उत्तर प्रदेश में करीब चालीस जिलों में 50 लाख किसान गन्ने की खेतो से जुड़े हुए हैं. यही नही ये किसान साल भर में करीब 25 से 28 हजार करोड़ रूपए की गन्ने की फसल तैयार करते है।
- लेकिन इस के बाद भी ये किसान मुफलिसी और तंगहाली में जीने को मजबूर हैं।
- इसका कारण ये है कि केंद्र सरकार हो या प्रदेश सरकार, इनकी तिजोरियां सिर्फ चीनी उद्योग के लिए ही खुली हैं।
- फिर चाहे करोड़ों का पैकेज देने की बात हो या फिर ब्याज मुक्त कर्ज देने की सरकार की इनायत सिर्फ चीनी उद्योग तक ही सीमित रह जाती है।
- गन्ना किसानों कि सुध लेने और उन्हें सुविधाएँ देने की चिंता न तो सरकार को है और न ही किसी नेता को।
चीनी मीलों पर मेहरबान सरकार-
- उत्तर प्रदेश सरकार चीनी मिलों पर बड़ी ही मेहरबान है।
- गौरतलब हो कि राज्य सरकार ने चीनी मिलों का करीब 1100 करोड़ रूपए का ब्याज माफ़ किया है।
- ब्याज की ये धनराशी चीनी मिलों को 14 दिनों में भुगतान न करने पर गन्ना किसानों को दी जानी थी।
- लेकिन प्रदेश सरकार ने चीनी मिलों का पेराई सत्र 2012-2013 , सत्र 2013-2014 एवं सत्र 2014-2015 का ब्याज माफ़ कर दिया।
- यही नही पिछले 3 सालों से गन्ना खरीद टैक्स , चीनी पर एंट्री टैक्स और गन्ना समितियों के कमीशन के रूप में करीब 11.50 रूपए प्रति क्विंटल की छूट दी गई।
- इसके साथ ही पिछले दो सत्रों के गन्ना मूल्य के भुगतान को दो किश्तों को देने की भी छूट दी गई।
प्रदेश में इतनी है चीनी मिलें
- उत्तर प्रदेश में करीब 116 चीनी मिलें हैं।
- जिनमे 24 मिलें सरकारी और 91 मिलें गैरसरकारी हैं।
ऐसे होता है गन्ने से 25-28 करोड़ का कारोबार-
- यूपी में करीब 50 लाख किसानों की आय का प्रमुख श्रोत है गन्ना।
- गन्ना किसान चीनी मिलों को साल भर में करीब 20 से 22 करोड़ का गन्ना सालाना बेंचते हैं।
- इस के अलावा ये किसान करीब तीन से चार करोड़ रूपए का कारोबार गुड़ बेंच कर करते हैं।
- बाकी व्यापार ये किसान गन्ने का जूस और बीज बेंच कर करते हैं।
- गौरतलब हो की इस किसानों के साथ की प्रदेश भर के करीब एक लाख 80 हज़ार कुटीर उद्योग करने वालों की जीविका भी इसी गन्ने से चलती है।
प्रदेश के 50 लाख गन्ना किसान नेताओं और चीनी मिलों के लिए है दुधारू गाय-
- प्रदेश के करीब 50 लाख गन्ना किसान चीनी मिलों और नेताओं के लिए दुधारू गाय सभी हो रहे हैं।
- चीनी मीलों को एक तरफ जहाँ ये किसान करोड़ों का गन्ना पैदा कर के देते हैं।
- वहीँ दूसरी तरफ नेताओं के लिए ये किसान एक बहुत बड़ा वोट बैंक बने हुए हैं।
- हर चुनाव में इन नेताओं को गन्ना किसानों की तभी याद आती है जब इन्हों वोट चाहिए होता है।
प्रदेश में ये है गन्ना किसानों की हालत-
- प्रदेश भर में गन्ना किसानों की हालत बाद से बदतर हो चली है।
- एक तरफ जहाँ इन किसानों पर अलग अलग प्रकार का बोझ बढ़ता जा रहा है।
- वहीँ दूसरी तरफ गन्ने के मूल्य में वृद्धि और गन्ने के मूल्य का भुगतान सही समय पर न हो पाने के चलते इनकी हालत और भी खराब हो चली है।
- बता दें कि गन्ना मूल्य का भुगतान किश्तों में होने के कारण इन्हें समय से पैसा नही मिलता।
- जिसके बाद इसके पास न तो बच्चों की पढ़ाई का पैसा बचता है और न ही दावा इलाज का।
- ऐसे में इन पर कहीं बेटे या बेटी की शादी का बोझ पड़ जाता है तो भूखे मरने की नौबत आ जाती है।
किसानों पर बढ़ता जा रहा ये बोझ-
- प्रदेश किसानों पर करीब 35 प्रतिशत बढ़ा बिजली दरों का बोझ।
- 30 रुपया प्रति 50 किग्रा बढ़ा यूरिया का बोझ।
- 7 रूपए प्रति लीटर बढ़ा डीज़ल का बोझ।
- 10-20 प्रतिशत बढ़ा कीटनाशक दवाओं का बोझ।
- 30 प्रतिशत अतिरिक्त बढ़ा मज़दूरी का बोझ।
- 10 प्रतिशत प्रति क्षेत्रफल गन्ना मूल्य गिरावट का बोझ।
राजनीतिक दलों को चुनावी घोषणा पत्र गन्ना किसानों को दिखा रहे ठेंगा-
- सपा – सपा सरकार को गन्ना किसानों की कोई चिंता नही।
- इसी लिए उन्होंने ने अपने घोषणा पत्र में किसानों के लिए किसी भी प्रकार का वादा कारने की ज़रूरत नही समझी।
- कांग्रस-सपा से गठबंधन होने के बाद इन्होंने अपन घोषणा पत्र जारी करने की कोई ज़रूरत ही नही समझी।
- बीजेपी-इन्होंने अपने घोषणा पत्र में 14 दिनों में गन्ने का मूल्य दिलाने की बात कही है।
- इसके बाद अगर बकाया राशि बचती है तो उसे दिलाने के लिए इन्हों ने 120 दिनों का दिन माँगा है।
- जब कि सच्चाई ये हैं 14 दिन में गन्ने के मूल्य का भुगतान करने प्रावधान एक्ट में है।
- यही नही इसके बाद भुगतान करने पर 15 प्रतिशत ब्याज की व्यवस्था है।
- ऐसे में अगर बीजेपी 120 का समय मानती है तो ये सरासर एक्ट का उल्लंघन है।
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