बरेली लोकसभा सीट से ये है सपा उम्मीदवार के प्रबल दावेदार
लोकसभा 2019 के चुनाव में सपा और बसपा गठबंधन ने चुनावी सीट लिस्ट जारी कर अपने दम खम हेतु चुनाव मैदान में उतर चुके है। गठबंधन के बाद भी बरेली लोकसभा सीट पर इन दोनों दलों की राह आसान नहीं दिख रही है। क्यूंकि बरेली लोकसभा सीट भाजपा का मजबूत गढ़ मानी जाती है जिसके चलते यहां पर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी एक बार भी जीत नहीं दर्ज कर सकी है। इस लोकसभा सीट पर सबसे ज्यादा सात बार भाजपा ने जीत दर्ज की है जबकि कांग्रेस ने यहां पर छह, भारतीय जनसंघ ने दो और भारतीय लोकदल ने एक बार इस सीट पर अपना परचम फहराया है। सूत्रों के अनुसार इस बार लोकसभा 2019 चुनाव के लिए बरेली की सीट से पूर्व मंत्री भगवतशरण गंगवार की दावेदारी प्रबल मानी जा रही है
- झुमकों के लिए मशहूर उत्तर प्रदेश की बरेली लोकसभा सीट राजनीतिक लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है।
- पिछले करीब तीन दशक से इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी का एक छत्र राज रहा है।
- यहां से सांसद संतोष गंगवार कई बार इस सीट पर चुनाव जीत चुके हैं और इस समय केंद्र सरकार में मंत्री है।
- बरेली क्षेत्र में संतोष गंगवार का राजनीतिक दबदबा है।
- 2019 में एक बार फिर बीजेपी को उम्मीद रहेगी कि संतोष गंगवार पार्टी के लिए यहां से कमल खिलाएं।
पिछले लोकसभा चुनाव 2014 में 5 में से 1 सीट पर सपा ने किया था कब्जा
2014 में प्रचंड मोदी लहर का असर बरेली मंडल की लोकसभा सीटों पर भी देखने को मिला था। भाजपा ने यहाँ पर पांच लोकसभा सीट में से चार पर अपना कब्जा जमाया था जबकि बदायूं की सीट समाजवादी पार्टी के खाते में गई थी। बदायूं से अखिलेश यादव के भाई धर्मेंद्र यादव लगातार दूसरी बार सांसद चुने गए थे।
- जबकि बरेली से संतोष गंगवार, पीलीभीत से मेनका गांधी, शाजहांपुर से कृष्णा राज और आंवला लोकसभा सीट पर धर्मेंद्र कश्यप चुनाव जीते थे।
- बरेली में सपा की आयशा इस्लाम, आंवला में सपा के कुंवर सर्वराज सिंह, पीलीभीत से सपा के बुद्धसेन वर्मा और शाजहांपुर लोकसभा सीट पर बसपा के उम्मेद सिंह दूसरे स्थान पर रहे थे।
सपा की तरफ से लड़ने वाले प्रत्याशियों में लाइन में लगे है ये प्रत्याशी
बदायूं से सांसद धर्मेंद्र यादव का लड़ना तय माना जा रहा है। पूर्व मंत्री भगवतशरण गंगवार व आयशा इस्लाम भी चुनाव की तैयारी कर रहे हैं उन्हें पार्टी पीलीभीत या बरेली लोकसभा से चुनाव मैदान में उतार सकती है।
- इसके अलावा आंवला लोकसभा सीट पर कुंवर सर्वराज सिंह या बदायूं के पूर्व विधायक आबिद रजा चुनाव लड़ सकते है।
- इसी तरह से बरेली लोकसभा सीट के लिए पूर्व मेयर डॉक्टर आईएस तोमर, इस्लाम साबिर और आंवला से अगम मौर्य भी दावा कर सकते है।
आइये जाने क्या है बरेली के राजनैतिक समीकरण
आजादी के बाद हुए लोकसभा चुनावों में बरेली लोकसभा सीट का आकार बदलता रहा है। शुरुआती तीन चुनाव तक पूरा जिला एक लोकसभा सीट था। वर्ष 1967 में आंवला एक अलग लोकसभा क्षेत्र बना और जिले की तीन विधानसभा बरेली से हटा कर आंवला में जोड़ दी गई। बरेली के हिस्से में शहर, कैंट, कांवर(अब मीरगंज), नवाबगंज और भोजीपुरा क्षेत्र शामिल हुए।
- जिले का बहेड़ी लोकसभा क्षेत्र नैनीताल लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा बन गया।
- राज्य का विभाजन हुआ तो बहेड़ी को फिर से बरेली लोकसभा में शामिल कर लिया गया।
- परिसीमन के बाद बहेड़ी विधानसभा पीलीभीत लोकसभा में शामिल हो गया।
- बरेली लोकसभा सीट पर अभी तक 16 बार बार चुनाव हुए हैं, इनमें से 7 बार भारतीय जनता पार्टी ने बाजी मारी है।
- जिसमें से 6 बार तो लगातार जीत दर्ज की गई थी। 1952, 1957 के चुनाव में कांग्रेस ने यहां जीत दर्ज की।
सबसे ज्यादा बार इस सीट से अभी तक जीती बीजेपी
लेकिन 1962 और 1967 के चुनाव में यहां कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा और भारतीय जनसंघ ने यहां जीत दर्ज की। हालांकि, उसके बाद हुए तीन चुनाव में से दो बार कांग्रेस चुनाव जीती।
- 1989 के चुनाव में यहां बीजेपी की ओर से संतोष गंगवार जीते।
- जिसके बाद तो उन्होंने इस क्षेत्र को अपना गढ़ बना लिया।
- 1989 से लेकर 2004 तक लगातार 6 बार संतोष गंगवार यहां से चुनाव जीते।
- हालांकि, 2009 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा लेकिन 2014 में एक बार फिर वह बड़े अंतर से जीत कर लौटे।
- 2017 के विधानसभा चुनाव में इन सभी 5 सीटों पर बीजेपी का ही कब्जा रहा था।
आइये जाने क्या है बरेली के जातीय समीकरण
बरेली लोकसभा सीट पर वैश्य, दलित और मुस्लिम वोटरों का वर्चस्व रहा है। 2014 लोकसभा चुनाव में यहां कुल 16 लाख से अधिक मतदाता थे, इनमें करीब 9 लाख पुरुष और 7.5 लाख महिला मतदाता हैं। बरेली जिले में मुस्लिम जनसंख्या की तादाद भी बड़ी संख्या में है। अगर बात करें बरेली लोकसभा की तो इस सीट पर मतदाताओं की संख्या करीब 16 लाख है जिसमे मुस्लिम मतदाताओं की संख्या साढ़े चार लाख से भी ज्यादा है जबकि इस सीट पर 1.75 लाख दलित मतदाता भी है। यहां पर कुर्मी मतदाता भी साढ़े तीन लाख है जोकि संतोष गंगवार की असली ताकत है।
- क्षत्रीय — 70 हजार
- ब्राह्मण – एक लाख
- मौर्य – 1.50 लाख
- दलित – 1. 75 लाख
- वैश्य – 1.25 लाख
- मुस्लिम – 4.50 लाख
- कश्यप – एक लाख
- कुर्मी – 3.50 लाख
- लोध – एक लाख
- कायस्थ – एक लाख
- यादव – 70 हजार
रिपोर्ट- संजीत सिंह सनी
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