दुनिया के सबसे पुराने विमानवाहक पोतों में से एक INS विराट अपने नाम की तरह एक विराट छवि के रूप में देश की नौसेना को अपनी सेवाएं देने के बाद आगामी 6 मार्च को सेवानिर्वृत हो जाएगा, परंतु करीब 3 दशकों तक सेना को सेवा देने के बाद अब तक सेना द्वारा यह तय नहीं किया जा सका है कि सेवानिर्वृति के बाद इसका भविष्य क्या होगा. दरअसल देश के किसी भी राज्य या संस्थान ने इसे खरीदने में दिलचस्पी नहीं दिखाई है. इस मुद्दे पर केवल आँध्रप्रदेश सरकार ने थोड़ी बहुत रूचि दिखाते हुए इसे म्यूजियम में रखने की बात की है, परंतु वे भी इसका पूरा खर्च उठाने को तैयार नहीं हैं. जिसके बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि विमान पोत INS विक्रांत की ही तरह देश को अपनी सेवा देने वाले INS विराट का भी अंजाम कबाड़ बनना ही ना हो.
क्या रही हैं INS विराट की खासियतें :
- भले ही भारतीय नौसेना ने सीधे तौर पर कारगिल युद्ध या श्रीलंका के ऑपरेशन विजय में भाग न लिया हो,
- परंतु विमानवाहक पोत INS विराट ने इन मौकों पर अपना कौशल ज़रूर दिखाया है.
- दरअसल अपने नाम की ही तरह यह पोत बहुत विराट रहा है, जिसमे एक बार में करीब 1,500 सैनिक ले जाए जा सकते हैं.
- इसके अलावा यह करीब 24 हज़ार टन के वज़न वाला विमानवाहक पोत है.
- साथ ही यह करीब 743 फुट लंबा है और करीब 160 फुट इसकी चौड़ाई है.
- अगर रफ़्तार की बात की जाए तो यह करीब 52 किलोमीटर प्रतिघंटा चलने की क्षमता रखता है.
- यही नहीं इस विमानवाहक पोत में 3 माह का राशन एक साथ रखा जा सकता है.
- आपको बता दें कि इस विमानवाहक पोत ने 12 मई 1987 को नौसेना में प्रवेश किया था.
- जिसके बाद आगामी 6 मार्च को करीब 30 साल तक अपनी सेवा देने के बाद यह सेवानिर्वृत हो जाएगा.
- परंतु इसके बाद इसकी किस्मत में आगे क्या होना है यह अभी तक तय नहीं है.
- दरअसल केवल आँध्रप्रदेश सरकार ने इसे लेने में रूचि दिखाई है.
- ऐसा इसलिए क्योकि आँध्रप्रदेश सरकार इसे बदलकर म्यूजियम बनाना चाहती है.
- जिसका कुल खर्च करीब 1000 करोड़ का है, जिसे सरकार अकेले झेलने को तैयार नहीं है.
- बता दें कि सरकार के अनुसार वे चाहती है कि इसका आधा खर्च रखा मंत्रालय उठाये.
- जबकि रक्षा मंत्रालय ने तकनीकी मदद व ज़रुरत पड़ने पर सलाह देने की बात कही है.
- ऐसे में क्या होगा INS विराट का भविष्य यह तो वक्त ही तय करेगा.
- परंतु सेवानिर्वृति के बाद यदि इसका भी हाल INS विक्रांत जैसा रहा तो देश में सभी विमानवाहक पोतों का भविष्य भी कबाड़ में बदलना तय है.