उत्तर प्रदेश का पांचवा चरण आ गया है। मतदान 27 फरवरी को होगा। लेकिन यह चरण उत्तर प्रदेश का सियासी इतिहास लिखेगा। तमाम कद्दावरों की किस्मत तो तय होगी ही लेकिन उससे पहले यह प्रदेश अयोध्या से अमेठी तक का सियासी इतिहास भी लिखेगा।
दांव पर लगी है गांधी परिवार की विरासत
- अमेठी जहां गांधी परिवार की विरासत दांव पर लगी है तो अयोध्या पहुंचते-पहुंचते उस भारतीय जनता पार्टी की भी किस्मत तय होगी जिसने अयोध्या पर 21 साल तक राज किया।
- पिछले चुनाव यानि 2012 मे तब अयोध्या की सीट बीजेपी के हाथ से फिसली तो यह मान लिया गया था।
- कि मंदिर मुद्दे पर सवार बीजेपी से लोगों का मोह इस हद तक भंग हो गया है।
- कि बीजेपी अपने राजनैतिक जीवन की अंतिम पायदान तक पहुंच गई है।
- लेकिन 2014 मे हालात ऐसे बदले की पूरे उत्तर प्रदेश में बीजेपी की बहार आ गई।
- अयोध्या में बीजेपी को धूल चटाने का इनाम तेज नारायण पांडेय यानि पवन पांडेय को मिला और अखिलेश सरकार में वह मंत्री बने लेकिन अब क्या होगा यह अयोध्या मे तय होगा।
अमेठी का यह है हाल
- बात को आगे बढ़ाएं, इससे पहले हम आपको अमेठी का हाल बता दें।
- अमेठी जिसने राजवंश के बाद अगर किसी को अपनाया तो वह था गांधी परिवार।
- राजा भगवान बख्श सिंह और मोती लाल नेहरु के जमाने से शुरु हुआ दोस्ती का यह सिलसिला 8 दशकों से आज तक जारी है।
- अमेठी राजवंश के मौजूदा नरेश संजय सिंह और राहुल गांधी तक यह सफर आज भी जारी है।
- लेकिन पिछली बार यहा गांधी परिवार के खिलाफ कुछ ऐसी हवा बही कि अमेठी जिले की चार में दो सीटे कांग्रेस हार गई।
- दो सीटें कांग्रेस के खाते मे आईं लेकिन बची हुई दो सीटों पर समाजवादी पार्टी ने कब्जा किया।
बीपीएल कार्ड धारक रहे गायत्री का भी हाल बुरा
- बीपीएल कार्ड धारक रहे गायत्री प्रजापति मंत्री बन बीएमडब्ल्यू तक पहुंच गये।
- कांग्रेस की दुर्दशा कुछ ऐसी हुई कि यहां 2014 के लोकसभा चुनाव में टीवी नायिका से नेता बनी स्मृति इरानी से राहुल गांधी को भी पसीने छुडवा दिये।
- देश ने पहली बार देखा कि मतदान के दिन गांधी परिवार का प्रत्याशी एक बूथ से दूसरे बूथ तक चक्कर काट रहा है।
- बहरहाल यह बात तो ढ़ाई साल पुरानी हो गई।
- मौजूदा हालात में कांग्रेस-सपा का गठबंधन है।
- लेकिन गठबंधन बेकार साबित हो रहा है।
- अमेठी राजघराने में भी वह बात नहीं रही।
- एक राजमहल में राजा एक लेकिन रानियां दो हैं।
- दोनों की रहें और दल अलग-अलग हैं।
- एक तरफ संजय सिंह की पहली पत्नी गरिमा सिंह अपने बेटे और जनता के साथ बीजेपी की तरफ से चुनौती दे रही हैं।
- तो वहीं संजय सिंह के दूसरी पत्नी बैडमिंटन क्वीन रही अमिता सिंह कांग्रेस पर सवार हैं।
- लेकिन अमिता सिंह की मुश्किल यह है कि उन्हें सपा के गायत्री प्रजापति और उनके ही घर की सदस्य गरिमा सिंह दोनों ही चुनौती दी रहे हैं।
- बाकी तीन सीटों पर भी मुकाबला त्रिकोणीय है।
अब होगी अयोध्या फैजाबाद की बात
- अब बात अयोध्या फैजाबाद की करते हैं।
- 80 के दशक के अंतिम दौर और 90 के दशक की शुरुआत में बीजेपी अयोध्या आंदोलन के दौरान रथयात्रा पर सवार हुई तो अयोध्या को देश ही नहीं दुनिया के स्तर पर लोग जानने लगे।
- अयोध्या की आंच ने पुराने तमाम सियासी समीकरणों को ध्वस्त कर दिया।
- यहीं से कांग्रेस के पतन की शुरुआत हुई।
- यहीं से समाजवादी पार्टी को जन्म मिला और यहीं से 2 सांसदो वाली बीजेपी के नये युग का आगाज हुआ।
- अयोध्या फैजाबाद पर बीजेपी ने करीब 21 साल तक राज किया।
- हालात देश में कैसे भी बदल गये हों लेकिन अयोध्या की सीट बीजेपी कभी नहीं हारी।
- लेकिन 21 साल बाद साल 2012 में बीजेपी का यह किला भी ढह गया।
- बीजेपी उम्मीदवार को हराकर छात्र नेता और अखिलेश के करीबी रहे पवन पांडेय यहां से चुनाव जीते।
- सिर्फ यहीं नहीं फैजाबाद की पांच में से 4 सीटों पर सपा ने कब्जा किया और सिर्फ एक सीट बीजेपी के हाथ में आईं।
- लेकिन हिंदुत्व के रथ पर विकास का झंडा लेकर जब 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी निकले तो पूरे उत्तर प्रदेश में सभी सियासी दलों का सूपडा साफ हो गया।
- फैजाबाद की लोकसभा में आने वाली पांचो विधानसभा सीटों पर बीजेपी को भारी बढ़त मिली।
- अब विधानसभा चुनाव में यहां किसी प्रत्याशी नहीं बल्कि बीजेपी की प्रतिष्ठा दांव पर है।
- जैसे अमेठी की हार और जीत कांग्रेस की हैसियत मापने का पैमाना है।
- ठीक वैसे ही अयोध्या में हार और जीत बीजेपी की हैसियत का पता बताती है।
- बहरहाल मतदान का वक्त नजदीक है।
- दिग्गजो की साख दांव पर है लेकिन निगाहें अमेठी से अयोध्या तक बनते बिगड़ते सियासी समीकरणों पर टिकी हुई हैं।
द्वारा मानस श्रीवास्तव
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