465 वें मुड़िया महोत्सव में ढोल,मृदंग की गूंज पर थिरकेंगे सनातन भक्त, कराया मुंडन
मथुरा-
विषम परिस्थिति में भी परंपरा कभी रुकती नहीं। कोरोना संक्रमण से बचाव को मुड़िया मेला पर भले ही प्रतिबंध लगा हो लेकिन, मुड़िया परंपरा निभाई जाएगी। प्रतीकात्मक तौर पर ही सही। शुक्रवार को मुड़िया संतों ने मुंडन कराया और ढोल-मृदंग बजाते हुए अधिवास संकीर्तन में तल्लीन हो गए। इसके साथ ही 465वें मुड़िया महोत्सव की शुरूआत हो गई। अब गुरु पूर्णिमा के दिन शनिवार शाम को महाप्रभु मंदिर से मुड़िया संत शोभायात्रा निकालेंगे।
चैतन्य महाप्रभु मंदिर के महंत गोपाल दास ने बताया कि अधिवास संकीर्तन के साथ मुड़िया महोत्सव शुरू हो गया है। परंपरा है कि पूज्य सनातन गोस्वामी की शोभायात्रा से पूर्व सनातन भक्तों ने मुंडन कराया शुक्रवार को सुबह से अखंड हरिनाम संकीर्तन शुरू हो गया शनिवार सुबह गुरु पूजा होगी और शाम को संत झूमते-नाचते हुए संत सनातन के चित्रपट के साथ मानसी गंगा की परिक्रमा करेंगे। सभी संतों का दुपट्टा और स्मृति चिन्ह भेंटकर सम्मान किया जाएगा। वहीं कोरोना संक्रमण के कारण प्रशासन ने मुड़िया मेला निरस्त कर दिया है। इस निर्णय से संत सनातन से जुड़े तमाम गौड़ीय भक्त निराश हो गए। महाप्रभु मंदिर के मुड़िया महंत गोपाल दास ने बताया कि तमाम भक्त आना चाहते हैं, इसके लिए फोन कर रहे हैं। कोरोना के चलते सबसे मना किया जा रहा है। सभी भक्तों को फेसबुक पर शोभायात्रा सहित अन्य महोत्सव के लाइव दर्शन कराए जाएंगे। इससे दूर-दराज के भक्त अधिवास संकीर्तन, मुंडन, गुरु पूजा और मुड़िया शोभायात्रा का घर बैठे दर्शन कर सकें। इसके लिए पांच अनुयायियों की टीम बनाई गई है। इससे भक्तों को निर्बाध दर्शन मिल सकें। मुड़िया मेला की परंपरा मुड़िया संतों की मान्यता के अनुसार, पश्चिम बंगाल में मालदा के गांव रामकेली के रहने वाले सनातन गोस्वामी बंगाल के राजा हुसैन शाह के यहां मंत्री थे। चैतन्य महाप्रभु की भक्ति से प्रभावित होकर सनातन गोस्वामी उनसे मिलने वाराणसी आ गए। चैतन्य महाप्रभु की प्रेरणा ने उन्हें भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति और ब्रजवास करा दिया। ब्रज के विभिन्न स्थलों पर सनातन ने भक्ति की। वह वृंदावन से रोजाना गिरिराज प्रभु की सप्तकोसीय परिक्रमा करने गोवर्धन आते थे। चकलेश्वर मंदिर पर बनी भजन कुटी उनकी भक्ति की साक्षी रही है। मुड़िया संतों के अनुसार, 1556 में सनातन गोस्वामी के गोलोक गमन के बाद गौड़ीय संतों ने सिर मुड़वाकर उनके पार्थिव शरीर के साथ सप्तकोसीय परिक्रमा लगाई। तभी से गुरु पूर्णिमा को मुड़िया पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
Report -Jay