2019 चुनाव का बिगुल बज चुका है और चुनाव में प्रचार से लेकर जीत हार तक सोशल मीडिया का अपना एक अहम् रोल होता है. सभी पार्टियों के आई टी सेल एक्टिव हो जाते हैं. उम्मीदवारों के खिलाफ़ वाले पोस्टर ऐसे डिज़ाइन किये जाते हैं ताकि जनता में उनके खिलाफ़ भ्रम फैलाया जाये और उनकी वोट के स्तर को कम किया जाये. इसमें सबसे अहम भूमिका फोटोशॉप की हुई तस्वीरों की रहती है, जिसमें होता कुछ है और दिखाया कुछ जाता है. 2014 चुनाव में बीजेपी के प्रधानमंत्री पड़ के उम्मेदवार के तौर पर जब नरेन्द्र मोदी का चेहरा सामने आया तो सोशल मीडिया में एक नया भूचाल आ गया था.
सोशल मीडिया पर शुरू हो गया पोस्टर वॉर
मोदी सपोर्टर को सोशल मीडिया ने भक्त की उपाधि दी गई तो कांग्रेस के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को मौन मोहन सिंह के नाम से मज़ाक बनाया जाना शुरू हो गया. सोशल मीडिया में अभद्र टिप्पणी लिखने और गलत तस्वीरें डालने वालों पर कई बार कार्यवाही भी हुई. लेकिन इसका स्तर कम होने की बजाए और बढ़ता जा रहा है. हाल ही में आई टी सेल कर्नाटक चुनाव के चलते काफी एक्टिव हो चुके हैं. आगे की लडाई अब नूरपुर और कैराना के उप चुनाव को लेकर भी शुरू होना चालू हो गई है. इन उप चुनाव के बाद सारा फोकस फिर 2019 के लोक सभा चुनाव पर होगा. जब सभी दलों के सोशल मीडिया और उनके आई टी सेल तेजी से एक्टिव होकर फेसबुक, ट्वीटर, इन्स्टाग्राम समेत व्हाट्सएप्प पर एक दूसरे के खिलाफ़ झूठ फैलाने का काम करना शुरू कर देंगे. वोटरों को लुभाने के लिए कई तरीके के पोस्टर्स बैनर भी जारी करेंगे.
मोदी के विभिन्न लोगों के साथ जोड़ी तस्वीरें
वैसे इसकी शुरुआत हो भी चुकी है. हाल ही में फेसबुक ट्वीटर से लेकर व्हाट्सएप्प पर तत्कालीन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नई पुरानी तस्वीरों को शहीदों और महापुरुषों के साथ जोड़ का वायरल करने का काम तेजी से आई टी सेल के द्वारा किया जा रहा है. विभिन्न तस्वीरों में नरेन्द्र मोदी भगत सिंह के पास जेल में बैठे उन्हें टिफ़िन देते नज़र आ रहे हैं. तो कहीं पर वो महात्मा गाँधी के साथ ट्रेन में उनका माइक पकड़ कर खड़े होते दिखाए गए हैं. कहीं पर वो महात्मा गाँधी और राजीव गाँधी के साथ मीटिंग में गहरे चिन्तन करते हुये दिखाए गए हैं. तो कहीं साइमन गो बैक के पोस्टर बैनर लेकर रैली का हिस्सा बनते दिखाया गया है. ऐसे तमाम तस्वीरे इस वक़्त सोशल मीडिया पर विपक्ष तेजी से वायरल कर रहा है. ताकि सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ़ ग़लतफ़हमी फैलाई जा सके. विशेषज्ञों की मानें तो ये सिर्फ लोगों को बरगलाने का काम होता है जिसका तरीका गलत है.