दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि यौन उत्पीड़न के मामलों में फैसला सुनाते समय न्यायिक अधिकारियों को पीड़ितों के नाम का जिक्र नहीं करना चाहिए और उनकी प्रतिष्ठा का खयाल रखना चाहिए!

न्यायमूर्ति एस पी गर्ग ने यह बात तब कही जब छेड़छाड़ के एक मामले में एक सत्र जिला न्यायाधीश ने अपने आदेशों में पीड़ित के नाम का जिक्र कर दिया था।

प्रतिष्ठा का रखें खयाल 
अदालत ने कहा, ‘यह पाया गया है कि 21 अक्तूबर 2013 को दिए गए फैसले में पीड़ित के नाम का जिक्र था। निचली अदालत से फैसले में पीड़ित के नाम का संकेत देने की अपेक्षा नहीं थी।’

उच्च न्यायालय के तरफ से कहा गया कि यह गलती जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने भी कर दी। अदालत का कहना है पीठासीन अधिकारियों को ऐसे मामलों में फैसला देते समय पीड़ित की प्रतिष्ठा की रक्षा करने के लिए उनकी पहचान का खुलासा करने से बचना चाहिए क्योंकि ऐसे मामले के बाद पीड़िता का समाज में रहना मुश्किल भी हो सकता है और उसकी जिंदगी बर्बाद हो जाती है।

निर्भयाकांड: 
भारत की राजधानी नई दिल्ली में मेडिकल की प्रशिक्षण कर रही एक युवती पर दक्षिण दिल्ली में अपने पुरुष मित्र के साथ बस में सफर के दौरान 16 दिसम्बर 2012 की रात में बस के निर्वाहक, मार्जक व उसके अन्य साथियों द्वारा पहले फब्तियाँ कसी गयीं और जब उन दोनों ने इसका विरोध किया तो उन्हें बुरी तरह पीटा गया। जब उसका पुरुष दोस्त बेहोश हो गया तो उस युवती के साथ उन लोगों ने सामूहिक बलात्कार करने के बाद उन दोनों को एक निर्जन स्थान पर बस से नीचे फेंककर भाग गये। इस घटना के 13 ने सिंगापुर के अस्पताल में दम तोड़ दिया था। इस मामले में दाखिल आरोपपत्र के अनुसार, पुलिस ने आरोप लगाया था कि बस चालक राम सिंह, उसके भाई मुकेश, विनय, पवन और अक्षय ने किशोर के साथ मिलकर 35 वर्षीय बढ़ई को बस में चढ़ने के लिए फुसलाकर उसका मोबाइल फोन और 1500 रूपए लुटे थे।

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