प्रयागराज में हर साल सजता है अनोखा विवाह मंडप,- सलमान प्रतापगढ़ी द्वारा समाज के लिए एक अनूठी मुहिम
यदि आपको सामाजिक समरसता और गंगा जमुनी तहज़ीब की ज़िंदा मिसाल देखनी है तो हर साल राजर्षि टंडन सेवा केंद्र परिसर में आयोजित होने वाले सामूहिक विवाह समारोह का हिस्सा बनकर देख सकते हैं। यहाँ का अनोखा दृश्य देखकर आप अभिभूत भी हो जाएँगे और भावुक भी। यहाँ एक ओर ब्राह्मण मंत्रों का उच्चारण करते हैं तो दूसरी ओर मौलवी निकाह की रस्म अदा करवाते हैं।
प्रत्येक वर्ष इस कार्यक्रम में बड़े पैमाने पर अपना योगदान देने वाले सामाजिक कार्यकर्ता सलमान प्रतापगढ़ी कोरोना की वजह से सामूहिक विवाह कार्यक्रम स्थगित होने से निराश हैं, बात चलने पर वह कहते हैं कि हर साल इस कार्यक्रम का हिस्सा बनकर जो सुकून हासिल होता था वो इस साल नही मिल पाया,हालाँकि हम सबने लॉक्डाउन में परेशान हर जरूरतमंद की लगातार मदद करने का काम किया है फिर भी दिल में एक बेसुकूनी है क्योंकि प्रत्येक वर्ष होने वाले इस कार्यक्रम से हम सबकी भावनाएँ जुड़ी हैं।
स्थिति सामान् यहोते ही पुनः कराई जायेंगी शादियाँ: सलमान प्रतापगढ़ी
सलमान का कहना है की शादी के कुल 43 जोड़े देखे जा चुके थे जिनमें 18 दिव्यांग जोड़ों को लेकर 37 जोड़े हिन्दू समाज से तथा 6 मुस्लिम समाज से ताल्लुक रखते हैं।सारी तैयारियाँ ज़ोरों पर थीं लेकिन अचानक से आयी वैश्विक विपदा ने हमारे सपनों पर पानी फेर दिया और कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा लेकिन हम सब सारे परिवारों से निरंतर सम्पर्क बनाए हुए हैं और जैसे ही स्थिति सामान्य होती है पुनः उसी धूमधाम से शादियाँ सम्पन्न कराई जाएँगी।
पूरी शान-ओ-शौक़त से निकलती है बरात, रहता है हाथी-घोड़े-बग्घी व डीजे का इंतज़ाम
सलमान बताते हैं कि समारोह स्थल पर सभी दूल्हे बैंक रोड से हाथी-घोड़े व बग्घी पर सवार होकर डीजे के साथ कार्यक्रम स्थल तक पहुंचते हैं जहां पर उनकी आरती उतारी जाती है और फिर मंडप में शादी कराई जाती है। साथ ही सभी जोड़े को उपहार स्वरूप सभी ज़रूरत का सामान भी दिया जाता है। दिव्यांग जोड़ों को दिव्यांगता प्रमाणपत्र भी दिया जाता है।
बड़े भाई से मिला मदद का जज़्बा
सलमान कहते हैं कि उन्हें ज़रूरतमंदों की मदद करने का यह जज़्बा उनके बड़े भाई कॉंग्रेस नेता व मशहूर शायर इमरान प्रतापगढ़ी से मिला है। वह हमेशा उन्हें अपने साथ ऐसे तमाम कार्यक्रमो में ले जाते थे जिसे देखकर उनके भी दिल में यह जज़्बा पैदा हुआ कि वह जरूरतमंदों के साथ खड़े हों