हिन्दी सिनेमा का इतिहास काफी पुराना है। एक जमाना था जब लोग अपने हीरों को देखने के लिए सिनेमा घरो के बाहर लम्बी लम्बी लाइन लगाते थेे। जब कभी कोई अच्छी फिल्म आती थी तो महीनों तक सिनेमा घरों के बाहर लाइन लगी रहती थी। इस दौर में फिल्मों के प्रचार के माध्यम बेहद कम थेे। इन्टरनेट की पहुंच बस कुछ खास लोगो तक थी। टीवी में चैनल के नाम पर केवल दूरदर्शन था जिसके प्रसारित होने का समय पहले सेे निर्धारित होता था। इन सब समस्याओं के बावजूद इस जमाने के लोग अपने पसंदीदा फिल्मस्टारोंं को दीवानो की हद तक मोहब्बत किया करते थेे।
पुरानी हिन्दी फिल्मों के बेहद पसंदीदा स्टारो की फेेहरिस्त में एक नाम सुनील दत्त का भी है। सुनील दत्त ने हिन्दी फिल्मों में तमाम ऐसे किरदार निभाये जिसे आज भी याद किया जाता है। उनके द्वारा बोले गय तमाम डॉयलाग आज भी लोगो की जबान पर है।
06 जून 1929 को जन्में बलराज रघुनाथ दत्त उर्फ सुनील दत्त बचपन से ही अभिनेता बनने की ख्वाहिश रखते थे। वो एक बेहद गरीब परिवार में जन्में थे जिसकी वजह से अपने शुरूआती दौर में उन्होने तमाम मुसीबतो का सामना किया था। अपने जीवन यापन के लिए उन्हें बस डिपो में चेकिंग क्लर्क के रूप में काम किया जहां उन्हें 120 रुपए महीना मिलता था।
बस डिपो में चेकिंग क्लर्क के रूप में रूप में काम करने के दौरान ही उन्होंने रेडियो सिलोन में भी काम किया जहां वह फिल्मी कलाकारों का साक्षात्कार लिया करते थे। प्रत्येक साक्षात्कार के लिए उन्हें 25 रुपए मिलते थे। सुनील दत्त ने अपने सिने करियर की शुरुआत वर्ष 1955 में प्रदर्शित फिल्म ‘रेलवे प्लेटफॉर्म’ सेे की।
सुनील दत्त को पहली बड़ी कामयाबी 1957 में प्रदर्शित फिल्म ‘मदर इंडिया’ से मिली। इस फिल्म में उन्होंने विलेन का किरदार निभाया था। करियर के शुरुआती दौर में ऐंटी हीरो का किरदार निभाना किसी भी नए अभिनेता के लिए जोखिम भरा हो सकता था लेकिन सुनील ने इसे चुनौती के रूप में लिया और ऐंटी हीरो का किरदार निभाकर आने वाली पीढ़ी को भी इस मार्ग पर चलने को प्रशस्त किया। इस फिल्म के बाद भी उन्होनेे तमाम फिल्मों में विलेन की भूमिका निभाई जिनमें ‘जीने दो’, ‘रेशमा और शेरा’, ‘हीरा’, ‘प्राण जाए पर वचन न जाए’, ’36 घंटे’, ‘गीता मेरा नाम’, ‘जख्मी’, ‘आखिरी गोली’, ‘पापी’ आदि प्रमुख हैं।
आपको बताते चले कि सुनील दत्त ने 25 मई 2015 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया।