कपिल काजल
बेंगलुरु, कर्नाटक
अक्सर हम यहीं मान कर चलते हैं कि घर के अंदर किसी तरह का प्रदूषण नहीं होता। प्रदूषण तो तब होता है जब हवा में उद्योगों से निकलने वाली गैस और कचरा, वाहनों का धुआं और कचरा जलाने से निकलने वाला धुआं मिलता है। जब हम घर से बाहर निकलते हैं , तब हम इसकी चपेट में आ सकते हैं। दूसरी ओर यदि हम घर के भीतर है तो हम प्रदूषण की जद से बाहर है।
प्रदूषण को लेकर बस हम इतना भर ही जानते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह सही नहीं है। अगर हम भी ऐसा ही सोच रहे हैं तो साफ है, प्रदूषण को लेकर हमारी जानकारी अधूरी है। क्योंकि घर के अंदर भी अब प्रदूषण बढ़ रहा है। घर में भी वायु प्रदूषण गंभीर खतरा बन कर उभर रहा है। पीडियाट्रिक सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज इन इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के बाल रोग विशेषज्ञ और प्राध्यापक डॉ एच। परमीश ने बताया कि घर के भीतर यदि धूल कण है, तो अस्थमा होने का अंदेशा 60% तक बढ़ जाता है। उन्होंने बताया कि घर के अंदर तिलचट्टा भी अस्थमा का कारण बन सकता है। यहां तक कि कॉकरोच का सूखा मल भी गंभीर बीमारियों की वजह बन सकता है।
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खाना बनाने के लिए चुल्हे का इस्तेमाल खतरनाक
नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन (एनसीबीआई I) ने घरों के अंदर
वायु प्रदूषण को लेकर एक एक अध्ययन किया। इसमें पाया गया कि घरों में रेडॉन गैस ( जो कि रंगहीन, गंधहीन होती है), अभ्रक, कीटनाशक, धूल कण, कार्बनिक पदार्थ, तंबाकू का धुआं और इधन के तौर पर जलाया जा रहा कचरा प्रदूषण की बड़ी वजह है। अध्ययन में यह बात भी सामने आयी कि पराग कण, दूषित पानी, गद्दे और कालीन भी घर के भीतर भी वायु प्रदूषण की वजह बन सकते हैं।
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डॉ परमीश ने बताया कि यदि घर का कोई एक सदस्य घर के भीतर ही धूम्रपान करता है,इससे बच्चों में अस्थमा होने की संभावना तीन गुना तक बढ़ जाती है। घरों में खाना पकाने के लिए जिस पारंपरिक चुल्हे का इस्तेमाल होता है, इसमें उपले आदि जलाए जाते हैं, इस पर खाना पकाने वाला एक घंटे में चार सौ सिगरेट के बराबर धुआं अपने अंदर खींच लेता है। चुल्हे में यदि पुराल या इसी तरह के किसी कचरे का इस्तेमाल इंधन के तौर पर किया जा रहा है तो निमोनिया होने का अंदेशा 10.5 गुना तक बढ़ जाता है।
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स्वास्थ्य पर होने वाले प्रतिकूल प्रभाव
अगरबत्ती जलाना घरों में अब ही सामान्य है। लेकिन एनसीबीआई के अध्ययन से पता चलता है कि एक साधारण सी अगरबत्ती भी घर के अंदर कितने बड़े वायु प्रदूषण की वजह बन सकती है। क्योंकि इसके धुएं में कार्बन कण, कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड जैसी गैस होती है। तो वायु प्रदूषण को बढ़ावा देती है। अब जब हम इस तरह की प्रदूषित हवा में लगातार सांस लेते हैं तो यह गैस भी हमारे फेफेड़ों में पहुंच जाती है। जिससे सांस संबंधि दिक्कत पैदा हो जाती है।
सेंटर फॉर साइंस स्पिरिचुअलिटी बेंगलुरु के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ शशिधर गंगैया ने बताया कि घर के अंदर के वायु प्रदूषण के दो तरह से प्रतिकूल प्रभाव हो सकते हैं। एक तो वह असर है जो तुरंत ही नजर आते हैं। इसमें आंखों में पानी आना, सिर में दर्द, चक्कर आ जाना, एलर्जी होना या फिर छींक और निमोनिया हो जाना शामिल है।
