आजकल हम अपनी व्यस्त दिनचर्या के कारन अपने बच्चों को समय नहीं दे पाते हैं। ऐसे में बच्चे भी हमसे कोई बात कहने से हिचकते हैं। तनाव में रहने से बच्चे कई बार नशे का सहारा ले लेते हैं जो की बिल्कुल भी ठीक नहीं है। हमे अपने बच्चों को संस्कार देने के साथ ही उनसे बातचीत करना भी बेहद जरुरी है ताकि हम उनके मन की बात जान सकें। न्यायमूति अरविन्द त्रिपाठी ने कहा कि नशा एक सामाजिक अभिशाप है। यह युवाओं में जहर की तरह फैल रहा है।
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बच्चों से नियमित करें संवाद
- राघवेन्दु सेवा समिति की ओर से युवाओं में बढ़ती नशा की लत पर सेमिनार का आयोजन हुआ।
- परवीन तलहा ने कहा कि नशा रोकने की जिम्मेदारी अकेले सरकार की नहीं है.
- इसमें हर वर्ग के लोगों के सहयोग की जरूरत है।
- एनबीआरआई के डॉ. सुदर्शन कुमार ने कहा कि सेल्फी लेना भी बहुत लोगों के लिए नशा है।
- यह सेल्फी का नशा कई बार लिए जानलेवा साबित हो जाता है।
- बाचो घर से ही संस्कार दिये जाते है।लेकिन, आजकल परिवार में संवाद की कमी है।
- उन्होंने कहा कि मैंने 55 देशों की यात्रा की है लेकिन कभी पान तक नहीं खाया।
- तारिक सिद्दीकी ने कहा कि माता-पिता को चाहिये कि वे अपने बच्चों को समय जरूर दें।
- उन्होंने कहा कि उनकी तीन साल की बेटी की यू ट्यूब देखने की आदत पड़ गयी थी।
- लेकिन जैसे ही हम लोगों को अहसास हुआ तो उस पर ध्यान दिया।
- उसको दूसरी बातों से बहलाया नतीजा यह कि उसकी आदत छूट गयी।
नशीले पदार्थ पर लगे प्रतिबन्ध
- डॉ. श्रीकांत शुक्ला ने कहा कि आजकल एकल परिवार का चलन हो गया है।
- पहले संयुक्त परिवार थे तो कोई न कोई बड़ा बच्चों पर नजर रखे रहता था।
- उन्होंने कहा कि नशीले पदार्थों पर बैन करने की मांग होनी चाहिये।
समिति के प्रबंधक प्रदीप तिवारी ने बताया कि युवाओं को जागरूक करके ही नशामुक्त भारत की परिकल्पना की जा सकती है।
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