राजधानी के हजरतगंज इलाके में पिछले दिनों हुई आईएएस अधिकारी की मौत की गुत्थी अभी तक पुलिस ने नहीं सुलझा पाई है। जिस तरह पुलिस ने शव आनन-फानन में उठाकर पीएम के लिए भेज दिया और सबूत भी नहीं इकठ्ठा किये।
- इसके बाद पोस्टमार्टम करवाने के बाद भी पुलिस की बड़ी लापरवाही सामने आई।
- यहां पुलिस ने आईएएस का विसरा प्रिजर्व प्लास्टिक के गंदे और बड़े जारों में भरवा दिया।
- पुलिस की इस लापरवाही से अब फारेंसिक साइंस लेबॉरेट्री (एफएसएल) की रिपोर्ट आने में करीब 30 दिन का वक्त लग जायेगा।
- बता दें कि पुलिस की लापरवाही पर शनिवार को फॉरेंसिक टीम ने फटकार लगाई थी।
ट्रेनिंग के बाद भी हुई लापरवाही
- एफएसएल के निदेशक एसबी उपाध्याय की माने तो विसरा प्रिजर्व करने के लिए फाइबर के जार की जगह वॉयल में रखने के लिए अधिकारियों को लिखा जा चुका है।
- वहीं पोस्टमार्टम हॉउस के फार्मासिस्ट को भी वॉयल में विसरा प्रिजर्व करने की पहले ही ट्रेनिंग दी जा चुकी है।
- उन्होंने बताया कि विसरा अगर वॉयल में होता तो 10-15 दिन में जांच रिपोर्ट दी जा सकती थी।
- लेकिन ज्यादा मात्रा में अधिक कंटेंट को बड़े-बड़े जारों में भरा गया है इसलिए अब जांच रिपोर्ट को आने में कारण 30 दिन का वक्त लगेगा।
- उन्होंने बताया कि प्लास्टिक का जार सेफ नहीं है क्योकि विसरे में विष होते हैं, जो डिब्बे में जाने के बाद केमिकल्स रिएक्शन का खतरा बढ़ाते हैं।
- इसके चलते विसरा रिपोर्ट प्रभावित होने की संभावना रहती है।
पीएम हॉउस में डॉक्टरों की गतिविधियां नहीं थी ठीक
- आईएएस अनुराग तिवारी के बड़े भाई मयंक तिवारी का आरोप है कि पोस्टमॉर्टम हाउस में मौजूद डॉक्टरों की गतिविधियां ठीक नहीं लग रही थी।
- वहां खड़ा एक अज्ञात व्यक्ति कह रहा था जो करना है दस मिनट में निपटाओं।
- इसके अलावा यह भी जानकारी मिली है कि किसी ने डॉक्टरों को पूरी पीएम रिपोर्ट ही नहीं लिखने दी।
- इसलिए उन्होंने मीडिया और परिवार के सामने पीएम कराने की मांग रखी थी।
- लेकिन पोस्टमॉर्टम हाउस में अनसुना कर दिया गया।
- अब उन्हें सीएम योगी आदित्यनाथ से मिलने का समय मिल गया है।
- उन्होंने पीएमओ को पत्र लिखकर सीबीआई जांच की भी मांग की है।
- मॉच्युरी के सीएमओ जीएस वाजपेयी ने बताया कि यह जांच का विषय है इसमें वह कुछ नहीं कहेंगे।
- वहीं मॉच्युरी के इंचार्ज रहे एवं फार्मासिस्ट प्रभारी एसएस पवार ने बताया कि इस बारे में सीएमओ ही अधिक कुछ जानकारी दे पायेंगे।
फॉरेंसिक लैब के डॉयरेक्टर की भूमिका की जांच
- इस मामले में परिजनों ने कहा है कि महानगर, लखनऊ की फॉरेंसिक लैब के डॉयरेक्टर डॉ. गयासुद्दीन खान की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए।
- उनकी ड्यूटी पोस्टमार्टम में नहीं थी।
- पोस्टमार्टम शुरू होने से एक घण्टे पहले से वह पोस्टमार्टम हाउस में क्यो मौजूद थे?