कुछ ऐसे प्रतिकूल प्रभाव है जो कुछ समय बाद समने आते हैं। इसमें अस्थमा, एलर्जी , नाक बंद होना , दिल की बीमारियां के साथ ही सांस की दिक्कत होना शामिल है।
बच्चों में एलर्जी की समस्या बढ़ रही है, इसके साथ ही नाक बंद, अस्थमना और सोते हुए खर्राटे लेने की समस्या शहरी बच्चों में ज्यादा देखने को मिल रही है। कम उम्र के बच्चों और बुुजुर्गों के फेफड़ों का कमजोर होना, संक्रमण और फ्लू जैसी बीमारियों के शिकार होने के पीछे भी घर के भीतर का प्रदूषण के बड़ी वजह बन कर उभर रहा है।
डॉ परमीश के एक अध्ययन के मुताबिक , 8% बच्चों को खर्राटे लेने की दिक्क्त है। 1% लोगों को बार बार नींद टूटने की दिक्कत है। अध्ययन में पाया गया कि यदि बच्चों को नींद के दौरान सांस लेने में दिक्कत आ गयी तो उन्हें दिल का दौरा पड़ने का अंदेशा है। इसके साथ ही लगातार प्रदूषित वातावरण में रहने से त्वचा पर चकत्ते पड़ जाते हैं, यादाश्त पर भी इसका प्रतिकूल असर पड़ता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि घर के भीतर प्रदूषण इसलिए भी ज्यादा नुकसानदायक है, क्योंकि यह ऐसी चीजों से हो सकता है जिन्हे हम अपने रोजमर्रा के कामों में इस्तेमाल करते हैं। इसलिए इस पर बहुत ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए। लोगों को इस बारे में जागरूक किया जाना चाहिए। जिससे वह घर के भीतर प्रदूषण को कम करने के लिए कदम उठाये। डॉ परमीश ने बताया कि घर के भीतर ध्रूमपान करने से बचना चाहिए। कालीनों का प्रयोग छोड़ना चाहिए। घरों के भीतर ऐसे पौधे लगाये जा सकतें है जिससे प्रदूषण कम हो। इसके साथ ही कोकरोच से होने वाले संक्रमण को रोकने की दिशा में भी उचित कदम उठाने चाहिए।
फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी ऑफ इंडिया के गवर्निंग काउंसिल के सदस्य डॉ येलापा रेड्डी ने बताया कि बहुत ही छोटे छोटे तरीके अपना कम हम घर को प्रदूषण मुक्त रख सकते है। इसके लिए घर की अच्छे से सफाई करते रहना चाहिए। कमरों में बिछाये गये कालीनों में धुल कण तेजी से जमा होते हैं। यदि काली को अच्छे से नियमित अंतराल पर साफ करते रहे तो इस समस्या से बचा जा सकता है। घरों में मच्छरों को भगाने के लिए कॉइल जलाना और अगरबत्ती के प्रयोग से बचना चाहिए।
घर के भीतर प्रदूषण कैसे कम किया जाए, इस विषय पर बोलते हुए उन्होंने यह भी कहा कि अक्सर शहरी लोग हवा को साफ करने के लिए एयर प्यूरीफायर का उपयोग कर रहे हैं।इस तरह के उपकरण बेचने वाली कंपनियां दावा करती है कि इससे घर के अंदर की हवा साफ हो जाएगी। लेकिन विशेषज्ञों की राय इससे अलग है। डॉ मोइन ओबेसिटी हॉस्पिटल के एक पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ कार्ल मेहता ने बताया कि यदि किसी कमरे की दीवारों में रोशनदान है, वहां एयर प्यूरिफायर काम नहीं करेगा। जबकि बंद कमरे में एयर कंडीशनर पर्याप्त होते हैं। उन्होंने कहा कि बेंगलुरू में एयर प्यूरीफायर सांस की बीमारियों को रोकने में कारगर साबित नहीं होते। हां अगर किसी के मन में यह वहम है कि एयर प्यूरीफायर उसके ठीक रख सकता है,वह इसका प्रयोग कर सकत है।
(लेखक मुंबई स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं 101Reporters.com के सदस्य हैं।)