किसी अख़बार की सुर्ख़ियां नहीं हैं हम…ना ही न्यूज़ चैनल्स की हेडलाइन्स…हम तो क़ायनात के
सबसे छोटे नुमाइंदे हैं…हमें तो ये भी पता नहीं कि अमीरी और ग़रीबी का फ़र्क क्या होता है ? दूसरे
बच्चों की तरह हमारे मां-बाप भी हमें बहुत प्यार करते थे. हमें स्कूल भेजते थे. हमारी हर ज़िद पूरी
करते थे. हमें लेकर सपने देखते थे. लेकिन उनके सपनों को पता नहीं किसकी नज़र लग गई…शायद
गरीबी बनी काल:
- हमारी ग़रीबी ही हमारे लिए काल बन गई.
- जब एक दिन जापानी राक्षस ने हमारे दरवाज़े पर दस्तक दी.
- वो चुपके से आया और हमारे शरीर में आग लगा गया.
- हम बेखबर थे और हमारे मां-बाप बेबस.
- हमारे तपते शरीर को हाथों में उठाकर वो गए वहां के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल.
- लाख मिन्नतों के बाद किसी तरह हमें भर्ती कर लिया गया.
- लेकिन बेहोशी की हालत में भी हम अपने मां-बाप की ग़रीबी और बेबसी को अच्छी तरह से समझ रहे थे.
- हम तो मासूम थे, हमें क्या पता कि अस्पताल अच्छे और बुरे भी होते हैं ?
- हमें तो ये भी नहीं पता कि अमीर और ग़रीब लोगों के अस्पताल भी अलग-अलग होते हैं.
बिगड़ती रही हालत:
- आख़िरकार हमें बेड मिल गया. इलाज तो शुरू हो गया.
- लेकिन हमारी हालत बिगड़ती चली गई.
- डॉक्टर आते और देखकर चले जाते.
- धीरे-धीरे हमें सांस लेने में तक़लीफ़ होने लगी तो डॉक्टरों ने हमारे चेहरे पर एक बड़ा सा मास्क लगा दिया.
- उस वक़्त ऐसा लगा कि अब हम ठीक हो जाएंगे.
- फिर से अपने गांव चले जाएंगे..अपने दोस्तों के बीच.
- मां-बाप को भी अब हमारे ठीक होने का एहसास होने लगा था.
- उनके चेहरे पर नज़र आनेवाली चिंता की लकीरें अब राहत के भाव में बदलने लगी थीं.
- लेकिन उन्हें क्या पता था कि उनका विश्वास जल्द ही टूटनेवाला है.
- हमें भी नहीं पता था कि मां-बाप के लाख गिड़गिड़ाने के बाद अस्पताल में जो बेड मिला
- था.
- चेहरे पर ऑक्सीज़न का जो मास्क लगा था.
- वही हमारी मौत की वजह बन जाएगा…जिसपर हमारी टूटती सांसों को बचाने का ज़िम्मा था.
- उसी ने तोड़ दी हमारी सांसों की डोर.’
बहुत बेचैनी में निकली जान:
- उस रातअचानक हमारी सांसें रुकने लगीं.
- हम छटपटाने लगे.हमारे मां-बाप इधर-उधर बदहवास होकर भागने लगे.
- हमें बहुत बेचैनी हुई लेकिन अचानक हमारी सारी परेशानी ख़त्म हो गई.
- जबतक लोग कुछ करें, डॉक्टर आएं,ऑक्सीजन के सिलिंडर लाएं हमे सांसों की ज़रूरत ख़त्म हो गई थी.
- जापानी राक्षस से तो हम बच गए लेकिन अस्पताल के राक्षसों ने हमें मौत की नींद सुला दिया.
- हमारे सारे सपने बिखर गए.
- हम भी पढ़ना चाहते थे.
- बड़ा होकर कुछ बनना चाहते थे.
- अपने मां-बाप का सहारा बनना चाहते थे.
- लेकिन हमें क्या पता था कि इस अस्पताल में भगवान की शक़्ल में शैतान भी बसते हैं.
- अब तो हम आपकी दुनियां से इतने दूर चले गए हैं कि शिक़ायत भी नहीं कर सकते.
- ज़िद भी नहीं कर सकते, रो भी नहीं सकते.
- हम नहीं कहते कि हमको लेकर आप मातम मनाइए.
खबरों में छिपकर रह गयी सांसें:
- हम ये भी नहीं कहते कि आप हमारे लिए आवाज़ उठाइए.
- लेकिन आपसे एक सवाल ज़रूर पूछते हैं कि हमारे साथ जो कुछ भी हुआ वो अगर आपके किसी अपने के साथ हुआ होता.
- तो भी क्या आप उसे महज़ एक ख़बर समझकर इतनी ही ख़ामोशी से देख-सुन या पढ़ रहे होते ?
Writer
Raman Pandey
Executive editor
Bharat Samachar
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