कपिल काजल
बेंगलुरु, कर्नाटक:
रोड से जुड़े ठेकेदार पर्यावरण की किस तरह से अनदेखी कर रहे हैं। कैसे उन्हें राजनेता लाभ पहुंचाते हैं। इससे इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। कर्नाटक सरकार ने शहर में जाम की समस्या को दूर करने के लिए एक फ्लाईओवर बनाने का निर्णय लिया। तय किया गया कि एक स्टील का फ्लाईओवर जो कि पहले से ही तैयार कर लिया गया, बस उसे यहां खड़ा भर करना है। लेकिन जब शहर के लोगों को सरकार की योजना का पता चला तो उन्होंने इसका विरोध किया। क्योंकि इससे समस्या तो दूर होनी नहीं थी, लेकिन शहर में पर्यावरण की दिक्कत और ज्यादा गंभीर होने का अंदेशा था।
अब राज्य के शहरी विकास मंत्री बृजपति बसवराज इसी स्टील फ्लाईओवर का नया प्लान लेकर आये हैं। उन्होंने शहर के नागरिकों और पर्यावरणविदों के सामने इस प्लान को रख कर उनकी राय जानने की कोशिश की।
लेकिन पर्यावरणविदों का कहना है कि ठेकेदार फ्लाईओवर का जो नया माडल पेश कर रहे हैं, उसे इस तरह से बनाया गया कि ठेकेदार को ही लाभ हो। इसमें पर्यावरण की पूरी तरह से अनदेखी की गयी है। जाहिर है इस माडल तैयार करने में किसी न किसी स्तर पर राजनेता भी ठेकेदार का साथ दे रहे हैं। तभी तो मंत्री ने न सिर्फ माडल के नये प्रारुप को स्वीकार कर लिया, बल्कि वह इस कोशिश में है कि विरोध करने वाले अब शांत हो जाए।
फ्लाईओवर का विरोध करने वालों नागरिकों को इससे महसूस हुआ कि सरकार फ्लाईओवर का निर्माण करके ही रहेंगी। तब उन्होंने एक याचिका कोर्ट में डाली है। नागरिकों के संगठन नागरिक एजेंडा फॉर बेंगलुरु , ने याचिका दायर किया है। इसमें बताया गया कि निजी स्वार्थ के तहत यह निर्माण हो रहा है, इससे समस्या का किसी भी तरह से हल होने वाला नहीं है। यह भी दावा किया गया कि बल्कि इससे समस्या और ज्यादा बढ़ सकती है। निर्माण के लिए पेड़ो का कटान किया जाएगा, वाहनों की संख्या यहां बढ़ जाएगी। इस वजह से यह क्षेत्र प्रदूषण और गर्म इलाके में तब्दील हो सकता है।
याचिका में बताया गया कि इस प्लान को बनाने से पहले,इसका पर्यावरण पर क्या असर पड़ेगा, इसका आंकलन तक नहीं किया गया।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि प्रोजेक्ट के बारे में स्थानीय लोगों से कोई राय नहीं ली गयी। न ही यह देखा गया कि इस समस्या से निपटने के विकल्प और क्या क्या हो सकते हैं?
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इकोलॉजिकल साइंस के प्रोफेसर डाक्टर टीवी रामचंद्र कहते हैं कि नौकरशाह, क्योंकि राजनेताओं के इशारे पर काम करते हैं, इसलिए वह अक्सर जनता के हितों की अनदेखी करते हैं। उन्होंने कहा कि कई मौक़ों पर नौकरशाह राजनेता की
कठपुतलियाँ बन जाते हैं। वह राजनेताओं और उनके चहेते ठेकेदारों को को लाभ पहुंचाने के लिए शहर में अनावश्यक परियोजनाओं को भी मंजूरी दे देते हैं।
डॉक्टर रामचंद्र ने आगे बताया कि वातावरण को प्रदूषण मुक्त करना सरकार का कर्तव्य है। अब यदि सरकार कोई ऐसी परियोजना तैयार करती है, जिससे पर्यावरण को नुकसान होता तो, इसके विरोध में लोग कोर्ट में जा सकते हैं। क्योंकि प्रदूषण का स्तर बढ़ने से उनके स्वास्थ्य पर भी इसका विपरीत असर पड़ेगा।
पर्यावरण कार्यकर्ता, जोरू भाठेना ने कहा कि राजनेता और सरकार विकास के नाम पर सिर्फ ऐसा दिखावा करना चाहते हैं जिससे उन्हें चुनाव में वोट ज्यादा से ज्यादा मिले। यहीं वजह है कि सरकार फ्लाईओवर के निर्माण पर जोर दे रही है। लेकिन इसके विपरीत पर्यावरण की रक्षा करने वाले उपाय क्योंकि दिखायी नहीं देते, राजनेताओं को लगता है कि इससे उन्हें वोट तो मिलेगी नहीं, इसलिए वह ऐसे विषयों में दिलचस्पी नहीं लेते हैं।
कार्यकर्ताओं का आरोप: यह परियोजना सिर्फ पैसे की बर्बादी
