अवध की मिट्टी-पानी और हवाओं की कोख से निकलकर जीवन के आंसुओं और मुस्कानों को जुबान देने वाले सैकड़ों गीत जब एक स्त्री के कंठ का गहना बन जाते हैं, तो विरासत अपने भविष्य पर मुस्कुरा उठती है कि उसने अपना सच्चा उत्तराधिकारी हासिल कर लिया है। मालिनी अवस्थी एक ऐसी ही सुरीली आश्वस्ति के साथ अपनी धरती के छन्द गुनगुना रहीं हैं। कभी अपनों के बीज किसी छोटी सी महफिल में तो कभी भीड़ भरे किसी जलसे के मंच पर। आवाज और अंदाज के निरालेपन से भरपूर मालिनी की आवाज निश्चित तौर पर श्रोताओं के दिलों-दिमाग पर असर करती है। आवाज का यह असर अब सरहदों के फासले पार करता हुआ विश्वभर में फैल रहा है, मालिनी अब शोहरत की मल्लिका बन गई हैं।malini awasthisलखनऊ में जन्मी मालिनी का संगीत के प्रति बचपन से ही रूझान रहा है, इसी के चलते उन्होंने लखनऊ के भातखंडे संगीत संस्थान से शास्त्रीय संगीत में स्नाकोत्तर की उपाधि ग्रहण की। गायिकी में निखार और मार्गदर्शन के लिए गिरिजा देवी जी की शिष्या बनीं। ठेठ मिट्टी की सौंधी गंध से महकती गायिकी से लाखों श्रोता उनके मुरीद हो गए।अभी हाल में ही मध्यप्रदेश संस्कृति विभाग की सिहंस्थ ‘अनुगूंज’ श्रृंखला के तहत मालिनी शिव भूमि पर कुंभ मेले में आमंत्रित थीं। इससे पहले शुरूआती दौर में करीब बारह वर्ष पहले मध्यप्रदेश के संस्कृति महकमें की आदिवासी लोककला परिषद ने खंडवा में आयोजित ‘श्रुति’ समारोह में भी मालिनी को गाने का मौका दिया था। इस समारोह में मशहूर गायिका तीजनबाई, पंजाबी गायिका गुरमीत बावा के साथ मंच साझा करना उन दिनों मालिनी के लिए बेहद फक्र की बात थी।malini awasthiअब पद्मक्षी सम्मान मिलने के बाद उनका कहना है कि तमाम विधाओं के बीच लोक संगीत की अनदेखी नहीं हुई। यह भारत की श्रुति परंपरा का सम्मान है। मैं तो बस, उसकी नुमाइंदगी कर रही हूं। जब मनोरंजन के मायावी बाजार में मिलावटी संगीत बिक रहा हो, तब आत्मा की गहराइयों में आनंद की हिलोर जगाने वाले परंपरा के देशी संगीत की मटियारी सुगंध को महफूज रखना किसी चुनौती से कम नहीं है।

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