राजनीति में सबकुछ जायज होता है। यहाँ रिश्ते ओहदे से बड़े नही होते हैं। इस कथन को साबित करती दिख रही है यूपी में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी। समाजवादी पार्टी में यादव परिवार का झगड़ा सुलझने की जगह दिन-ब-दिन उलझता जा रहा है। यादव परिवार ही समाजवादी पार्टी और मुलायम सिंह यादव ही यादव परिवार के मुखिया हैं। फिर जब बात वर्चस्व के जंग की हो तो यादव परिवार में सभी एक सुर में मुलायम के वर्चस्व को मानते आये हैं। उनके निर्णय को आखिरी और सर्वमान्य कहते आये हैं। फिर चाहे अखिलेश यादव हों या शिवपाल यादव, या फिर प्रोफेसर साहब यानी रामगोपाल यादव।
मुलायम के वर्चस्व को मिल रही चुनौती:
इस परिवार के साथ पार्टी में भी मुलायम सिंह यादव का एकाधिकार रहा है। इस बात से शिवपाल को फ़िलहाल कोई परेशानी नही है। लेकिन मुलायम के पुत्र और प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अब अपने पिता के निर्णयों पर सवाल उठाकर खुद को अलग-थलग महसूस कर रहे होंगे। ये बात अलग है कि अखिलेश के चेहरे पर कोई चिंता की लकीर नही दिख रही है लेकिन गाहे-बगाहे दर्द है कि छलक ही जाता है।
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ऐसा ही कुछ हुआ जब अखिलेश ने एक अंग्रेजी अखबार को दिए गए इंटरव्यू में कुछ ऐसी बात कह दी कि परिवार के सदस्यों के बीच चल रहा शीत युद्ध अब खुलकर जंग में तब्दील होता दिखने लगा है। अखिलेश ने कहा कि वो किसी की परवाह नहीं करते हैं, विकास के मुद्दे से उनकी पहचान है और इसपर आगे बढ़ेंगे और अकेले ही चुनाव प्रचार करेंगे। अखिलेश ने यहाँ तक कह दिया कि बचपन में अपना नामकरण उन्होंने खुद ही किया था। कुछ दिनों पूर्व जनेश्वर मिश्रा ट्रस्ट में पार्टी से निष्कासित युवा नेताओं की मौजूदगी में भी अखिलेश का पिता और अपने चाचा के प्रति बगावती रुख देखने को मिला था।
मुलायम का सख्त रवैया अखिलेश के लिए बना मुसीबत:
अब बात निकली थी तो दूर तलक जानी ही थी। सबकी निगाहें शिवपाल यादव की तरफ थी लेकिन जवाब परिवार और पार्टी के मुखिया की ओर से आया, जिसने अखिलेश को एक के बाद एक कई झटके दिए जिसका असर आने वाले दिनों में देखा जा सकता है। मुलायम सिंह यादव ने उनके प्रचार को लेकर कहा कि जिसको जो भी साधन मिलेगा, उसी से प्रचार करेगा। साइकिल हो या रथ सब चुनाव प्रचार करेंगे।
लेकिन बड़ा वक्तव्य तो तब आया जब मुलायम ने ये कह दिया कि मुख्यमंत्री के चेहरे का फैसला विधानमंडल के नेता करेंगे। अर्थात अब तक अखिलेश के विकासपुरुष रूपी चेहरे पर चुनाव लड़ने की बात करने वाले मुलायम ने अचानक रुख बदल दिया। प्रदेश अध्यक्ष की कमान शिवपाल के हाथों में है और कमान मिलने के बाद जिस प्रकार अखिलेश के करीबियों को शिवपाल ने किनारे लगाया है, अखिलेश के लिए आगे का रास्ता चुनौतियों भरा होने वाला है।
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नामकरण की बात पर मुलायम ने कहा कि कई लोगों ने अपना नाम खुद रख लिया, ये कोई हैरानी वाली बात नहीं है। उन्होंने फिल्मस्टार धर्मेंद्र का उदाहरण भी दे दिया। अब बारी शिवपाल की थी, उन्होंने भी कहा कि भला बचपन में अपना नामकरण कौन करता है।
क्या अलग राह चुनने की चाह में हैं अखिलेश?
अखिलेश यादव अपनी योजनाओं की बात करते हैं और उसी सहारे दूसरी बार सत्ता में वापसी की उम्मीद लगाए बैठे हैं। लेकिन पार्टी और परिवार में उठापटक के बाद अखिलेश यादव अब अकेले पड़ते नजर आ रहे हैं। महिला सम्मान के नाम पर हेल्पलाइन 1090 शुरू करना या पावर एंजेल्स की टीम बनाने के बाद अखिलेश सरकार की छवि को निखारने की बात कर रहे हैं और दोबारा मुख्यमंत्री बनने के अवसर बना रहे हैं लेकिन इन सभी बातों से अलग उनका मुलायम सिंह यादव के निर्णयों पर सवाल उठाना उनके लिए परेशानी का सबब बन गया है।
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मुलायम के निर्णय को समाजवादी पार्टी और यादव परिवार में कोई चुनौती नहीं दे सका था लेकिन अब उनका पुत्र ही उनके वर्चस्व को चुनौती देते हुए ‘एकला चलो रे’ के नारे पर उतर आया है तो देखना है मुलायम का ये सख्त रवैया कबतक जारी रहता है। अखिलेश यादव लगातार अपने निर्णयों के बदले जाने से खफा और खिन्न होकर पिता के खिलाफ बगावत करने के मूड में दिख रहे हैं। ऐसे में पिता के सख्त रवैये से खिन्न और अलग-थलग दिख रहा पुत्र कहीं अलग राह चुनने की मुहिम में तो नही जुट गया है, इसका जवाब भी देर-सबेर मिल ही जायेगा। लेकिन एक बात साफ़ होती दिख रही है कि अब अखिलेश और मुलायम के घर ही नहीं सोंच,सुर और रास्ते भी अलग हो चुके हैं।