caste factors of khair : खैर विधानसभा सीट पर आगामी चुनावी समीकरणों को सियासी दलों का गठजोड़ और जमीनी समीकरण ही तय करेंगे। यह सीट सुरक्षित है, इसलिए दलित उम्मीदवार ही मैदान में उतरते हैं, लेकिन गैर-दलित वोटरों का रुख भी नतीजों को प्रभावित करता है। यहां के जातीय समीकरण इस प्रकार हैं:
खैर विधानसभा का जातीय समीकरण caste factors of khair
जाट: 1.15 लाख(बहुतायत में, इसलिए इस क्षेत्र को “जाटलैंड” भी कहा जाता है)
- जाटव (एससी): 70 हजार
- ब्राह्मण: 60 हजार
- वैश्य: 35 हजार
- सूर्यवंशी: 30 हजार
- अन्य एससी: 25 हजार
- मुस्लिम: 30 हजार
- बाकी: अन्य जातियों के वोटर
जाट और जाटव वोटरों का इस सीट पर प्रभावशाली वर्चस्व है, जबकि ब्राह्मण, वैश्य और मुस्लिम वोटरों का रुख भी निर्णायक भूमिका निभाता है।
जाट चेहरों का रहा जलवा
खैर विधानसभा सीट पर जाट उम्मीदवारों का दबदबा लंबे समय तक बना रहा है। आजादी के बाद से ही इस सीट पर जाट चेहरों का जलवा दिखता रहा, जिसमें 1967, 1974, और 1980 में कांग्रेस को जीत मिली। 1985 में लोकदल और 1989 में जनता दल ने जीत दर्ज की। भाजपा का खाता 1991 में रामलहर के दौरान चौधरी महेंद्र सिंह की जीत से खुला। 1993 में यह सीट फिर जनता दल के पास गई, लेकिन 1996 में भाजपा ने चौधरी चरण सिंह की बेटी ज्ञानवती को उम्मीदवार बनाया, और उन्होंने जीत हासिल की।
हालांकि, जाट उम्मीदवारों की जीत का सिलसिला 2002 में बसपा ने तोड़ा, जब प्रमोद गौड़ ने ब्राह्मण-दलित समीकरण के जरिए जीत हासिल की। 2007 में रालोद ने यह सीट अपने खाते में डाली, लेकिन 2008 के परिसीमन के बाद यह सीट सुरक्षित हो गई। इसके बावजूद, 2012 में रालोद की जीत बरकरार रही।
2017 में अनूप प्रधान ने भाजपा को जीत दिलाई, और इसके बाद उन्होंने अगले चुनाव में भी अपनी जीत का क्रम जारी रखा।
इस सीट से लगातार दूसरी बार विधायक बनने के बाद उन्हें योगी सरकार में राज्यमंत्री भी बनाया गया था। हाल में हुए लोकसभा चुनाव में उन्हें हाथरस से भाजपा ने उम्मीदवार बनाया और वह जीतकर दिल्ली पहुंच गए।