तमिल फिल्मों के सुपरस्टार रजनीकांत की फिल्म कबाली को लेकर पिछले कई दिनों से उनके फैन्स के बीच जबरदस्त उत्साह देखा जा रहा है। इस फिल्म को लेकर लोगो के उत्साह का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिस दिन इस फिल्म को सिनेमाघरों में रिलीज किया जाना था उस दिन दक्षिण भारत में कई कम्पनियों ने अपने यहां काम करने वाले कर्मचारियों को फिल्म देखने के लिए एक दिन का अवकाश दे दिया था। दक्षिण भारत समेत देश भर में इस फिल्म का पहला शो देखने के लिए लोगो ने रात से ही सिनेमाघरों के बाहर लाइन लगाना शुरू कर दिया था।
अब जब ये फिल्म रिलीज हो गई है तो हर कोई ये जानने के लिए उत्सुक है कि इस फिल्म में किस तरह की कहानी है। अगर कबाली की कहानी की बात की जाये तो इस फिल्म की कहानी में कोई नयापन नही है। रजनीकांत इस फिल्म में एक गैंगस्टर की भूमिका निभा रहें हैं जो मलेशिया में रहता है। ये गैंगस्टर अपने देश के लोगो से बेहद प्यार करता है।
कबाली के उसूल दूसरे गैंग्स की राह में रोड़ा बनते हैं इसी वजह से होती है गैंगवॉर…गैंग्स में इसी ठकराव के कारण क्या क्या होता है ‘कबाली’ इसी की कहानी है।
बात ख़ामियों की करें तो कहानी कमज़ोर है। ऐसी कहानी हम पहले भी कई बार देख चुके हैं और इसमें कोई नयापन नहीं है।
फ़िल्म के डायरेक्शन में भी मुझे कई ख़ामियां नज़र आईं। फ़िल्म देखते वक्त आपको लगेगा कि ये रजनीकांत की एक और एक्शन फ़िल्म है पर ऐसा सोचते सोचते ही कहानी का गियर बदलता है और फ़िल्म भावुक राह पर चल पड़ती है जिससे दर्शकों को झटका लग सकता है। फ़िल्म का प्रवाह सहज नहीं। कुछ अलग देखने के इंतज़ार में पूरी फ़िल्म निकल जाती है।
रजनीकांत के लिए ख़ासतौर पर कहानी बुनी जाती है ऐसे में आम दर्शक उनकी फ़िल्म देखते वक्त कुछ ख़ास या नयापन के इंतज़ार में रहते हैं पर इस फ़िल्म में ऐसा कुछ नहीं होता। फ़िल्म का विषय प्रभावशाली ढंग से निकलकर पर्दे पर नहीं आता और ‘कबाली’ सिर्फ़ दो गैंग्स की लड़ाई बन कर रह जाती है।
बात खूबियों की करें तो इस फ़िल्म की सबसे बड़ी ख़ूबी है ख़ुद रजनीकांत जिनसे आप नज़रें नहीं हटा पाएंगे। उनका उठना… बैठना…. चलना…. मुस्कुराने का स्टाइल…ये सब
‘लार्जर दैन लाइफ़’ लगता है जो कारण है उनके लिए उनके फ़ैंस की दीवानगी का। फ़िल्म के कई सीन्स की एडिटिंग अच्छी लगी। मसलन जब काबली अपनी पत्नी को याद करते हुए कहता है कि ‘रूपा उसकी रीढ़ की हड्डी थी’।