संविधान में उल्लेख है कि पर्यावरण को संरक्षित किया जाना चाहिए। कार्यकर्ताओं और
पर्यावरणविदों का आरोप है कि परियोजनाअों में कहीं भी पर्यावरण का ध्यान नहीं रखा गया है। इस योजना का कोई मतलब नहीं है। फिर भी योजना तैयार की गयी, यानी यह सीधे सीधे पैसे की बर्बादी है।
बेंगलुरु के लिए सिटी जन एजेंडा के संस्थापक संदीप अनिरुद्धन कहते ंहैं कि इस तरह की परियोजनाओं के पीछे
ठेकेदार लॉबी काम करती है। जो अपने निजी मुनाफ़े के लिए इस तरह की प्रोजेक्ट तैयार कराते हैं, जिनकी जरूरत ही नहीं होती। क्योंकि ठेकेदार और राजनेता एक दूसरे से मिले हुए हैं। इसलिए राजनेता इस तरह की परियोजनाओं को सहमति देते हैं। उन्होंने कहा कि सलाहकारों, ठेकेदारों, नौकरशाहों और राजनेताओं के बीच सांठगांठ है। क्योंकि आम आदमी अपनी दूसरी व्यस्ताओं की वजह से इस ओर ध्यान नहीं देता,इसलिए यह गोरखधंधा चल रहा है।
वृक्ष मित्र कार्यकर्ता अरुण प्रसाद ने जोर देकर कहा कि इस तरह के प्रोजेक्ट सिर्फ अपनी जेब भरने के लिए तैयार होते हैं। अब क्योंकि सरकार को जनता के सामने जवाब देना है,इसलिए वह ऐसे प्रोजेक्ट को इस तरह से पेश करते हैं मानो वह समाज हित में हो। इस कोशिश के पीछे मंशा यह होती है कि टेक्स देने वालों को समझाया जाए कि यह योजना जरूरी है। इसलिए विकास के नाम पर योजना शुरू होती है, लेकिन इसके पीछे मंशा सिर्फ अपनी जेब भरने की होती है।
अरुण प्रसाद ने कहा कि उस अधिकारी के खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए ,
“जिसने भी ऐसी परियोजनाओं को जानबूझकर गैर-आपत्ति प्रमाण पत्र दिया । यह प्रदूषण और कानून के खिलाफ है, इसलिए प्रमाण पत्र जारी करने वाले अधिकार ने ईमानदारी से काम नहीं किया। उसे सेवा से मुक्त किया जाना चाहिए। इसी तरह से
सरकार, अधिकारियों, नौकरशाहों, राजनेताओं के खिलाफ भी उचित कार्यवाही होनी चाहिए क्योंकि उन्होंने लोगों के जीवन से खिलवाड़ किया है। उन्होंने रोष व्यक्त करते हुए कहा कि
“वे (अधिकारी) सिर्फ रिश्वत लेते हैं और परियोजनाओं को पास करते हैं। यह नहीं देखते कि इंसानों पर इसका कितना विपरीत असर पड़ेगा।
फ़ाउंडेशन आॅफ इकोलॉजी सिक्योरिटी ऑफ इंडिया के गवर्निंग काउंसिल के सदस्य डाक्टर येलापा रेड्डी ने कहा कि
बढ़ते प्रदूषण की वजह से
बेंगलुरु के निवासी दमा के रोग से ग्रस्त हो रहे हैं। शहर लगातार प्रदूषण की चपेट में आकर बर्बाद हो रहा है। फिर भी शहर में विकास के नाम पर एेसी परियोजना शुरू की जा रही है, जिनका यहां के पर्यावरण पर विपरीत असर पड़ने वाला है। इस तरह की योजनाओं को तैयार करने वाले नौकरशाह और रिश्वत लेने वाले राजनेताओं पर ” गैर इरादतन हत्या” का मामला दर्ज होना चाहिए।
शहरी संरक्षणवादी विजय निशांत ने बताया कि शहरी जीवन मतलब होता है,
अच्छी हवा और साफ पानी। लेकिन यहां तो बच्चे खराब हवा में सांस ले रहे हैं, लेकिन राजनेताओं को इसकी चिंता ही नहीं है। वह तो जल जमीन और हवा सब कुछ पैसे के लिए दांव पर लगा रहे हैं। हर कोई इसलिए टेक्स देता है कि सरकार उन्हें
स्वच्छ वातावरण देगी। अब यदि सरकार, राजनेता और नौकरशाह ऐसा नहीं कर रही है तो निश्चित ही लोगों को इसके खिलाफ अदालत में जाना चाहिए।
पर्यावरणविद् अक्षय हेबिलकर ने कहा, “सरकार का ध्यान अर्थव्यवस्था है, पर्यावरण नहीं। उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि विकास और पर्यावरण में संतुलन होना चाहिए। इसके लिए आर्थिक नीतियों में संशोधित किया जाना चाहिए। विकास होना चाहिए, रोज़गार के अवसर भी पैदा होने चाहिए, लेकिन इस सब के बीच पर्यावरण की अनदेखी नहीं होनी चाहिए। विकास का ऐसा मॉडल बने, जो न सिर्फ टिकाउ हो, बल्कि पर्यावरण के मुफीद भी हो।