क्या आपको याद है रेडियो – चार पायों की टेबल पर रखा होता था वो टेपरिकॉर्डर।।।।

रेडियो।

चार पायों की टेबल पर रखा होता था वो टेपरिकॉर्डर।उस लाल रंग के टेपरिकॉर्डर में रेडियो भी बजता था। विविध भारती,बिनाका संगीत माला, और लोगों की फरमाइश के मुताबिक नए, पुराने गाने भी बजते थे। अपने मनपसंद गानों की कैसेट लगा कर जब मन चाहता,बजा लिया करते। कितने सुकून से सुनते थे तब वो गाने। कैसेट की एक साइड खत्म होने पर,पलट कर उसे दूसरी साइड से लगा लिया करते।
ना जाने कितनी बार उलझी होगी कैसेट की टेप, और कितने इत्मीनान से उसे पेन से घुमा घुमाकर सही किया करते थे।
उन दिनों मनोरंजन के नाम पर टीवी पर आधे घंटे का सीरीयल आया करता था, और या फिर बुधवार, शुक्रवार को चित्रहार सोने पर सुहागे का काम किया करता। ऐसे में यह टेपरिकॉर्डर/रेडियो ही साथ देता। दिवाली की सफाई करनी है… लगा ली कैसेट और लग गए काम पर। कभी किचन में तो कभी छत पर… ऐसे ही पूरे घर में घूमा करता हमारा यह छोटा सा पिटारा।
ऐसा लगता है,उन दिनों जितने मनोरंजन के साधन कम थे, जिंदगी में उतना ही सुकून था। घर भरा रहता था,काम खत्म होने पर सब गप्पे मारा करते। आज कल जितनी सुविधा बढ़ गई है, उतना ही अकेलापन भी बढता जा रहा है। बच्चों से लेकर बड़ों तक, सबके पास अपना मोबाइल है और सब सर झुकाए उसी में व्यस्त रहते हैं।चार लोग खाना खाने डाइनिंग टेबल पर बैठते तो हैं, लेकिन एक हाथ में रोटी का कौर होता है तो दूसरे हाथ में मोबाइल।
क्यों ना, जब तक हम अपने अपनों के साथ हैं,हम अपना वक्त जी लें । कुछ देर हंसी मज़ाक कर लें ,कोई खेल खेल लें और जी लें अपनी जिंदगी।

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