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मुझे यह बात अंचभित करती है, कि क्यों राज खोसला को देश के बेहतरीन फिल्म मेकर्स की सूची में नहीं गिना जाता’:- बोनी कपूर।

बोनी कपूर ने राज खोसला के काम को सराहते हुए बातचीत में कहा। ‘मुझे फिल्म इंडस्ट्री के कुछ महान निर्देशकों के साथ बातचीत करने और काम करने का मौका मिला  जब हम 50, 60, 80 और 90 के दशक के बारे में सोचते हैं। जिसके बारे में यकीनन आज के ज्यादातर लोगों को जानकारी नहीं होगी। डायरेक्टर्स जैसे- वी. शांताराम, महबूब खान, राज कपूर, गुरुदत्त, बिमल रॉय, आसिफ, बीआर चोपड़ा, विजय आनंद, हृषिकेश मुखर्जी, नासिर हुसैन, शक्ति सामंत, यश चोपड़ा, मनमोहन देसाई, रमेश सिप्पी और सुभाष घई जो अब भी हमें एंटरटेन करने के साथ-साथ प्रेरित भी करते हैं।

हालाँकि, मैंने देखा है कि, ज्यादातर आर्टिकल्स और डिस्कशन में इन नामों की लिस्ट में टैलेंटेड राज खोसला का नाम नहीं लिया जाता है।

राज़ खोसला की फिल्मोग्राफी को सिर्फ एक बार देखने पर ही किसी फिल्म की कहानी कहने की उनकी महानता साफ झलकती है। देव आनंद के साथ उनकी थ्रिलर फिल्म “सीआईडी” को बहुत अच्छी सफलता मिली थी और इसके बाद उनकी फिल्म “काला पानी” को भी दर्शकों ने खूब पसंद किया था। उनकी ये दोनों फिल्में हिट हुई थी क्योंकि उन्होंने नैतिकता और गरीबी की वास्तविकता को बहुत ही बेहतरीन तरह से दिखाया था। राज खोसला को अलग शैली वाली फिल्मों में भी महारत हासिल थी, जो किसी टैलेंटेड फिल्ममेकर में ही देखने मिलती है। उन्होंने सस्पेंस थ्रिलर फिल्म ‘वो कौन थी’ और ‘मेरा साया’ जैसी फिल्में भी बनाई है।

इन फिल्मों के सुरीलें और मधुर गानों को आज भी फिल्माया और गाया जाता है। राज खोसला को ‘दो बंधन’ जैसी विभिन्न प्रकार की कहानियों की तलाश थी। जो एक    इमोशनल लव स्टोरी और बेहतरीन घटना पर आधारित गानों से बनी थी। वहीं उनके अनोखे अंदाज की डकैत ड्रामा सुपर एक्शन और सुटर हिट म्यूजिक के साथ बनी फिल्म ‘मेरा गांव मेरा देश’ और ‘कंच्चे धागे’ देखने मिलती है।

‘दो रास्ते’ एक फैमिली ड्रामा फिल्म जो एक सौतेले बेटे की कहानी पर बनी,  जंहा वह खुद के असली परिवार को नकारते हुए भी सौतेले परिवार के प्रति निस्वार्थ भाव से उनकी देखरेख करता है।

राज खोसला ने ‘दो चोर’ एक रहस्यमय फिल्म प्रोड्यूस की। जो लीड रोल में अभिनेता-अभिनेत्री दोनों चोर की एकसाथ जिंदगी बनाने की कहानी पर बनाई गई।

वहीं राज की ‘दोस्ताना’ फिल्म दो दोस्तों के लव ट्राएंगल की कहानी पर बनी हैं, जिसे सलीम-जावेद की कहानी और बेहतरीन म्युजिक ने सुपरहिट बनाई। इसी के साथ कोई भला ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ एक मजबूत विषय पर बनी फिल्म को कैसे भूल सकता है?  एक मां जो मरे हुए पति के गौरव सम्मान को याद रखते हुए नाजायज कहलाए जा रहें अपने बेटे की परवरिश समाज के तानों को ठुकराते हुए भी करती हैं।

और यही बात मुझे अंचभित करती है कि क्यों राज खोसला को अपने देश के बेहतरीन फिल्म मेकर्स की सूची में आज भी नहीं गिना जाता। और यदि आजकल के किसी युवा फिल्म मेकर्स को कुछ बेहतरीन सिखना हो तो वह राज खोसला जैसे अलग-अलग शैली पर फिल्म बनाने वाले फिल्म मेकर्स से बेहतर किसी और से नहीं सिख सकते हैं।

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