किसी ने सच ही कहा है कि हथेली की पांचो उंगलियां बराबर नही होती हैं…शायद इसीलिए ये लाचार मां, आज कौन सा दिवस है, कल कौन सा दिवस होगा इस बात से बेखबर होकर रेलवे स्टेशन पर अपने लाल और परिवार के लिए दो जून को रोटी के लिए रेलवे स्टेशन पर जुगत कर रही है। बोतलों की तलाश कर रहे हैं वो बच्चे, जो न जाने किस मजबूरी में कॉपी किताब छोड़, थामे हैं कबाड़ की बोरी…अगर आप वर्चुअल दुनिया में मां पर लिखे हुए तमाम तरह के स्टेट्स पढ़ लिए हों, डीपी देख लिए हों और मदर्स डे मना लिए हों तो थोड़ा बाहर निकलकर असल जिंदगी की इस तस्वीर पर भी एक नजर डालिए।
देश के विकास को आईना दिखाती ये तस्वीर :
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- रेलवे के सबसे बड़े जाल वाले हमारे देश के सभी बड़े-छोटे स्टेशनों पर दिखने वाली हर दिन ये तस्वीर साधारण है।
- साधारण इसलिए है क्योंकि हर दिन गंदगी भरे कबाड़ के बीच ऐसी जाने कितनी ही तस्वीरें दब जाती हैं।
- हर दिन दब जाती है कहीं न कहीं उसके बचपन की चाहत।
- वो चाहत जो हाथों में कॉपी किताब और स्कूल बैग थामना चाहती है लेकिन मजबूरी में कंधे पर उठा लेती है कबाड़ की बोरी।
- कबाड़ की बोरी लिए स्टेशनों पर नजर आती है वो मां….
- वो मां जो अपने बच्चों के लिए दो जून की रोटी की जुगाड़ करते हुए हर दिन ऐसे ही दिखाई देती है।
- हर दिन रेलवे स्टेशन पर दिखाई देती है उसकी बेबसी और हर दिन सुनाई देता है सबका साथ सबका विकास।
- वही विकास जिसकी बात तो सब कर रहे हैं, मगर जब वास्विकता से इसका परिचय होता है तो निकलकर आती है ऐसी तस्वीर।
- ऐसी तस्वीर जो इन सभी बातों और वायदों की पोल खोलकर दिखाती है देश के विकास को सच्चाई का आईना।
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