में गन्ने के खेत में एक टाइगर को मारा गया था। इस टाइगर को मारना अनिवार्य था। क्योंकि टाइगर ने भी कई शिकार किए थे। इसके बाद प्रोजेक्ट टाइगर भारत सरकार ने निदेशक रहने के दौरान पूरे देश में टाइगर द्वारा मानव भक्षण की समस्या के निदान के लिए उन्होंने वर्ष 1985 से 1991 तक 6 वर्षों तक योगदान देकर काम किया। वर्ष 2004 में वह प्रमुख वन संरक्षक उत्तर प्रदेश के पद से सेवानिवृत्त हुए। इसके बाद वह अपने अनुभव को लिखने का काम कर रहे हैं। साथ ही लखनऊ विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान के पोस्ट ग्रेजुएट स्तर पर विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में नई पीढ़ी को पर्यावरण के बारे में सिखाने का काम कर रहे हैं और आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं।

170 बच्चों का शिकार करने वाले 13 भेड़िये भी मारे

उन्होंने बताया कि इसके बाद उत्तर प्रदेश में भेड़ियों के हमले बढ़े जौनपुर, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर और रायबरेली में करीब 170 लोगों को 4 सालों में इन भेड़ियों ने मार डाला था। इसमें छोटे बच्चे ही ज्यादा इन भेड़ियों ने शिकार किये थे। इन बच्चों को भेड़िए उनकी मां की गोद से उठाकर ले जाते थे। इस दौरान उन्होंने अभियान चलाकर 13 भेड़िये मारे थे।

झुंड में भेड़िये करते हैं शिकार

उन्होंने बताया कि भेड़िये झुंड में सामूहिक रूप से शिकार करते हैं। उन्होंने बताया कि सीतापुर में हो रही घटनाओं में हमला करने वाले अपराधी प्रवृत्ति के जंगली कुत्ते या भेड़िये ही हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसी प्रवृत्ति भेड़ियों की होती है। यह बहुत ही नियम के पक्के होते हैं और अपनी टीम बनाकर वारदात को अंजाम देते हैं। भेड़िए बच्चों की गर्दन पर ही वार करते हैं। यह वयस्कों से डरते रहते हैं। अगर भेड़िया कहीं जा रहा है तो वह सीधे चलता जाएगा। अपनी गर्दन नीचे झुका लेगा। भड़िये नजरे झुका के चलता है किसी की तरफ देखता नहीं है। उसकी एक आदत यह भी होती है कि वह निरंतर चलता ही रहता है कभी रुकता नहीं घटना को अंजाम देने के दौरान कई टीम के सदस्यों के साथ अंजाम देता है। इसके गैंग में शामिल सदस्य एक दूसरे को शिकार आगे बढ़ाते रहते हैं। भेड़िया पहले शिकार नहीं खाता, सबसे पहले वह मादा को खिलाता है और बच्चों को खिलाता है इसके बाद स्वयं भी खाता है। डॉक्टर ने बताया कि भेड़िये नदियों के किनारे या जंगलों में जमीन में खोह बनाकर रहते हैं। उन्होंने कई ऐसे तथ्य बताये जिन्हें आपने कभी नहीं सुना होगा।

13 बच्चों को आखिर किसने नोचकर मारडाला

सीतापुर जिला के खैराबाद इलाके में आदमखोर कुत्तों का आतंक इस कदर है कि नवंबर 2017 से 5 मई 2018 तक आदमखोर कुत्ते 13 बच्चों को अपना निवाला बना चुके हैं। इन बच्चों में मात्र 6 के ही पोस्टमार्टम कराए गए हैं। कुत्तों से निपटने वाली टीम में शामिल खैराबाद थाना अध्यक्ष सचिन सिंह ने बताया कि 6 परिवार के सदस्यों ने अपने बच्चों के शवों को पोस्टमार्टम कराने से इंकार कर दिया। इसलिए 6 बच्चों के शवों का पोस्टमार्टम कराया जा सका है। हलाकि जितने भी बच्चों की मौत हुई है सभी के आंकड़े नाम पता दुरुस्त हैं।

चित्तीदार और बाहर दांत निकले हिंसक जानवरों ने किया हमला

अधिकतर मामलों में हिंसक जानवरों ने गले पर हमला (जगलर वेन नष्ट करना) बच्चों की जान ली। यह काम शहरी क्षेत्रों के पशुओं का नहीं हो सकता। यह आदत जंगली हिंसक वन्यजीवों में होती है। कुत्तों के हमले में विनोद नोचकर पंजा मारकर नुकसान पहुंचा सकते हैं न कि गले को सीधा टारगेट बनाकर। मारे गए सभी पीड़ित बच्चे ही हैं जो कि हिंसक वन्यजीवों के लिए आसान टारगेट हैं। टीम के सदस्यों ने पीड़ितों से बातचीत में पाया कि उन्होंने चित्तीदार कुत्ते से ऊंचे जानवर बाहर दांत निकले वाले जानवर देखे जो उन पर हमला करके भागे। इनसे प्रतीत होता है कि वहां वारदातों में कुत्तों के अलावा अन्य हिंसक जानवरों की भी भूमिका है।

करीब 20 किलोमीटर की दूरी तय कर हमला

तालगांव में हमला करने के बाद कुत्तों ने 2 घंटे में 20 किलोमीटर तक का सफर तय कर दूसरा हमला किया। इससे साफ है कि कुत्ते लंबी दूरी चलकर हमला कर रहे हैं। बता दें कि तालगांव में जिस भगवतीपुर में कुत्तों ने हमला कर मासूम कासिम की जान ले ली। उस भगवतीपुर से शहर कोतवाली का क्षेत्र बिहारीगंज गांव करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद है। बावजूद इसके आदमखोरों का झुंड बिहारीगंज के करीब पहुंचा और यहां पर इरफान के पुत्र दानिश पर हमला करके उसे घायल कर दिया।

लखनऊ में हो रही खूंखार कुत्तों की नसबंदी

सीतापुर के खूंखार कुत्तों की लखनऊ में नसबंदी हो रही है। सीतापुर में बच्चों पर हमला करने वाले खूंखार कुत्तों की नसबंदी लखनऊ में की जा रही है। इसके लिए कुत्तों को सीतापुर से लखनऊ नगर निगम के कान्हा उपवन में लाया गया है। यहां बारिश कुत्तों को लाकर नसबंदी की गई। 48 घंटे के अंदर इन कुत्तों को वापस सीतापुर में उनकी मूल जगहों पर छोड़ दिया जाएगा। लखनऊ नगर निगम के मुख्य पशु चिकित्सक डॉक्टर अरविंद राव ने बताया कि सीतापुर में नसबंदी किए जाने की सुविधा नहीं है। इसके बाद डीएम सीतापुर में सचिव नगर विकास और नगर आयुक्त लखनऊ से मदद मांगी थी।

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