बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने बीते 18 जुलाई को राज्यसभा सांसद के पद से इस्तीफ़ा दे दिया था, इस्तीफ़ा देने का कारण बसपा सुप्रीमो ने सदन में उन्हें न बोले दिये जाना बताया था। साथ ही अपने इस्तीफे के दौरान बसपा सुप्रीमो मायावती ने केंद्र की भाजपा सरकार पर भी हमला किया था। वहीँ इस्तीफे के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती पार्टी के संगठन को मजबूत(mayawati master plan) करने में लग गयी हैं। जिसके तहत बसपा सुप्रीमो मायावती 18 सितम्बर से हर महीने की 18 तारीख को सूबे के दो मंडलों में एक रैली करेंगी।
अपने वोटबैंक को एकजुट करने की कवायद(mayawati master plan):
- मायावती ने राज्यसभा से इस्तीफ़ा देने के बाद पार्टी के संगठन को मजबूत करने की कोशिश शुरू कर दी है।
- साथ ही बसपा सुप्रीमो ने 2007 से खो चुकी अपने जनाधार को भी एकजुट करने की कवायद शुरू कर दी है।
- दरअसल बसपा सुप्रीमो 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बसपा के पक्ष में माहौल बनाने की भी कोशिश करेंगी।
- वहीँ आंकड़ों की मानें तो 2007 के बाद से मायावती अब तक अपना 8 फ़ीसदी बेस वोट खो चुकी हैं।
कांशीराम की तर्ज पर बसपा सुप्रीमो(mayawati master plan):
- जानकारों की मानें तो बसपा सुप्रीमो के पास राज्यसभा से इस्तीफा देने के अलावा और कोई चारा नहीं था।
- मायावती ने काफी सोच-समझकर राज्यसभा से इस्तीफ़ा दिया है।
- जिसके बाद बसपा सुप्रीमो के पास एक मौका है कि, वो लगातार वोटबैंक की जमीन खो रही पार्टी के फ्रंट में आकर काम करें।
- कई लोगों का यह भी मानना है कि, इस्तीफा देकर मायावती ने एक ख़ास तबके को सन्देश भेजा है।
- साथ ही मायावती ने उत्तर प्रदेश का दौरा करने की घोषणा भी उस समय की है,
- जब उनके पास खोने को कुछ नहीं है।
- मायावती बसपा के संस्थापक कांशीराम की तर्ज पर सूबे का दौरा करेंगी।
- वहीँ अगर मायावती अपने खिसके वोटबैंक को पाने में कामयाब होती हैं तो,
- साल 2019 के लोकसभा चुनाव में मायावती बड़ा फेरबदल कर सकती हैं।
हर साल गिर रहा है बसपा का वोट प्रतिशत(mayawati master plan):
- आंकड़ों के अनुसार, साल 2007 के बाद हर साल बसपा का वोट प्रतिशत नीचे गिरा है।
- 2007 में बसपा को यूपी चुनाव में 85 रिज़र्व सीटों में से 62 पर जीत मिली थी,
- उस वक़्त पार्टी के साथ 30 फ़ीसदी दलित वोट थे।
- साल 2012 में बसपा वोट प्रतिशत करीब 25.9 रहा था,
- वहीँ 2017 में वोट प्रतिशत करीब 23 फ़ीसदी रह गया।
भीड़ को वोटों में बदलना बड़ी चुनौती(mayawati master plan):
- कई लोगों का मानना है कि, मायावती ने भाजपा के खिलाफ माहौल के लिए सही समय चुना है।
- लेकिन मायावती लोगों को कितना और क्या समझा पाएंगी, ये देखने वाली बात है।
- गौरतलब है कि, तकरीबन 10 सालों से मायावती प्रदेश की राजनीति में जमीनी स्तर से गायब हैं।
- सीधे शब्दों में, मायावती से किसी आम व्यक्ति का मिलना लगभग नामुमकिन होता है।
- साथ ही जिस दलित वर्ग का उन्होंने बीड़ा उठाया है, वो वर्ग उन्हें अपने साथ खड़ा देखना चाहता है।
- बस यहीं पर मायावती मात खा जाती हैं।
- ज्ञात हो कि, यूपी विधानसभा चुनाव में भी मायावती ने 50 बड़ी रैलियां की थी,
- जिनमें भीड़ भी खूब जमा हुई थी।
- लेकिन मायावती उस भीड़ को वोटों में नहीं बदल पायीं थी।
- बसपा सुप्रीमो के लिए सबसे मुश्किल काम यही होने वाला है।
भाजपा जैसे प्रतिद्वंदी से मुकाबला(mayawati master plan):
- बसपा सुप्रीमो की मौजूदा राजनीति दलितों के बहाने केंद्र सरकार पर हमला करने के इर्द-गिर्द ही रही है।
- मायावती के लिए यह भी एक समस्या होने वाली है।
- इसमें कोई शक नहीं है कि, भाजपा अपने इतिहास के सबसे मजबूत दौर से गुजर रही है।
- जबकि बसपा के लिए अपना अस्तित्व बचाना भी मुश्किल हो रहा है।
- साथ ही लोकसभा चुनाव 2019 के तहत पीएम मोदी की नजर एक बार फिर से यूपी की तरफ है।
- जिसके बाद मायावती का सीधा मुकाबला भाजपा जैसे प्रतिद्वंदी से होगा।
- साथ ही मायावती को यह भी मालूम है कि, बूथ लेवल तक कोई पार्टी अगर बसपा को टक्कर देती है तो वो भाजपा ही है।
- ऐसे में लोकसभा 2019 का मुकाबला देखना वाकई दिलचस्प होगा।
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