इस फिल्म देख के ये साफ ज़ाहिर होता है कि के के मेनन के अलावा कोई भी एक्टर खुद को साबित करना तो दूर अपने रोल को भी ठीक से नहीं निभा पाया है।
मनाली की बर्फीली वादियों में फिल्माई गई ये बॉलीवुड फिल्म ‘वोदका डायरीज’ सस्पेंस और थ्रिलर से भरपूर है। इसमें सिलसिलेवार मर्डर होते हैं जिसमें के के मेनन केसेस को सुलझाते नज़र आए हैं। शुरुवाती तौर पर ये फिल्म काफी स्लो है लेकिन कुछ समय बाद ही ये रफ्तार पकड़ लेती है। फिल्म के फर्स्ट हाफ पार्ट में कहानी को बहुत जल्दी-जल्दी आगे बढ़ाया है और सस्पेंस को बर्करार रखा है।
लेकिन फिल्म की कहानी के दिलचस्प होने के बावजूद भी अन्य किरदारों के कमजोर एक्टिंग के चलते इसे काफी हद तक बर्बाद कर दिया है। फिल्म देखते वक्त इस बात को हज़म करना काफी मुश्किल है कि के के मेनन के अलावा कोई भी एक्टर खुद को साबित करना तो दूर अपने किरदार को ढंग से निभा भी नहीं पाया है। इस फिल्म को पूरी तरह से के के मेनन की फिल्म कहा जा सकता है जिन्होंने अपने किरदार को न सिर्फ निभाया है बल्कि उसे जिया भी है।
इन्वेस्टिगेशन इंस्पेक्टर के किरदार में नज़र आएंगे के के
इस फिल्म की कहानी कुछ इस तरह है, अश्विनी दीक्षित (के के मेनन) अपनी पत्नी शिखा (मंदिरा बेदी) के साथ मनाली घूमने जाते हैं। जहां पर सीरिज़ में कई मर्डर होते हैं और सबका लिंक वोडका डायरीज़ होटल से जुड़ा होता है। अश्विनी इस केस इंन्वेस्टीगेट अंकित (शारिब हाशमी) इन्वेस्टिगेशन इंस्पेक्टर के साथ मिलकर सुलझाते हैं। अश्विनी को बीच-बीच में मिस्टीरियस फोन कॉल्स आते हैं जो रोशनी बैनर्जी (राइमा सेन) करती है। कभी उसे इन्वेस्टीगेशन में सपने आते हैं तो कभी वो सपने में इन्वेस्टिगेशन कर रहा होता है।
हालत ऐसी होती है कि वो जिन्हें मरा हुआ देखता है वो ज़िंदा मिल जाते हैं। वहीं जिन्हें वो देखता है वो अचानक गायब हो जाते हैं। अब क्या सपना है और क्या हकीकत इसे समझ पाना उसके लिए मुश्किल हो जाता है। इसी बीच अचानक एक दिन एसीपी दीक्षित की पत्नी भी गायब हो जाती है। अब इसके पीछे का राज़ फिल्म देखने के बाद ही पता चलेगा।