यूं तो भारत में तमाम बड़े संंगीतकार पैदा हो चुके हैंं लेकिन इनमें बहुत कम ऐसे हैंं जिन्होने ना केवल अपनी जिन्दगी में लोगो के दिलों में अपनी जगह बनाई बल्कि दुुनिया से रूखसत होने के बाद भी अपने हुनर की बदौलत इतिहास के पन्नों में अमर हो गये। आर डी बर्मन को इस दुनिया से रूखसत हुए यू तो दो दशक बीत चुके है लेकिन अपनी जिन्दगी में उन्होने संंगीत की दुनिया में ऐसी हलचल पैैदा की कि आज भी दुनिया भर में जहां जहां संंगीत प्रेेमी रहते है, आर डी बर्मन का नाम खुद ही वहां तक पहुंच जाता है।
भारत केे इस महान संगीतकार का जन्म 27 जून 1937 को कोलकाता में हुआ था। संगीत का हुनर उन्हें विरासत में अपने पिता से मिला था। उनके पिता सचिन देव बर्मन भी उस दौर के बड़े संगीतकारों में से एक थे। आर डी वर्मन को बचपन से ही संगीत का शौक था। महज नौ साल की उम्र में ही उन्होंने अपना पहला गीत ‘ए मेरी टोपी पलट कर आ’ को संंगीत दिया था। अपने कैरियर के शुुरूआती दिनों में वो अपने पिता के साथ सहायक संगीतकार के रूप में काम करते थे।
आर डी बर्मन ने अपने पिता के अलावा संंगीत का प्रशिक्षण उस्ताद अकबर अली खान और तबला के उस्ताद समताप्रसाद से लिया था। उनके बारे में कहा जाता हैै कि वो अपने काम के दौरान संंगीत की दुनिया में इतनी बुरी तरह खो जातेे थेे कि अगर इस दौरान कोई उनके लिए चाय लेके आता था ताेे वो चाय केे ठण्डा होने तक का इन्तेजार नही कर पाते है और उसमें पानी मिलाकर उसी वक्त उसे पी जाते थे।
वैसे तो आर डी बर्मन ने कई फिल्मों के गानो को अपना संगीत दिया लेकिन उन्हे सबसे बड़ी सफलता 1966 में आई तीसरी आंख के गानों से मिली। इस फिल्म के गानों ने उन्हें शोहरत की उन मंजिलों पर पंहुचा दिया जहां पर पहंचना हर संगीतकार का सपना होता है।
आज आर डी बर्मन की 77 वी वर्षगाठ के मौके पर गूगल ने भी अपने डूडल पर उनकी तस्वीर लगा दी है। इस तस्वीर में वो मफलर पहने हुए दिखाई दे रहे है।