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फिल्‍म समीक्षा- पति-पत्‍नी के रिश्‍ते की एक अनोखी कहानी है ‘की एंड का’

भारतीय समाज में शादी के बाद पत्‍नी को यह जिम्‍मदेारी दे दी जाती है कि वह घर का काम करे। अपने पति के लिए खाना बनायें, उसके कपड़े साफ करें। इसी तरह पति का काम होता है कि वह घर की आर्थिक‍ स्थिति को संभाले, घर से बाहर निकलें और पैसा कमाकर अपनी जिम्‍मेदारियों को पूरा करें।ki and ka

आर. बाल्की ने अपनी नयी फिल्म की एडं का में समाज की इसी सोच पर सवाल उठातें हुए इस फिल्‍म को दर्शकों के सामने पेश किया है। कबीर (अर्जुन कपूर) और कीया (करीना कपूर खान) फिल्‍म की कहानी के मुख्‍य पात्र हैं जिनकी मुलाकात चंडीगढ़-दिल्ली की फ्लाइट में होती है। दोनों दिल्ली से हैं। कबीर के पिता (रंजीत कपूर) शहर के टॉप बिल्डर हैं। कबीर ने एमबीए में टॉप किया है, लेकिन उसे अपने पिता के बिज़नस में कतई दिलचस्पी नहीं। कबीर की मां आर्टिस्ट होने के साथ-साथ हाउसवाइफ थीं। कबीर को अपनी मां से बेइंतहा प्यार था, लेकिन पिता द्वारा मां की बार-बार उपेक्षा किए जाने से कबीर हमेशा अपसेट रहता। पिता-पुत्र के बीच की टसन की एक और वजह कबीर का फैमिली बिज़नस को न संभालने का फैसला था। दिल्ली में कीया और कबीर की मुलाकातों का सिलसिला बढ़ता है। कीया एक कॉर्पोरेट ऐड कंपनी में ऊंचे पद पर काम करती हैं तो वहीं कबीर नकारा। चंद मुलाकातों के बाद कीया यह जानते हुए कि कबीर सर्विस वगैरह जॉइन करने की बजाए घर संभालना चाहता है और उम्र में उससे छोटा है, उससे शादी करने का फैसला करती है। कीया की मां (स्वरूप संपत) को इस शादी से कोई ऐतराज नहीं, सो दोनों कोर्ट मैरिज कर लेते हैं। शादी के बाद कीया रूटीन से ऑफिस जाती है तो कबीर घर में किचन वगैरह का काम संभालता है। कुछ अर्से बाद कीया कंपनी में वीपी बन जाती है। कीया की कंपनी के बॉस और कुलीग को मालूम है कि उसका हज्बंड कबीर घर का सारा काम संभालता है।

एक दिन कीया कबीर को एक टीवी चैनल में घर संभालने के अपने फैसले के बारे में इंटरव्यू देने को कहती है, इस इंटरव्यू के बाद कबीर की लोकप्रियता बढ़ने लगती है। अब वह सिलेब्रिटी बन चुका है। मुंबई में उसे सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के घर से बुलावा आता है तो कीया की कंपनी का बॉस अब कबीर को लेकर टीवी ऐड बनाता है, इसी के बाद कीया और कबीर के रिश्तों में ऐसा तनाव शुरू होता है जो उनके बीच की दूरियां बढ़ाता है।

फिल्‍म की कहानी समाज के बदलते हालातों पर आधारित है। आर. बाल्‍की ने लीग से हटकर कुछ कहने की कोशिश की है। फिल्‍म की कमजोर कड़ी इसका धीमापन है जिसकी वजह से यह फिल्‍म बीच बीच में बेहद बोंरिग हो जाती है। फिर भी फिल्‍म के कान्‍सेप्‍ट की वजह से इसे एक बार जरूर देखा जा सकता है।

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