मिल्कीपुर विधानसभा सीट का जातीय समीकरण चुनावी नतीजों को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस क्षेत्र में विभिन्न जातियों का मिश्रण है, जो हर चुनाव में अपने-अपने समुदाय के समर्थन से उम्मीदवारों को जीत दिलाने में सक्षम होते हैं। आइए जानते हैं, मिल्कीपुर विधानसभा का जातीय समीकरण और किस तरह यह चुनावी परिणामों को प्रभावित करता है।
मिल्कीपुर विधानसभा सीट का इतिहास
मिल्कीपुर विधानसभा सीट के लिए पहली बार 1967 में चुनाव हुआ था। इस सीट से सबसे अधिक बार मित्रसेन यादव विधायक चुने गए हैं। उन्होंने 4 बार कम्युनिस्ट पार्टी और एक बार समाजवादी पार्टी से जीत हासिल की है। कांग्रेस को इस सीट पर तीन बार सफलता मिली है, जबकि समाजवादी पार्टी के पांच विधायक चुने गए हैं। इसके अलावा, कम्युनिस्ट पार्टी के 4, भारतीय जनता पार्टी के 2, और बसपा और भारतीय जनसंघ पार्टी के खाते में 1-1 बार यह सीट गई है।
मिल्कीपुर विधानसभा सीट का उपचुनाव का इतिहास
मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर यह तीसरी बार उपचुनाव हो रहा है। 1998 में सपा के मित्रसेन यादव विधायक थे, जो चुनाव जीतकर सांसद बने थे। 2004 में सपा विधायक आनंदसेन ने विधायकी से इस्तीफा देकर बसपा का दामन थाम लिया था, जिसके बाद हुए उपचुनाव में सपा के रामचंद्र यादव विधायक बने। अब अवधेश प्रसाद दूसरे ऐसे नेता होंगे जो मिल्कीपुर से लोकसभा जाएंगे।
मिल्कीपुर विधानसभा का जातीय समीकरण
2022 विधानसभा चुनाव के दौरान मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र में कुल 3,40,820 वोटर्स थे, जिनमें 1,82,430 पुरुष और 1,58,381 महिला मतदाता थीं। जातीय समीकरण की बात करें तो इस क्षेत्र में प्रमुख जातियों के वोटर्स की संख्या कुछ इस प्रकार है:
- ब्राह्मण: 60,000
- यादव: 55,000
- पासी: 55,000
- मुस्लिम: 30,000
- ठाकुर: 25,000
- दलित: 25,000
- कोरी: 20,000
- चौरसिया: 18,000
- वैश्य: 12,000
- पाल: 7,000
- मौर्य: 5,000
- अन्य: 28,000
इस जातीय समीकरण से यह स्पष्ट होता है कि मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र में कई प्रमुख जातियों का प्रभाव है, जो चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं।
मिल्कीपुर विधानसभा सीट के सियासी समीकरण में यादव, पासी और ब्राह्मण वोटर अहम भूमिका निभाते हैं। समाजवादी पार्टी (सपा) इस सीट पर यादव-मुस्लिम-पासी समीकरण के सहारे जीत हासिल करती रही है, जबकि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सवर्ण और दलित वोटों को साधकर जीतने में सफल रही है। मिल्कीपुर के सुरक्षित सीट बनने के बाद से दो बार सपा ने यहां पर जीत दर्ज की है, जबकि एक बार बीजेपी ने अपना कब्जा जमाया है।