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हमारे समाज में किन्नर को लेकर तरह-तरह की बातें होती हैं. अक्सर किसी मांगलिक कार्य के दौरान किन्नर आते हैं और बख्शीश लेकर जाते हैं. लेकिन कभी एक उत्सुकता मन में होती है कि क्या किन्नरों का मांगलिक कार्य अर्थात शादी आदि कैसे होती है. बेहद हैरान वाले इस खुलासे में जो बातें सामने आयी, वो रोंगटे खड़े कर देती है.
शादी के 18वें दिन निभाई जाती है ये दर्दनाक प्रथा:

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किन्नरों की शादी भी होती और त्यौहार भी मनाया जाता है. वो सब कुछ होता है जो सभ्य समाज में शादी के दौरान होता है. तमिलनाडु के कई हिस्सों में ऐसे ही एक त्यौहार का आयोजन होता है और वहां देश भर से किन्नर इकठ्ठा होते हैं.

तमिल नव वर्ष की पहली पूर्णिमा को इस शादी से जुड़े रस्म की शुरुआत होती है. 18 दिनों तक चलने वाले उत्सव में पूरे भारत से किन्नर इकठ्ठा होते है. 16 दिन तक मधुर गीतों पर खूब नाच गाना होता है और किन्नर गोल घेरे बनाकर नाचते हैं. एकदम ख़ुशी का माहौल होता है. चारों तरफ के वातावरण को कपूर और चमेली के फूलों की खूशबू महकाती है.

17 वे दिन पुरोहित विशेष पूजा करते हैं और किन्नरों के आराध्य अरावन देवता को नारियल चढाया जाता है. अरावन देवता के सामने किन्नरों के गले में मंगलसूत्र पहनाया जाता है, जिसे थाली कहा जाता है और इसके बाद अरावन मंदिर में किन्नर अरावन की मूर्ति से शादी रचाते है.

18वें दिन निभाई जाती है दर्दनाक प्रथा:

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लेकिन अंतिम दिन यानी 18वें दिन का दृश्य एकदम दुखद होता है. कूवगम गांव में अरावन की प्रतिमा को घूमाकर तोड़ दिया जाता है. दुल्हन बने किन्नर अपना मंगलसूत्र तोड़ देते हैं और सफेद कपड़े पहन लेते है और जोर-जोर से विलाप करते हैं. अचानक माहौल गमगीन हो जाता है. इस प्रकार अरावन उत्सव समाप्त होता है.

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