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शहर में नाइट्रोजन का बढ़ता स्तर  पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा

कपिल काजल

बेंगलुरु, कर्नाटक:

अक्सर
कार्बन डाइऑक्साइड और सुक्ष्ण कणों को ही वायु प्रदूषण की बड़ी वजह मान लिया जाता है। इस सब  के बीच प्रदूषण को बढ़ाने वाला एक और तत्व है, जो तेजी से बढ़ रहा है। वह है नाइट्रोजन डाइऑक्साइड। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज (आईआईएससी ) में सेंटर फॉर इकोलॉजिकल साइंसेज के एक प्रोफेसर डॉ. टीवी रामचंद्र के अनुसार नाइट्रोजन डाइऑक्साइड कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 298 गुना अधिक हानिकारक है। प्रोफेसर डॉ. टीवी रामचंद्र  बताते हैं कि  बेंगलुरु में एनओ2 गैस की वजहों में  वाहनों का धुआं,  कचरे का खुले में जलाना, कृषि क्षेत्र और  उद्योग  से निकलने वाला कचरा शामिल है। नाइट्रोजन डाइऑक्साइड  एक जहरीली गैस है, जो  हवा में   पहले से मौजूद अन्य प्रदूषण तत्वों के साथ मिल कर  ओजोन बनाती है। यह गैस  स्मॉग को  लाल और भूरे रंग के तब्दील कर देती है। इस तरह की हवा में सांस लेने से अस्थमा और सांस की कई अन्य बीमारी होने का अंदेशा बना रहता है। यहीं कारण है कि शहर में बढ रहे नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के बढ़ते स्तर से विशेषज्ञ खासे चिंतित है।

भारत के प्रमुख शहरों में ग्रीनहाउस गैसों के फुटप्रिंट शीर्षक से आईआईएससी की

2015 में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार  नगरपालिका का ठोस कचरा, घरों से निकलवने वाला दूषित पानी और, उघोग से निकले वाला गंदा पानी नाइट्रोजनऑक्साइड को बढ़ाने की प्रमुख वजह है। जो बेंगलुरु के पर्यावरण में ग्रीनहाउस गैसों को बढ़ा रहे हैं।

कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ( केएसपीसीबी ) के मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी डॉ. एच. लोकेश्वरी ने बताया कि वाहनों से निकलने वाले धुए को  नाइट्रोजन डाइऑक्साइड बढ़ाने की वजह मना जा रहा है। क्योंकि इसमें जो इंधन जलता है उससे  नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और सुक्ष्मकणों की मात्रा वायुमंडल में बढ़ जाती है। यहीं वजह है कि सरकार ने अप्रैल 2020 से भारत स्टेज VI (BS-VI) तकनीक के वाहन इंजन का पैमाना तय किया है।

विशेषज्ञ बताते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग कम करने के लिए तुरंत ही कदम उठाने होंगे। इसके लिए सबसे पहले नाइट्रोजन आॅक्ससाइड का स्तर कम करना होगा। इस तरह से नाइट्रोजनआॅक्साइड और कार्बन डाॅइआक्साइड को आपस में मिलने से रोका जा सकता है। यदि ऐसा किया तो ग्रीन हाउस गैस  होने से रोका जा सकता है। इस तरह से हम ग्लोबल वार्मिंग का भी कम कर सकते हैं।

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एनओएक्स उत्सर्जन में बेंगलुरु दूसरे स्थान पर है

आईआईएससी के  2016 में प्रकाशित भारत के अलग अलग राज्यों में वाहनों से होने वाले प्रदूषण पर एक अध्ययन किया था। ‘इंडियाज ट्रांसपोर्ट सेक्टर: स्टेटवाइज सिंथेसिस से उत्सर्जन’  शीर्षक के किए इस  अध्ययन में बताया गया कि  चेन्नई के बाद नाइट्रोजन (एनओएक्स)  से  बेंगलुरु दूसरा सबसे प्रदूषित शहर है।

(कैप्शन: भारत के प्रमुख शहरों में भारत के परिवहन क्षेत्र से निकलने वाले धुएं का  चार्ट- IISc)

बेंगलुरु राज्य में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से स्थापित प्रदूषण के स्तर का आंकलन करने के लिए स्थापित किए गए स्टेशन के डाटा के अनुसार 2018 में एनओ2 का स्तर  35 µg / m3 (1 g = 10 लाख andg) था और 2019 में, यह बढ़कर 43 हो गया। औसत 2017 में उत्सर्जन 31.5 31g / m3 था। यानी की यह हर साल बढ़ रहा है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ( डब्ल्यूएचओ WHO)ने   नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के लिए 40 mg / m3  स्तर को सेहत के लिए हानिकारक बताया है। यह भी कहा कि यदि इस स्तर पर नाइट्रोजन डाइऑक्साइड पहुंचती है तो इसके दुष्प्रभाव से लोगों को बचाने की दिशा में कदम उठाए जाने चाहिए।

(डेटा- KSPCB)

हवा की मात्रा बढ़ने से का सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है।   सांस लेने में तकलीफ हो सकती है, अस्थमा होने के अंदेशा हो जाता है। इसके साथ ही  फेफड़ों की कार्यक्षमता कम हो सकती है,   फेफड़ों के रोग भी  हो सकते हैं।

डब्ल्यूएचओ के अनुसार, सुक्ष्म कम (पीएम), ओजोन (ओ 3), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ 2) और सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ 2) प्रदूषण को बढ़ाने के सबसे बड़े कारक है। जो लोगों की सेहत के लिए बहुत ही हानिकारक माने जाते हैं।
बडे़ हो या बच्चे दोनों के स्वास्थ्य पर इसका विपरीत असर पड़ता है। इसके कुछ दुष्प्रभाव जल्द नजर आ जाते है, कुछ  थोड़ी देरी के बाद सामने आते हैं। इससे फेफड़ो की काम करने की क्षमता प्रभावित होती है, सांस लेने में दिक्कत और अस्थमा की समस्या हो सकती है। गर्भवति महिलाओं पर इस तरह का प्रदूषण बहुत विपरीत प्रभाव डालता है। गर्भस्थ शिशु का वजन कम हो सकता है। उसकी समय से पूर्व बच्चा जन्म ले सकता है।  वायु प्रदूषण बच्चों में मधुमेह और न्यूरोलोजी का  विकास प्रभावित हो सकता है।

फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी ऑफ इंडिया की गवर्निंग काउंसिल के सदस्य डॉ. येलपा रेड्डी स्पष्ट तौर पर कहते हैं कि  वाहनों से निकलने वाला धुआं  नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का सबसे बड़ा और  प्राथमिक कारण है।

उन्होंने बताया कि जब डीजल और पेट्रोल जलते हैं, तो वे अधजले  हाइड्रोकार्बन छोड़ते हैं। उन्होंने कहा कि औसतन स्पीड पर चल रहे वाहन से  20 से 30% तक अधजले  हाइड्रोकार्बन और नाइट्रोजन के  ऑक्साइड निकलते हैं।

जब  हाइड्रोकार्बन, नाइट्रोजन के ऑक्साइड  सूर्य के प्रकाश के संपर्क में अाते हैं तो  ग्राउंड-लेवल ओज़ोन (ओ 3) नामक एक दूसरा प्रदूषण पैदा होता है। जो बहुत ही खतरनाक है।
उन्होंने कहा कि  इसका असर न सिर्फ इंसानों पर बल्कि  बल्कि पौधों और जानवरों पर भी पड़ता है।  पौधे की उत्पादकता क्षमता तक प्रभावित हो जाती है।

इस विषय पर आगे बात करते हुए उन्होंने कहा कि इस समस्या का एक  हल तो यह है कि सड़कों पर वाहनों की संख्या कम की जाए। दूसरा यातायात और सिग्नल के बीच में भी संतुलन बनाना है। क्योंकि जब वाहन किसी  सिग्नल पर रुकता है, तो जाहिर है इसका इंजन चलता रहता है। इस तरह से सड़क पर उस वाहन के मौजूद रहने का समय बढ़ जाता है। जिससे प्रदूषण भी बढ़ता है। ऐसे में हमें इस तरह से हमें सड़क पर वाहनों और सिग्नल का  संतुलन इस तरह से बनाना है कि वाहन सड़क पर रूके ही नहीं।

फ़ोटोग्राफ़्स : तेजस दयानंद सागर

(कपिल काजल  मुंबई के  स्वतंत्र पत्रकार है, वह  101Reporters.com अखिल भारत  ग्रासरुट रिपोर्टर्स नेटवर्क के  सदस्य हैं।)

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