- पोस्टमार्टम करने वाली डॉक्टरों की 4 सदस्यीय टीम पर गयासुद्दीन बार बार दबाव डाल कर यह क्यों कह रहे थे कि IAS अनुराग तिवारी की मौत एक साधारण घटना है जल्दी पीएम करो।
- इस बाबत टीम के एक डॉक्टर से उनकी झड़प भी हुई थी।
- पोस्टमार्टम हॉउस के कर्मचारियों का आरोप है कि गयासुद्दीन खान अक्सर बिना ड्यूटी पोस्टमार्टम हाउस में आ जाते है तथा संदिग्ध मौत के मामलों में अपोज़िट पार्टी से मिलकर पोस्टमार्टम रिपोर्ट मैनेज कराने का काम करते हैं।
- इससे पहले भी कई बार पोस्टमार्टम डयूटी करने वाले डॉक्टरों ने मेडिकल कॉलेज प्रशासन से गयासुद्दीन की शिकायत भी की।
- चूंकि गयासुद्दीन स्वास्थ मंत्री अहमद हसन के रिश्तेदार व उनके द्वारा पोस्ट किए गए थे इस कारण पूर्व सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की।
- गयासुद्दीन पटना हाईकोर्ट से जमानत पर बाहर हैं।
- जब पोस्टमार्टम करने वाली चार सदस्यीय डॉक्टरों की टीम में केजीएमयू के फॉरेंसिक लैब के हेड डॉ. अनूप वर्मा मौजूद थे।
- तब गयासुद्दीन पोस्टमार्टम गृह में पूरे समय किन कारणों से मौजूद रहे।
- ऊपर से आदेश के बावजूद वे पोस्टमार्टम की पूरी प्रक्रिया की वीडियो न करने का दबाव क्यों डाल रहे थे।
- मृतक अनुराग तिवारी का विसरा (पेट की धोवन आदि) कैमिकल जांच के लिए जब पोस्टमार्टम करने वाली टीम सुरक्षित रख रही थी।
- तो गयासुद्दीन ने विसरा न रखने का दबाव वहां मौजूद डाक्टरों पर कियो डाला।
- किसके ईशारे पर वे वहांअंत तक जमे रहे? IAS अनुराग के भाई मयंक का कहना है कि गयासुद्दीन की संदिग्ध गतिविधियों की जांच होनी चाहिए।
- वहीं मॉच्युरी के सूत्र की माने तो पोस्टमॉर्टम हाउस में अनुराग तिवारी के पीएम के दौरान कई सारे मानकों की जाने या अनजाने अनदेखी की गई।
- कुछ बातें तो पीएम की वीडियो रिकर्डिंग के दौरान भी कैमरे में कैद हुई हैं।
- सिर्फ वीडियों का ही विशेषज्ञों ने निरीक्षण कर लिया तो कई चौंकाने वाली चीजे सामने आ जाएंगी।
इतनी मात्रा में होना चाहिए
- डॉक्टरों की मानें तो उन्हें जारी गाइडलाइन के अनुसार वॉयल में स्टमक टीशू, आंत, लीवर और स्पलीन का टुकड़ा 50-50 ग्राम, स्टमक कंटेन्ट 50 एमएल, खून व यूरिन 20-20 एमएल विसरे के रूप में पोस्टमॉर्टम हाउस से विधि विज्ञान प्रयोगशाला जांच के लिए भेजा जाना चाहिए।
- जिससे लगभग 40 दिन की जगह 10 से 15 दिन में एफएसएल रिपोर्ट दे सकें।
- दो साल पहले तत्कालीन एडीजी तकनीकी सेवा राजकुमार विश्वकर्मा ने प्रदेश भर के पोस्टमॉर्टम हाउस को निर्देश जारी किया था कि 1 जुलाई 2015 से वॉयल में ही बेहद सीमित मात्रा में विसरा प्रिजर्व किया जाए।
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